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SPIRITUAL BENEFACTOR
VAISHNAVACHARYA HDH PUJYA GOSWAMI 108 SHRI VRAJRAJKUMARAJI MAHODAYASHRI
Aashraya Ke Pad
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Kirtan Title | Page | Kirtan | Raag |
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Giridhar jaba apano curry jaane .. | NityaPad-369 | गिरिधर जब अपनो करि जाने ॥
ताको मन भक्तनकी सेवा भक्त चरन रज सदा लुभाने ॥ गिरिधर.॥
भक्तन में मति भकक्तनसु गति हरिजन हरि एक करि माने ॥
कृष्णदास मन वचन कर्म करि हरिजन सगे हरि उर आने ॥गि.।। | Kanharo |
Prabhu mein sub patitan koo tiko. | NityaPad-371 | प्रभु में सब पतितन को टीको।
और पतित सब द्ोस चार के में तो जन्मन हीं को |
बधिक अजामिल गणिका तारी ओरे पूतनाही को ।
मोहि-छांडी तुम ओर उद्धारे मिटे शूल केसे जीको ॥
कोउ नसमर्थ शुद्ध करन को खेंचि कहत हों लीको।
मरीयत लाज सूर पतितन में कहत सबे मोहि नीको ॥ | Bihaag |
Bhaj sakhee bhaav bhaavik deva .. | NityaPad-365 | भज सखी भाव भाविक देव ॥
कोटि साधनकरो कोऊ तोऊ न माने सेव ॥१।॥
धूमकेतु कुमारमाँग्यो कौन मारगनीति॥
पुरुषते त्रियभाव उपज्यो सबै उलटी रीति ॥ २॥
बसन भूषण पलट पहरे भावसों संजोय ।।
उलटमुद्रा दईअंकन वरणसूधे होय ॥३।॥।
वेदविधिको नेमन ाहीं प्रीतिकी पहिचान ॥
ब्रजवधू वशकिये मोहन सूर चतुर सुजान॥४॥ | Bihaag |
Hari bhajan mein kahaa chahiyat haye naine shravan rasna pada paan. | NityaPad-369 | हरि भजन में कहा चहियत हे नेन श्रवन रसना पद पान।
एसी संपत जान मिली हो जो न भजे ताकुं बड़ी हान ॥ हरि.॥
पूरब पुन्थ सुकृतनको फल अति दुर्लभ मानुष अवतार।
पाप पुन्य जाते जानि परत है उपजत हे ब्रह्मज्ञान । हरि.॥।
गुरु कर्णधार पोत पद अंबुज भवसागर तरवेके हेत ॥
प्रेरक पवन कृपा केशवकी परमानंद चित चेत ।। हरि.॥ | Kanharo |
Aaye merey nand nandanke pyaare. | NityaPad-369 | आये मेरे नंद नंदनके प्यारे।
माला तिलक मनोहर बानो त्रिभुवन के उजियारे ॥ आये.॥
हृदय कमल के मध्य विराजत श्रीब्रजराज दुलारे।
प्रेमसहित वसत उर मोहन, नेकहुँ टरत न टारे ॥ आये . ॥
कहाजानु को पुन्य उदेभयो मेरे घरजु पधारे।
परमानंद करत नोछावर, बारबार तन बारे ॥आये.॥ | Bihaag |
Udho manato naheen dashbis | aeka hato sou gayo | NityaPad-373 | उधो मनतो नहीं दशबीस | एक हतो सो गयो
एयामसंग कोन भजे जगदीश ॥। १॥
भये सिथिल सबे माधोबिन ज्यों देही बिन शीश |
स्वास अटक रहो आशा लगि रही जीयो कोटि वरीश ॥।२॥
तुमतों सखा श्यामसुंदरके सकल जोगके इश।
सूरदास रसिकनकी बतिया को बूजबवे यह रीस ॥३॥ | Bihaag |
Agh samharini adham udharini kalikal tarini madhumathan gunakatha .. | NityaPad-365 | अघ संहारिनी अधम उधारिनी कलिकाल तारिनी मधुमथन गुणकथा ॥
मंगल वधायिनी प्रेमरसदायिनी भक्ति अनुपायिनी होत जिय सर्वथा ॥ १॥
मथवेद कथग्रंथ कहत व्यासादि मुनि अजहुँ अधुनीक जन कहतहूँ मतियथा !।
परम पदसो पानकरो गदाधर गान अन्य आलापतें जात जीवनवृथा ॥२॥ | Bihaag |
Srivitthalnath naam rasamrit panasdatu curr ray rasna .. | NityaPad-365 | श्रीविद्ठलनाथ नाम रसअमृत पानसदातू कर रे रसना ॥
जोतू अपनो भलो चाहिते यह व्रत जिय धर रे रसना ॥१॥
यारसके प्रतिबंधक जेते तिनते तू अतिडर रे रसना।।
हरिकों विमलयश गावतनिरंतर जातविघ्न सबटर रे ससना ॥२॥
वारंबार कहतहूं तोसों यह मारग अनुसर रेरसना ॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल आनंद उरमें भर रे रसना ॥३॥ | Bihaag |
Hari russ voondaavante aayo. | NityaPad-371 | हरि रस वूंदावनते आयो।
भगवदीय जन पीवनके कारन श्रीव्रजनाथ पठायो ॥
वांटिलियो अपनी अपनी रुचि जो जाके मन भायो ।
सूरदास प्रभु रसिक बिनोदी सो रस रसिकन पायो ॥ | Bihaag |
Jaa dinsant paahune aavat. | NityaPad-369 | जा दिनसंत पाहुने आवत।
तीरथ कोटि स्नान करन फल एसो दर्शन पावत।
प्रफुल्लितबदन रहत निशदिन प्रति चरण कमल चित्त लावत।
मनकर्म वचन ओर नहिजाचत सुमरत ओर सुमरावत्त ।
मिथ्यावाद उपाधि रहित व्हे विमल विमल जसगावत।
सूरदास प्रीतिकर तिनसो हरिकी सुरत करावत। | Kanharo |
Hari yeh kaun ritithati .. | NityaPad-366 | हरि यह कौन रीतिठटी ॥
दासद॒ुःखी सुखहोत विमुखन बडीलाज घटी ॥१॥
वेदपंथ श्रीभागवतकी बांधी मेंड कटी ॥
देख यह विधि सबन की मति भजनतें उचटी ॥२॥
करकुसंग सुसंग जाके विषयजायघटी ||
कुमति पावस कूपजलतें आवबतें उबटी ॥३॥
करणवारे कहा भूमी जातगतिनहटी॥|
कहा फलकी चीठी सबकी एकहीबेर फटी ॥।४॥
चरणपर जे शहत तिनकी होत मति उलटी ॥
कहा गीता भागवतमें कही बात नटी ॥५॥।
हमारी यहवेर मनसा दानहूंतें हटी ॥
रसिक कहि-कहि जीभ तुमसो छुलत छुलत छटी॥६।॥ | Kedaro |
Yeh magosankarshanvir.. | NityaPad-373 | यह मागोसंकरषणवीर॥
चरणकमल अनुरागनिरंतर भावेमोहि भक्तनकीभीर ।।१॥
संगदेहुतो हरिभक्तनको वासदेही श्रीयमुमातीर।।
श्रवणदे उतो हरिक थारस ध्यानदे हु तो स्थामशरीर ॥२।।
मनकामनाकरो परिपूरण पावनमजनसु रसरीनीर ॥
परमानंददास को ठाकुर त्रिभुवननायक गोकुलपतिधीर ॥३॥ | Bihaag |
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