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# राग मालकोंस # करत कलेऊ मोहनलाल ॥ माखन मिश्री दूद मलाई मेवा
परम रसाल ॥ १॥ दधि ओदन पकवान मिठाई खात खबावत ग्वाल ॥ छित-
स्वामी बन गाय चरावन चले लटकि गोपाल ॥॥२।।

# raag malcons # karat kaleu mohanlal .. makhan mishree dood malaai meva

Kaleoon

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) बेगि चलो बन कुंवरि सयानी ॥ समय वसंत
बिपिन मधि हय गज मदन सुभट नृप फोज पलानी ॥ १॥ चहूं दिस चाँदनी
चमू चय कुसुम धूरि धूंधरी उडानी | सोरड कला छिपांकर की छबि सोहति
छनञ्र सीस कर तानी ॥२॥  बोले हंस चपल बंदी जन मनौं प्रसंसित पिक
बर बानी ॥ धीर समीर रटत बन अलिगन मनीों काम कर मुरली सुठानी
॥३॥ कुसम सरासन बनि हि बिराजति मनौं मानगढ़ आन आन भानी ॥
'सूरदास'  प्रभु की वेई गति करौ सहाइ राधिका रानी ॥४॥

) begi chalo bunn kunwari sayani .. samay vasant

Basant Dhamar - Maan

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) हीं आज होरी खेलौंगी नैद-महर के लाल सौं ॥
चोवा चंदन मृममद केसर भरौंगी अबीर गुलाल सौं ॥ १॥ कंचन की पिचकाई
भरि छिरकाबवौंगी मदन गुपाल सौं ॥ 'ब्रजपति' के संग खेलौंगी सब निस
विलसौंगी रसिक रसाल सौं ॥२५॥

) heen aaj horry khelaungi naid-mahar key laal saun ..

Dhamar

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) होरी लाल खेलै मुख देखनिदा चाव ॥ उत
ते आबै सो मन भावै संग लगाई मिलाव ॥१॥ सहराणी साहुरो सहरागी
साहरो झेज सुभाई ॥ देवर चोरानी अति दुःखदाई कीजै कहा उपाई ॥२॥
हो लग और सहा किन आवबौ मो जिय यहे उछाह ॥| जन हरिया' प्रभु
कौ मिलौंगी होंगी बे परवाह ॥३॥

) horry laal khelai mukh dekhnida chaav .. uta

Dhamar

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) जुवतिन संग खेलत फागहरी ॥ बालकवृंद करत
कोलाहल सुनतन कानपरी ॥ बाजत ताल मृदंग बांसुरी किन्नरसुर
कोमलरी ॥ तिनहूं मिले रसिक नंदन मुरली अधरधरी ॥२॥ कुंकुम वारि
अरगजा विविध सुगंध मिलाय करी ॥ पिचकाईन परस्पर छिरकत अति
आमोद भरी ॥३॥ टूट्तहार चीर फाटत गिरी जहां तहां ढंरनढरी ॥ काहू
नहीं संभार क्रीडारस सब तन सुधि बिसरी ॥४॥ अतिआनंद मगन नहीं
जानत बीतत जाम घरी ॥ कुमनदास प्रभु गोवर्धनधर सर्वस दे निवरी ॥५॥

) juvatin sanga khelat faghari .. balakvrind karat

Basant ( Mahasud 6 se mahasud 14 tak)

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) निकुंज में पोढे रसिक पिय प्यारी रंग रंग भीनी
सारी॥ खेलि फाग रस अति ही उमग लियो है लाला मनुहारी ॥ १॥ शिधिलित
बसन जूंमात आलस भरे पौढे पर्यंक सुखकारी ॥ नंददास दंपति छबि ऊपर
तन मन धन बलिहारी ॥२॥

) nikunj mein podhe rasik piya pyaari rung rung bheeni

Basant Dhamar - Paudhave

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) स्बेलन को श्यामाजू चली गिरिधर पियपास ॥
नवसत साज सिंगारहीं चंदमुखी मृद्हास ॥ १॥ सखी जुरी चहुंदिशतें लेखेलन
को साज ॥ ज्यों करिणी मदमाती ढूंढत मद गजराज ॥|२॥ बीनर बाव
किन्नरी वाजत मृदंग सुचंग ॥ ललितादिक मध्य स्यामा गावत सब मिल
संग ॥३॥ श्रवण सुनत गिरिधर पिय श्रीस्यामा को राग ॥ अंकभरे प्यारीकों
लूटत परम सुहाग ॥४॥ करसों करजोरे बैठे कुंज कुटीर ॥ ललित लता
गुच्छन में वोलत मधुकर कीर ॥५।| केसर मृगमद रोरी सुरंग गुलाल अबीर ॥
पियप्यारी मिल खेलत छिरकत चंदननीर ।।६।। बीरी खात खवावत हरखत
मुख हसदेत ॥ आलिंगन अति रससों कंठ भुजा भरलेत ॥७॥ कुंज महल
में क्रीडत दंपति अति सुखरास ॥ यह लीला नितगावे अतिवड भागीदास ॥ ८॥

) sbellen koo shyamaju chully giridhar piyapas ..

Dhamar

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) सूर-सुता के तीर होली खेले नन्‍द कौ नन्‍्दना ॥
ग्वाल बुन्द बूका पट झोरी, भरि लीने सँग बंदना ॥१॥ गावत राग सप्त-
सुर मारू, ब्रज जन मन आनँदना ॥ हाथन लऐं कनक पिचकाई, छिरकत
चोवा चन्दना ॥|२॥ उत तैं श्रीवृषभानु-नन्दिनी जुबति-जूथ लै आँई ॥ नवसत
अँग सिंगार बनाए मनमोहन मन भाई ॥|३॥ भरि बेला थिसि मृगमद गोरा
मेद बहुत सुखदायी ॥ नन्‍द कुंवर छिरकन के कारन ब्रज-बनिता लै आई
॥४॥ पट झाँझि झालरि मह॒वरि ढ़फ, ताल मृदंग, सुछंद ॥ वाजत बैंनु
रबाब, किन्नरी, बीना अति सुर मंद ॥५॥ तनसुख पाण सीस पै सोभित,
बनमाला उर सोहैें ॥| बागी सेत बन्यौ खासा कौ छबि लखि अति मन
मौहे ॥६॥ सुंदर चहूँ ओर तें एकत्रित कान्ह कुँवर को घेरें ॥ मन में चुप
करि रहे स्यथाम घन, उलटि सखन तन हेरे ॥७॥ पीतांबर फगुवा के कारन
एकनि लीनो छोरी || मुरली एकु छटकि के भाजी, एक हँसी मुख मोरी
॥८॥ मुक्ता माला एकन लीनि, एकु जु गावति गारी ॥ एक श्याम की अखियन
आँजति एकु बजावति तारी ॥९॥ सनमुख ठाड़ी कुँवरि राधिका करति अपनो
भायौ ॥ सौंधो घोरि कुँमकुमा घसि घट मदन मोहन सिर नायौ ॥१०॥
श्रीवृषभानु-कुँवरी नें फगुवा मन भायौ सो लीनौं | मदन गुपाल लाल हँसि
मधुरैं जो माँग्यो सो दिनों ॥११॥ बिबिध भाँति कुसुमित ब्रिंदाबन, उपजत
तान तरंग ॥ ऋतु कुसुमाकर गावत मानों क्वनित कीर, पिक भ्रंग ॥१२॥
निरखि थके सुर नर मुनि, किन्नरगन, प्रेम सिंधु सुखदाई ॥ राधा रसिक
कृष्ण रसलीला हँसि 'गोकुलचन्दं गाई ॥8३॥

) suur-sutaa key teer holly khele nann‍dha kau nann‍danaa ..

Dhamar

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१०२ (| राग सारंग (छ्ुु) रंगीली होरी खेलै रँग सौंरंग रैंगीलौ लाल ॥
रैंगीली ॥  रँग रैँगीली श्री राधिका सँग रैगीली बाल ॥ रैंगीली ॥ १॥ भाजन
भरि भरि रँँग के केसु केसर नीर ॥ रँंगीली ॥ चोबा चंदन अरणजा सँग
गुलाल अबीर ॥२॥ सौंधे संगबणे तन सोहे बसन रैंगमगे रँँग || स्यामा
अपने जुथ सौं श्याम सखा लीये सँग ॥३॥ पटढ निसान मह॒वरि बाजति
ताल मृदंग ॥ दुहुँ देसि सुघर समाज सौं उपजति तान तरंग ॥४॥ जुरे
टोल दोऊ आई के रहे उमूँग रस पाग || करन मनोरथ आपनीौं ज्यों मन
में अनुराग ॥५॥  जम्यौं रँग चाँचरि मच्यों कहा कहु सुर साँच ॥  अंग
अनंग न लाय कें भ्रकुटी नैननि नाँच ॥६॥ उमँग्यों आनँद क्यों रहे कापै
रोक्यौ जाई ॥ औचक हो हो करि उठी दीने सब टहुकाई ॥७॥ सीमटि
सखा सनमुख भयौ जल मंत्रन मार मचाई अबीर गुलाल उड़ाई कैं दिनमनि
दीयौ छिपाई ॥८॥ मेघ घटा ज्यों छाई केैं बरखन लागी आई ॥ तन सौं
तन सुझति नहि चंद उज्यारी भाई ॥९॥ बंसन मार मचाई कें दीनें सखा
भजाई ॥ हरि हलधर गहि पाई कैं दीये जीत कै बाजे बजाई ॥१०॥ घेरि
रही चहूँ और तें भाजन कौं नहि दाव ॥ अकबक से मन है रहे भुले सकल
उपाव ॥१ ९॥ हँसति सखी सब तारी दै दे आवे करि आवेस ॥ फाज में
प्रभुता को गीनै कीयै है चोर कै भेष ॥ १२॥| इक सखी ढिंग आई के बोली
चिबुक उठाई ॥ कहति मौन गहि क्यौं रहें ठग केसे लड॒वा खाई ॥8३॥
नैन ऑजि मुख माँडि कें हलधर दीने छाँड़ि ॥ ग्वाल सखन की लाज तें
लियौं है नीलांबर आडि ॥|१४॥ दृग मुख पॉँछति जब चले बहुत खिसानें
होई ॥ हँसति सखा बलराम सौं आए एक गऐ दोई ॥ १५॥ कीलकि कीलकि
हँसि यौं कहै धन्य तिहारौ खेलि ॥ भाजे जीव बचाई कें निज भैया कौं
मेलि ॥ १६॥ संकरषन तब यौं कह्मौं तुम ही लावो जीति ॥ बड़े मिलनीयाँ
मिलि गये भूलै मन प्रतीति | १७॥ इत गोपी नैँदराई कैं आई भवन मँझारि ॥
द्वार कपाट बनाई कै लै घेरे दोऊ सार ॥१ ८॥ इत राधा नँदलाल कौं करि
एकांत इक ठौरि झूमकि चेतब गाव हि जुरि जुथ सब पौरि ॥१९॥ ल्हेकन
रस बस उहै रही राखति बाजति ढोल ॥ जो चाहे सौं लीजिये नंद बदति
यौं बोल ॥२०॥ राधा माधो बोलि कै लै आई पुन पास ॥ नंद जसुमति
बोलिकें पुजवाई जिय आस ॥२१॥ दोऊ रैंगमगे रँग में मिल कीनों एक
बिचार ॥ इत गठजोरो जोरी कैं राधा नंदकुमार ॥२२॥ महरि घर आनँद
बढचौ लीये गोद बैठारि ॥ पाट पार्टंबर लै दीयै मनि कंचन नग वारि ॥२३॥
सब बिधि सब भाये भयै पुरई मन की आस ॥ या घर या सुख कारनमें
भावति ब्रज कौं बास ॥२४॥ गोपीजन हित कारनें गोप भेष अवतार ॥
ब्रिंदाबनन बसति सदा जहाँ क्रीड़ा नित बिहार ॥२५॥ श्री विध्वेल पद रज
कृपा ऐसा हिय में ध्यान ॥ 'छीत स्वांमी' गिरिधरन कौं कीनों सुजस
बखान ॥२६॥

102 (| raag sarang (chhu) rangili horry khelai ranga saunrang raingeelau laal ..

Dhamar

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११ एक राग बसंत ईछछु) ऐसो पत्र लिखि पठयौ नृप वसंत ॥ तुम तजो
मान मानिनी तुरंत ॥भ्रु० ॥ कागद नव दल अँब पाँति || द्वात कमल मसि
भैंवर जाति ॥ लेखन काम कै बान चाँप ॥ लिखि अनैँग ससि दई छाप ॥
मलयानिल पठयौ करि बिचार ॥ बाँचे सुक, पिक, तुम सुनौं नारि॥ 'सूरदास'
यौं बदति बानि || तू हरि भजि गोपी तजि सयान ॥२॥

11 aeka raag basant eechhu) aiso patra likhi pathyau nrip vasant .. tum tajo

Basant Dhamar - Maan

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४ (कक राग भैरव ईथ्) पिछवारे तैं छान ऊडाबै होरी कौं खिलवारि ॥
सास बुरी मेरी नँनंद हठीली कंथ सुनें देह गारि ॥१॥ गारी गावैं ढ़फ हि
बजाबैं धुम मचावैं द्वारि ॥ “द्वारिकेस' प्रभु की छबि निरखति बार-बार
बलिडारि ॥२॥

4 (cuck raag bhairav eeth) pichhvaare tain chhaan oodaabai horry kaun khilwari ..

Dhamar-Mangala

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४ आज महा मंगल महराने । पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घरघर
वे रखवाने  ॥१॥  ग्वाल भरें काँवरि गोरसकी बधू सिंगारत बानें  ।  गोपी गोप
परस्पर छिरकत दि के माठ ढराने ॥२॥ नामकरन जब कियौ गर्गमुनि नंद
देत बहु दानें | पावन जस गावति कटहरिया जाहि परमेश्वर भानें ॥३)॥

4 aaj mahaa mangal maharaane . punch shabd dhwani bheer badhaai gharghar

Janmashtami ki Badhai

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