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SPIRITUAL BENEFACTOR
VAISHNAVACHARYA HDH PUJYA GOSWAMI 108 SHRI VRAJRAJKUMARAJI MAHODAYASHRI
Kirtan Title | Kirtan | Category | Book-Page# | Raag |
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Bhor hii valllabh kahiye. | भोर ही वल्लभ कहिये।
आनंद परमानंद कृष्णमुख सुमर सुमर आठों सिद्धि पैये ॥१॥
अरु सुमरो श्रीविद्दल गिरिधर गोविन्द द्विजवरभूप ।
बालकृष्ण गोकुल-रघु-बदुपति नव घनश्याम स्वरूप ॥२॥
पढो सार बलल्लभवचनामृत जपो अष्ठटाक्षर नित धरी नेम |
अन्य श्रवणकीर्तन तजि, निसदिन सुनो सुबोधिनी जिय धरि प्रेम ॥३॥|
सेवो सदा नंदयशोमतिसुत प्रेम सहित भक्ति जिय जान ।
अन्याश्रय, असमर्पित लेनो, असद् अलाप, असत् संग, हान ॥४॥
नयनन निरखो श्रीयमुनाजी और सुखद निरखो ब्रजधाम |
यह संपत्ति वल्लभतें पैये, रसिकनको नहि औरसों काम ॥।५॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
Praatsamay uthh kariye shrilakshmansut gaan .. | प्रातसमय उठ करिये श्रीलक्ष्मणसुत गान ॥
प्रकट भये श्रीवल्लभप्रभु देत भक्तिदान ॥१॥
श्री विद्लेश महाप्रभु रूपके निधान ।॥
श्रीगिरिधर श्रीगिरिधर उदय भयो भान ॥ २॥
श्री गोविंद आनंदकंद कहा वरणो गुणगान॥
श्रीबालकृष्ण बालकेलि रूप ही सुहान ॥ ३॥
श्रीगोकुलनाथ प्रकट कियो मारग वखान ॥
श्रीरधुनाथलाल देख मन्मथ ही लजान ॥४॥।
श्रीयदुनाथ महाप्रभु पूरण भगवान ॥
श्रीधनश्याम पूरणकाम पोधीमें ध्यान ।।५॥
पांडुरंगविट्डलेश करत वेदगान ॥
परमानंद निरख लीला थके सुर विमान ॥।६।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
Shree valllabh santat suyash nitya uthh gaaruun... | श्री वल्लभ संतत सुयश नित्य उठ गारऊं।॥
मनक्रमवचन क्षण एको न विसराऊं ॥१॥
श्रीपुरुषोत्तम अवतार सुकृतफल जगतबंदन श्रीवि्ठलेश हुलराऊं ॥
परस पदकमलरज निरख सुंदरनिधि प्रेमपपुलकत कलेश कोटिक नशाऊं॥२॥
श्रीगिरिधर देवपतिमानमर्दन करन घोखरक्षक सुखद लीला सुनाऊं॥।
श्रीगोविंद ग्वालसंग गाय ले चलत वन विशद अंबुज हाथ शिर परशाऊं।॥।३॥
श्रीबालकृष्णसहज बालकदशा कमललोचन रंग रुचि बढाऊं ।।
भक्तिमार्ग प्रकटकरण गुणराशि ब्रजमंडल श्रीगोकुलनाथ लडाऊं ॥।४॥
श्रीरघुनाथ धर्मधीर शोभासिंधु दुख दूर बहाऊं।॥
पतितउद्धारण महाराज श्री यदुनाथ रसनाचातक ज्यूं रटाऊं ॥५॥
श्रीघनश्याम रूप अभिराम रसिकरस नि रख नयन सिराऊं ॥
चतुर्भुजदास पर्यो द्वारे प्रणपति करें श्रीवललभकुलचरणामृत भोर उठ पाऊं ॥६॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
Jaya jaya jaya srivallabhnath .. sakal padarath jaake haath .. 1.. | जय जय जय श्रीवललभनाथ ।। सकल पदारथ जाके हाथ ।। १॥
भक्तिमार्ग जिन प्रकट कर॒यो | नामविश्वास जगत उद्धरूयो |२॥
सब मत खंड निरूपे वेद ॥ प्रेमभक्तिको जान्यो भेद ॥३॥
कारण करण समरथ भुजदंड ॥॥ मायावाद कियो मत खंड ।।४॥
परमपुरुष पुरुषोत्तम अंशी ॥ भक्तजनन मनकरत प्रशंसी ॥५॥।|
जाके नाम गुण रूप अनंत ॥ निर्मल यश गावत श्रुति संत ॥६॥।
सुंदरस्थाम कमलदललोचन || कृपाकटाक्ष भक्तभबमोचन ।।७॥
कामनापूरण प्रणकाम ॥ अहर्निश जपूं ति हारो नाम ॥८॥
जाके पटतर ओर न कोय ॥ दास गोपाल भजें सुख होय ॥।९॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Srivallabh srivallabh dhyaaun ..| naam lait atee munn sachupaaun..1.. | श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ ध्याऊं ॥| नाम लेत अति मन सचुपाऊं॥१॥
श्रीवल्लभ त्यज अनत न ध्याऊं ॥ ओर काज मन में न लाऊं॥२॥
श्रीवललभ त्यज अनत न जाऊं ॥ चरणसरोजमूल घर छाऊं ।। ३॥।
श्रीवल्लभ ही के गुण गाऊं॥ रूप निरख नयनन अधघाऊं ॥४॥
श्रीवल्लभकेमन जो भाऊं।॥। आनंद फूल्यो मन समाऊं ।।५॥
श्रीवल्लभ को गाऊं भाऊं॥ यशोमतिसुतकों लाड लडाऊं ॥६॥
श्रीवल्लभके चरण रहाऊं।। भूखें महासुख भोजन विसराऊं ॥७॥
श्रीवल्लभको दास कहाऊं ॥ रसिक सदा यह नेह निभाऊं ॥८।॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Jaya jaya jaya shree valllabh prabhu vidvalesh saathen | nijajan parr karat kripa dharat haath maathen .. | जय जय जय श्री वल्लभ प्रभु विद्वलेश साथें | निजजन पर करत कृपा धरत हाथ माथें ॥
दोष सब दूर करत भक्तिभाव हिये धरत काज सब सरत सदा गावत गुणगाथें ॥१॥|
काहेको देह दमत साधन कर मूरख जन विद्यमान आनंद त्यज चलत क्यूं अपाधें।
रसिक चरण शरण सदा रहत हे बडभागी जन अपनो कर गोकुलपति भरत ताहि बाधें ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Bhor bhaye bhaavson leey srivallabhanam. haye rasna tuu or vritha bakey kyon nikaam ..| | भोर भये भावसों ले श्रीवल्लभनाम। है रसना तू ओर वृथा बके क्यों निकाम ॥|
कीजे सेवा रसस्वाद पावें निशदिन गुण गावें ओर सब रसविसराबें यह मन आठो याम ॥१॥
रसिक न कछु ओर करें इन ही में भाव धरें अतिरस अनुपान करें ओर कपट वाम ।।
हरिवश छिनही में होत सगरों भक्तिमारगरूप हृदय वसें अरु रससमूहधाम ।।२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Jayati shriradhikaramanparicharadhillavisharasharativilishatharararivishararamamathathararisharathisharishamararamatharamalararashisharararathivararararararisheeeeeeeshararararararararararararathathishishish ..| | जयति श्रीराधिकारमणपरिचरणरतिवल्लभाधीशसुतविद्ठलेशे ॥|
दासजनलौकिकालौकिके सर्वदा कैब चिंतोदबति हृदयदेशे ॥॥१॥
स्थापयति मानसं सततकृतलालसं सहजसुषमारुचिररूपवेशे ॥
भालयुततिलकमुद्रादिशो भासहितमस्तकाबद्धसितकृष्णकेशे ॥२॥।
सहजहासादियुतवदनपंकज _ सरसवचनरचनापराजितसुधेशे ॥
अखिलसाधनरहितदोषशतसहितमतिदासहरिदासगतिनिजबलेशे ॥३॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Gaauun srivallabh dhyaaun srivallabh valalbhacharanraj tunn lapataaun.. | गाऊं श्रीवल्लभ ध्याऊं श्रीवललभ वललभचरणरज तन लपटाऊं॥
बललभसंतति नित्यप्रति निरखूं वललभदासन दास कहाऊं ।।१॥
कृष्णलीला सेवा नित्य करके जगत सबे तृणतुल्य धराऊं।॥।
व्यासदासकी यही प्रतिज्ञा श्रीगोविंदकृपातें पाऊं ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Jup tapa teerath name dharam vrat . | जप तप तीरथ नेम धरम व्रत ।
मेरे श्रीवललभ प्रभुजी को नाम ।
साधन तज भज आठों जाम ॥१॥
रसना यही रटौं निसवासर ।
दुरित' कटें सुधरें सब काम ॥२॥|
आंगन बसों जसोदासुत पद ।
लीलासहित सकल सुखधाम |
रसिकन ये निरधार कियो है। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Srivallabhanam ratoon rasna nitya raho surat jiya aatho yaam .. | श्रीवल्लभनाम रटूं रसना नित्य रहो सुरत जिय आठो याम ॥
निरख नयन सकल सुंदरता श्रवणन सुन कीरतिगुणग्राम ॥। १॥।
पुष्पप्रसाद सुवास नासिका लेहु उगार सदा सुखधाम ॥
सेवा करूँ चरणकर मेरे वारवार हूं करूं प्रणाम ॥२।।
दुःख संसार छुडावन सुखनिधि आनंदकंद भक्तविश्राम ।।
रसिकशिरोमणि दीन जानके सीस बिराजे पूरणकाम ।। ३।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Namo balallabhadhishpadakamalayugale sadaa vasatu mumm hridayam vividhbhaavarsavalitam .. | नमो बलल्लभाधीशपदकमलयुगले सदा वसतु मम ह॒ृदयं विविधभावरसवलितं ।।
अन्यमहिमा55भासवासनावासितं मा भवतु जातु निजभावचलितं ॥१॥
भवतु भजनीयमतिशबितरुचिरं चिरं चरणयुगल सकलगुणसुललितं ।|
बदति हरिदास इति मा भवतु मुक्तिरषि भवतु मम देहशतज न्मफलितं ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Srivallabhacharansharan jaay sub sukh tuun lahey ray ..| | श्रीवललभचरणशरण जाय सब सुख तूं लहे रे ॥|
रसना गुण गाय गाय दरशन प्रसाद पाय ओर काज त्याग भाग वल्लभरति गहे रे ॥१॥
रेन दिनचिंतत रहे “3 शी ५3 इनहीं के रूप रंग इनहीं रस वहि रे॥
श्री विद्डलगिरिधारी यहि रस भारी चाहेना जो चाहे जीये तो येही चाह चही रे ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Ruchirtar ballabhadhishcharanam .. | रुचिरतर बल्लभाधीशचरणं ॥
अस्तु में सर्वदा सुंदराकृति जगन्मोहनं हदि विरहकरणं ॥१॥
विहितमायावादवादिजन जारजन्यसंगतात्मजनकुमतिहरणं ।|
अखिलसाधनरहितदो षशतकलुषकर कुमतिभर भरितनिजदासशरणं ॥२॥।
अंजसा कदंबपादपबहुपत्रयुतवासनाभंगभवजलधितरणं ॥।
वद॒ति हरिदास इति सकलजनमात्रकृतिगोकुलाधीशपदकमलवरणं ॥ ३॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Srivallabh tanmandhan srivallabh sarvasva mein payeshrivallabhprabhu chintamani merey || | श्रीवल्लभ तनमनधन श्रीवल्लभ सर्वस्व में पायेश्रीवल्लभप्रभु चिंतामणि मेरे ||
श्रीवल्लभ मम ध्यान ज्ञान श्रीवल्लभ विनभजु न आन श्रीवल्लभ हें सुखनिधा न प्राण जीवन केरे ॥१॥
श्रीवल्लभ मोहिइष्टदेव सदा सेवूं श्रीवललभ चरचो चरणकमल श्रीवल्लभजूके चेरे।।
छीतस्वामिगिरिवरधर तेसेई श्रीविद्वलेश श्रीवललभकी बल बल जाऊं वेरेवेरे ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Praatasame smarun srivallabh srivitthalnath param sukhakaari .. | प्रातसमे स्मरुं श्रीवल्लभ श्रीविद्ठलनाथ परम सुखकारी ।।
भवदु:खहरण भजनफलपावन कलिमलहरण प्रतापहारी ॥ १॥॥
शरण आये छांडत नहिं कबहुं बांह गहेकी लाज विचारी ॥
त्यजो अन्यआश्रय भजों पदपंकज द्वारकेशप्रभुकी बलहारी ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Jopein srivallabh charan gahe !. | जोपें श्रीवललभ चरण गहे !।
तो मन करत वृधा क्यों चिंता हरि हियें आय रहे ॥१॥
जन्म जन्म के कोटि पातक छिनहींमांझ दहे ॥
साधन कर साधो जिनको उस सब सुख सुगम लहे ॥२॥|
कोटिकोटि अपराध क्षमा कर सदा नेह निवहे ॥
अब संदेह करो जिन कोऊ करुणासिंधु लहे ॥ ३॥॥
अबलो विन सेवें श्रीवललभ भवदु:ख बहुत सहे ॥
रसिक महानिधि पाय ओर फल मनवचक्रम न चहे ॥४॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Jaya shree vallabh charan kamal shir naaiye | | जय श्री वललभ चरन कमल शिर नाइ ये |
परम आनन्द साकार शशी शरदमुख मधुर वानी भक्त जनन संग गाइये ।जय.।।
राज तम छांड मध्य सत्व के संग गही राखि विश्वास प्रेम पंथ को धाइये।॥।
कहे ब्रजाधीश वृंदाविपिन दंपति ध्यान धर धर हिये दृगन सिराइये ।|जय.॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Bhairav |
Srivallabh madhurakriti merey . | श्रीवल्लभ मधुराकृति मेरे ।
सदा बसो मन यह जीवनधन। सबहीनसों जु कहत हों टेरे ॥१॥|
मधुर बदन अति मधुर नयनयुग। मधुर भ्रोंह अलकनकी पांत।
मधुर भाल बीच तिलक मधुर अति। मधुर नासिका कही न जात ॥ २॥
मधुर अधर रसरूप मधुर छबि | मधुर मधुर अति ललित कपोल |
मधुर श्रवनकुंडलकी झलकन | मधुर मकर मानो करत कलोल ॥।३॥
मधुर कटाच्छ कृपापूरन अति । मधुर मनोहर वचन विलास।
मधुर उगार देत दासनकों। मधुर बिराजत मुख मृदु हास ॥४॥
मधुर कंठ आभूषणभूषित । मधुर उरस्थल रूपसमाज |
अति विशाल जानु अवलम्बित | मधुर बाहु परिरंभन काज ।।५॥
मधुर उदर कंटि मधुर जानुयुग | मधुर चरण गति सब सुखरास |
मधुर चरणकी रेनु निरन््तर। जनमजनम मांगत हरिदास ॥६॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Ramkali |
Srivallabh srivallabh shree balalabh kripa nidhan atee udaar | श्रीवललभ श्रीवल्लभ श्री बललभ कृपा निधान अति उदार
करुनामय दीनद्वार आयो ॥
कृपाभर नयनकोर देखीये जु मेरी ओर जन्म जन्म
शोध शोध चरण कमल पायो ॥ १॥।
कीरति चहूं दीश प्रकाश दूर करत विरहताप
संगम गुण गान सदा आनन्द भर गाऊं ॥
विनती यह मान लीजे अपनो हरिदास
कीजे चरणकमल वास दीजे बलि बलि बलि जाऊं ॥।२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bibhaas |
Srimadacharya key charannakh chihn koo dhyaan urmein sadaa rahat jinake. | श्रीमदाचार्य के चरणनख चिह्न को ध्यान उरमें सदा रहत जिनके।
कटत सब तिमिर महादुष्ट कलिकाल के भक्तिरस गूढ दृढ होत तिनके || १॥
जंत्र अरु मंत्र महातंत्र बहु भांति के असुर अरु सुरनको डर न जिनके।
रहत निरपेक्ष अपेक्ष नहि काहुकी भजन आनन्द में गिने न किनके ॥२॥
छांड इनको सदा औरको जे भजे ते परे संसूतिकूप भटके ।
धार मन एकश्रीवल्लभाधीश पद करन मनकामना होत जिनके ॥। ३॥
मत्त उन्मत्त सों फिरतअभिमान में जन्म खोयो वृथा रातदिनके |
कहत श्रुतिसार निरधार निश्चय करि सर्वदा शरण रघुनाथ जिनके ।।४॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bilawal |
Balallabh chaahe soee karey . | बलल्लभ चाहे सोई करे ।
जो उनके पद दृढ करि पकरे महारस सिंधु भरे ॥१॥
बेद पुर्नन सुघरता सुन्दर ये बातन न सरे।
श्रीवल्लभ के पदरज भज के भवसागरतें तरे ॥ २॥
नाथके नाथ अनाथ के बंधु अवगुण चित न धरें।।
पद्मनाभकुं अपनो जानिके डूबत कर पकरे ।। ३।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Ramkali |
Charan lagyo chita mero srivallabh charan lagyo chita mero .. | चरण लग्यो चित मेरो श्रीवललभ चरण लग्यो चित मेरो ॥
इन विन ओर कछु नहि भावे इन चरणनको चेरो ॥ १॥।
इनहि छांड ओर जो धावे सो मूरखजु घनेरों ॥
गोविंददास यह निश्चय कर सोड़ ज्ञान भलेरो ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bilawal |
Srivitthalnathjuke charansharan ..| | श्रीविद्डलनाथजूके चरणशरणं ॥|
श्रीवल्लभनंदनं कलिदु:खखंडनं पूरणपुरुषोत्तमं त्रयतापहरणं ॥१॥
सकलदु:खदारणं भवसिंधु- तारणं जनहितलीलादेहधरणं ॥
कान्हरदासप्रभु॒ सबसुखसागरं भूतलदृढभक्तिप्रकटकरणं ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Praatasmein uthh srivallabhanandanke guna gaauun ..| | प्रातसमें उठ श्रीवल्लभनंदनके गुण गाऊं ॥|
श्रीगिरिधर गोविंदको नाम ले श्रीबालकृष्णजीकों शीश्ञ नाऊं॥ १॥|
श्रीगोकुलनाथजीको प्रणाम करत श्रीरघुनाथजीकों देख नयनन सुख पाऊं ॥
श्रीयदुनाथ संग खेलत घनश्यामजू इनकी प्रीति हों कहांलो सिराऊं॥।२॥
यह अवतार भक्तहितकारण जो परमपदारथ पाऊं ॥|
विनती कर मागत ब्रजपतिपें निशदिन तिहारो दास कहाऊं ।।३॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Srivitthalnathjuke charansharan ..| | श्रीविद्डलनाथजूके चरणशरणं ॥|
श्रीवल्लभनंदनं कलिदु:खखंडनं पूरणपुरुषोत्तमं त्रयतापहरणं ॥१॥
सकलदु:खदारणं भवसिंधु- तारणं जनहितलीलादेहधरणं ॥
कान्हरदासप्रभु॒ सबसुखसागरं भूतलदृढभक्तिप्रकटकरणं ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Srivallabh prabhu atee dayal deeje darshan kripal, deen zaan | श्रीवललभ प्रभु अति दयाल दीजे दरशन कृपाल, दीन जान
कीजे आपनो दोष जिन विचारी।
होंतों अपराध भर्यो धर्म सबे परहयों कीयो न कुछ भलोकाज जाहिचित्त धारो ॥ १॥
दूरि परें पल पल दुख पावत हो प्राणनाथ,तुमही ते होड़ हे प्रभु रसिक को निवारो ॥
मेरो पकर्यो हे हाथ बांध्यो पद कमल साथ हाथ, हों अनाथ ताहि भूल जिन विसारो ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-006 | Bilawal |
Srivitthalesh vitthalesh vivalesh kahi ray . | श्रीविद्डलेश विद्उलेश वि्वलेश कहि रे ।
इनके संबंध विना दृश्यमान वस्तुमात्र ताको तू जियमें कलेश कहि चहि रे ॥ १॥
रसना गुणरूपको निशवासर कर यह सुख निरंतर अहार जेसे लहि रे॥
श्रीविद्डलिशके श्रीवल्लभके पदको पराग पावे जहां तिनके तू दासनको दास भयो रहि रे ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Gaauun srivallabhanandan key guna laauun sadaa munn angsarojan |. | गाऊं श्रीवल्लभनंदन के गुण लाऊं सदा मन अंगसरोजन |।
पाऊं प्रेम प्रसाद ततछिन गाऊं गोपाल गहे चितचोजन ॥।१॥
नवाऊं शीशरिझाऊं लाल आयो शरण यह जो प्रयोजन ॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविद्डल छबि पर बारूँ कोटि मनोजन ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Ramkali |
Jaya jaya jaya srivallabhanand .. sakalkala bundavanchand ...1.. | जय जय जय श्रीवल्लभनंद ॥ सकलकला बुंदावनचंद ॥।१॥
वाणी वेद न लहे पार ॥ सो ठाकुर श्रीअंकाजीद्वार ॥ २॥
शेष सहस्रमुख करत उच्चार ॥ ब्रजजन जीवन प्राण आधार ॥३॥
लीला ही गिरिधार्यो हाथ ॥ छीतस्वामी श्रीविद्डलनाथ ।।४॥। | Shree Gusainji | NityaPad-007 | Bhairav |
Shree vidvalesh vitthallesh rasna rutt merrie .. | श्री विद्वलेश विद्ललेश रसना रट मेरी ॥
ग्रंथन को यह सार याहिते होत पार वारबार तोसों कहूं तुव हितकेरी । १॥
चाहे जो भलो तेरो कह्यो वेग मान मेरो भजि लें श्रीघोषनाथ धन्य जीवन तेरी ॥
जगनाजनको सहाय प्रेमपुंज सुयश गाय असत वात दूर करो विषया अरुझेरी ॥२॥
| Shree Gusainji | NityaPad-007 | Bhairav |
Praatahi shree gokulesh gokulesh naam . | प्रातहि श्री गोकुलेश गोकुलेश नाम ।
सकल सुख निधान मा न करत त्रिबिध दुःख की हान यह जिय जान भजो अष्टयाम ।॥।१॥
इन विना योग यज्ञ करत वैराग्य त्याग विविध भाँत नेम धर्म करत सब निकाम ।।
निश्चय गहि चरण कमल भक्ति भाव हिये अमल गावत मुख निरख दास वारूँ कोटि काम ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Praatahi srigokulesh gokulesh gaauun .. | प्रातहि श्रीगोकुलेश गोकुलेश गाऊँ ॥
पूरण पुरुषोत्तम वपु धरे बदत त्रैलोकनाथ श्री विट्ठलेश नंदन निरखनयन सिराऊं ॥ १॥
श्री वल््लभजू के शरण आये कलियुग के जेते जीव उद्धेरे समूह तिनहीं कहालों गिनाऊँ।।
जे कबहूँक नामलेत तिनहूं को अभयदेत मांगत रघुनाथ दास निकट रहन पाऊँ ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Srigokulgamko pendo hii naanyaaro ..| | श्रीगोकुलगामको पेंडो ही न््यारो ॥|
मंगलरूप सदा सुखदायक देखियत तीन लोक उजियारो ॥१॥
जहां वल्लभसुत निर्भय बिराजत भक्तजनके प्राणनप्यारो ॥
माधोदास बल बल प्रतापबल श्रीविट्ठल सर्वस्व हमारो ॥२॥ | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Jaya jaya jaya srivallabhanandan. | जय जय जय श्रीवल्लभनंदन।
सुर नर मुनि जाकी पदरजवंदन ॥। १
मायावाद किये जू निकंदन।॥।
नाम लिये काटत भवफंदन ॥२॥।
प्रकट पुरुषोत्तम चरचत चंदन ॥
कृष्णदास गावत श्रुतिछंदन ॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Praat samein shree vallabh sutako punya pavitra vimal yash gaauun... | प्रात समें श्री वललभ सुतको पुण्य पवित्र विमल यश गाऊं॥।
सुंदर सुभग बदन गिरिधर को निरख निरख दोऊ नैन शिराऊं ॥ १॥
मोहन बचन मधुर श्री मुख के श्रवण सुनि सुनि हृदय बसातुं ॥।
तनमन प्राण निवेदन यह विधि अपने को सुफल कहाऊं ॥ २॥
रहो सदा चरण के आगे महाप्रसाद उच्छिष्ट हों पाऊं॥ नंददास प्रभु यह मांगत है श्रीवल्लभ कुल को दास कहाऊं ॥ ३॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Praat samein shree vallabhasutake vadan kamal koo darshan keeje .. | प्रात समें श्री वललभसुतके वदन कमल को दर्शन कीजे ॥
तीन-लोक-बंदित पुरुषोत्तम उपमाहि पटतर दीजे ।।१॥
श्रीवल्लभकुल उदित चंद्रमा यह छबि नयन चकोर पीजे ॥
नंददास श्री वललभसुत पर तनमनधन न्योछावर कीजे ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Praatasmein srimukh dekhanko sevakjan thaade singhdwar . jaya | प्रातसमें श्रीमुख देखनको सेवकजन ठाडे सिंघद्वार । जय
जय जय श्रीवल्लभनंदन दरशन दीजे परमउदार ॥ १॥ सौभगसीमा सुंदरता शोभा
मेघगंभीर गिरा मृदु धा र ॥ निरखत नयनन मोह्यो मनन््मथ श्रवणन सुनत वचन
अपार ॥२॥ नयनमंगल श्रवणन मंगल यश पुरुषोत्तमलीला अवतार ॥ जन
भगवान पिय कुंजविहारी अगणितमहिमा अगम अपार ॥। ३॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Praat samein srivallabh suta koo uthtahin rasna leejiye naam .. | प्रात समें श्रीवललभ सुत को उठतहिं रसना लीजिये नाम ॥
आनंदकारी प्रभु मंगलकारी अशुभहरण जनपूरणकाम ॥| १॥ याहि लोक परलोक
के बंधु को कहि सके तिहारे गुण ग्राम ॥। नंददास प्रभु रसिक शिरोमणि राज
करो श्री गोकुलसुखधाम ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Visad sujas srivallabh sutkau, praatah uthat nita anudin gaauun. | विसद सुजस श्रीवल्लभ सुतकौ, प्रातः उठत नित अनुदिन गाऊं।
कलिमल-हरन चरन चित धरिके, उपजै परम सुख दुःख बिसराऊं ॥
भक्ति भाव अरू, भक्तनि कौ रस, जानें मान तिनहिं को ध्याऊं।
छीत-स्वामी' गिरिधारीजू के सुमिरत, अष्ट सिद्धि, नव निधि को पाऊं॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Merey kulkalmash sabahi naase dekh prabhaat prabhakarkanya ... | मेरे कुलकलमष सबही नासे देख प्रभात प्रभाकरकन्या ॥।
वे देखो पाप जात जिततितते ज्यौं मृगराज देख मृगसन््या ॥१॥
पोषत दे पयपान पुत्रलों हे जगजननी धन्य सुधन्या ॥
दियो चाहे गदाधरहुकों चरनकमलनिजभक्ति अनन्या ॥२॥ ' | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Douu coole khambh tarang seedhi sriyamuna jagat baikunthanishreni .. | दोऊ कूल खंभ तरंग सीढी श्रीयमुना जगत बैकुंठनिश्रेनी ॥
अति अनुकूल कलोलनके भर लियें जात हरिके चरणन सुखदेनी ॥१।।
जन्मजन्मके पाप दूरकर काटत कर्मधर्मधारपैनी । छीत-स्वामि गिरिधरजूकी
प्यारी सांवरेअंग कमलदलनैनी ।।२॥॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Deen zaan mohi deeje yamuna .. nandkumar sadaa barr mango gopinki daasi mohi keeje ....|1.... | दीन जान मोहि दीजे यमुना ॥ नंदकुमार सदा बर मांगो गोपिनकी दासी मोहि कीजे ।॥।|१॥॥
तुम तो परम उदार कृपानिधि चरण शरणसुखकारी ॥ तिहारे वश सदा लाडलीवर तब तट क्रीडत गिरिधारि ॥२॥
सब ब्रजजन विरहत संग मिल अद्भुतरासविलासी ॥ तुमारे पुलिन निकट कुंजनद्रम कोमल शशी सुबासी | ३॥।
ज्यौं मंडलमें चंद बिराजत भरभर छिरकत नारी॥ श्रमजल हसत नहात अतिरसभर जलक्रीडा सुखकारी ॥।४॥
रानीजीके मंदिरमें नित उठ पाय लाग भुवनकाज सब कीजे | परमानंददास दासीव्हे नंदनंदन
सुख दीजे ॥॥५॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Atimanjul jalpravaah manohar sukh avagaahat vidit raajatati taraninandini .. | अतिमंजुल जलप्रवाह मनोहर सुख अवगाहत विदित राजतअति तरणिनंदिनी ॥
श्यामवरन झलक रूपलोललहरवर अनूप सेवितसंतत मनोजवायुमंदिनी ॥१॥
कुमुदकुंजजन विकास मंडित दिसदिस सुबवास कुंजत अलिहंसकोक मधुरछंदिनी ॥
प्रफुल्लित अरविंदपुंज कोकिलकलसारगुंज गावत अलिमंजुपुंज विविधवंदिनी ॥२॥
नारदशिवसनकथध्यास ध्यावत मुनि धरत आस चाहत पुलिनवास सकलदुःख निकंदिनी ॥
नाम लेत कटत पाप मुनिकिन्ननऋषिकलाप करत जाप परमानंद महाआनंदिनी ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Ramkali |
Prafullit bunn vividharang jhalkat yamunatanrag saurabh ghana aamodit atisuhavno .. | प्रफुल्लित बन विविधरंग झलकत यमुनातंरग सौरभ घन आमोदित अतिसुहावनो ॥
चिंतामणि कनकभूमि छबिअद्भुत लता झूमि सीतलमद अतिसुगंध मरुत आवनो ॥ १॥
सारसहंस शुकचकोर चित्रित नृत्यत सुमोर कलकपोत कोकिलाकल मधुर गावनो ॥
जुगल रसिकवर विहार परमानंदछबिअपार जयति चारुवृंदावन परम भावनो ॥। २॥॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Ramkali |
Sriyapunaji patit paavan karye || | श्रीयपुनाजी पतित पावन कर्ये ||
प्रथमही जब दियो दरसन सकलपातक हर्ये ॥१॥
जलतरंगन परस कर पयपान सो मुख भर्ये ॥
नाम सुमरत गई दुरमति कृष्णजस विस्तर्ये ॥ २॥
गोपकन्या कियो मजन लालगिरिधर
बर॒यो ॥ सूर श्रीगोपाल सुमरत सकल कार्य सर्ये ॥। ३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Yeh jamuna gopalahi bhaaven .. | यह जमुना गोपालहि भावें ॥
जमुना जम्तुना नाम उचारत धर्मराज ताकी न चलावबें ॥१॥
जे जमुनाको जान महातम वारंवार प्रणाम करे |॥।
ते जमुना अवगाहनमज्जन चिंतित ताप तनकेजु हरे ॥२॥
पद्मपुराण कथा यह पावन धरनी प्रति वाराह कही ॥
तीर्थमहातम जान जगतगुरु सो परमानंददास लही ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Yeh prasaad houn paaruun sreejmunaji .. | यह प्रसाद हों पारऊं श्रीजमुनाजी ॥
तुम्हारे निकट रहा निशवासर रामकुष्णगुन गाऊं।।१॥
मजन करूं विभलजलपावन चिंताकलेस बहाऊं ॥
तिहारी कृपातें भानुकी तनया हरिपद प्रीत बढाऊं ॥२॥
बिनती करोंयही बर मागों अधमन संग बिसराऊं ।॥।
परमानंदप्रभु सबसुखदाता मदनगोपाल लडाऊं ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Tihaaro daras mohi bhaave sriyamunaji .. | तिहारो दरस मोहि भावे श्रीयमुनाजी ॥
श्रीगोकुलके निकट बहत हो लहरनकी छबि आवे ॥१॥
सुखदेनी दुःखहरनी श्रीजमुनाजी जे जनप्रात उठ न्हावे।
मदनमोहनजुकी खरी हु पियारी पटरानी जु कहावे ॥। २॥।
बृंदावनमेंरास रच्यो हे मोहन मुरली बजावें ॥
सूरदास प्रभु तिहारे मिलनकों वेद विमल जस गावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Sreejmunaji adhamuddhaarani main jaani | | श्रीजमुनाजी अधमउद्धारनी मैं जानी |
गोधनसंग श्यामघनसुंदर ललितत्रिभंगी दानी ॥१॥
गंगाचरन परसतें पावन हरसिरचिकुर समानी ॥।
सात समुद्र भेद यमभागिनी हरि नखशिख लपटानी ॥ २॥| रासरसिकमणि नृत्यपरायण प्रेमपुंजठकुरानी ॥
आलिंगन चुंबन रस विलसत कृष्णपुलिनरजधानी ॥। ३॥
ग्रीष्मऋतु सुखदेत नाथ कुं संग राधिकारानी ॥
गोविंदप्रभुरवितनया प्यारी भक्तिमुक्तिकी खानी ॥।४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Srijmunajiki mahima mopein varani naan jaaee .. | श्रीजमुनाजीकी महिमा मोपें वरनी न जाई ॥
सूरसुता घनश्यामवरन प्रफुल्लित रूप निकाई।॥। १॥
श्रीहरि गोपवधू द्विज सब श्रीगोकुलके लरकाई ॥
ब्रजाधीश प्रभु आदि भक्तनकों सकलसिद्धि सुखदाई ॥।२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Tum summ or naan koee sreejmunaji ..| | तुम सम ओर न कोई श्रीजमुनाजी ॥|
करो कृपा मोहि दीन जानकें निज ब्रजवासो होई ॥१॥
राखो चरण शरन तरणितनया जन्म आपदा खोई ।|
यह संसार स्वारथकों सबविध सुत्बंधु सगो न कोई ॥।२॥।
प्रेमभजनमेंकरत विध्नता संत संतापे सोई |
ताको संग मोहि सपने न दीजे मांगत नयन भररोई ॥३॥
गरलपान डारत अमृतमें विषयारससों मोई |
रसिक कहै दीन होयमांगू लहर समुद्र समोई ॥४॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Tihaaro daras houn paauun sreejmunaji .. | तिहारो दरस हों पाऊं श्रीजमुनाजी ॥
श्रीगोवरधन श्रीवृंदावन ब्रजरज अंग लगाऊं ॥।१॥
दिन दसपांच रहों श्रीगोकुल ठकुरानीघाटहूं न्हाऊं ॥
दासन ऊपर करो कृपा संतनके संग आऊं ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Jamunasi naheen koee dukkhaharani .. | जमुनासी नहीं कोई दुःखहरनी ॥
जाके स्नानते मिटत हे पाप होतहे आनंद सुख्रकी जु करनी ॥१॥
महिमा अगाध अपार इनके गुण बेदपुराण न बरणी ॥
कहत ब्रजपति तुम सबन को समुजाय छूटे यमडर जो आवे इनकी शरणी ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Jamuna jamuna naam bhajo .. | जमुना जम्ुुना नाम भजो ॥
हरखत करो आराधन इनको ओरको पंथ तजो ॥१॥
देहें सकल पदारथ तुमकों इनके नाम रजो ॥
व्रजपति की अतिही पियारी ताते सकल सिंगार सजो ॥॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Nirakhat hii munn atee anand bhayo dekh prabhaat prabhakarkanya ... | निरखत ही मन अति आनंद भयो देख प्रभात प्रभाकरकन्या ॥।
जलपरसत ही सकल अघ भाजे ज्यौं हरि देख हरणकी सनन्या ॥१॥
ओर जीवनकों औरनकी गति मेरी गति तो तुमहि अनन्या ॥ १॥
व्रजपति की तुम अतिहि पियारी तुम संगमतें जान्हवी धन्या। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Jagatamen bamunaji paramkripal | binati karat turat sunlini | जगतमें बमुनाजी परमकृपाल | बिनती करत तुरत सुनलीनी
भये मोपें दयाल ।। १॥॥ जो कोऊ मज्जन करत निरंतर तातें डरपतहें यमकाल ।।
ब्रजपतिकी अति प्यारी कालिंदी स्मरत होत निहाल ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Jayati bhanutnaya charanyugal vandey.. | जयति भानुतनया चरणयुगल वंदे॥
जयति ब्रजराजनंदप्रिये सर्वदा देत आनंद ज्यों शरदचंदे ॥१॥
जयति सकलसुखकारिणी कृष्णमनहारिणी श्रीगोकुल निकट बहत मंदे ॥।
जाके तट निकट हरि रासमंडलरच्यो तहां नृत्यत ताता थेई थंदे ।२।।
जयति कलिंदगिरिनंदिनी देत आनंदिनी भक्तके हरत सब दुःख दंदे ॥
चित्तमें ध्यान धर मुदित ब्रजपति कहें जयति यमुने जयति नंदनंदे ॥३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Namo taranitanaya parampuneet jagpavani krishnamanbhavani | नमो तरणितनया परमपुनीत जगपावनी कृष्णमनभावनी
रुचिरनामा )| अखिलसुखदायिनी सबसिद्धिहेतु श्रीराधिकारमणरतिकरण
शयामा॥। १॥ विमलजल सुमन काननमोदयुत पुलिन अतिरम्य प्रियव्रजकिशोरा ।।
| Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Sreejmunaji tihaaro pulin mohi bhaaven .. | श्रीजमुनाजी तिहारो पुलिन मोहि भावें ॥
सुरब्रह्मादिक ध्यान धरतहें सो सुपने नहिं पावें॥९॥
बिच बिच कुंजसदन अतिसुंदर श्यामाश्याम सुहावें ॥
चहूंदिस सकलफूल अति फूले गुहि गुहि कंठ धरावें | २॥
कुसुमनके बीजना जो संवारे सखियन बांह दुरावें ।
सूरदास प्रभु सबसुखसागरदिनदिन सोभा पावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Jayati sriyamune prakatakalpalatike .. ashtavidh siddhi | जयति श्रीयमुने प्रकटकल्पलतिके ॥ अष्टविध सिद्धि
अद्भुतवैभव सकल स्वजन विख्यात स्वाधीनपतिके ।। १॥।
केलिश्रमसुरतपयरूपब्रजभूपको पुत्र पयपान दे विश्वमाता ॥
अंग नूतन करत पुष्टि तब अनुसरतत्रिदलरसकेलिकी अमित दाता ॥२॥
रहत यमद्वारते मुक्त सुखचारते नामत्रयअक्षर उच्चार कीने।।
उभयलीलाविष्ट ब्रज॒प्रिय कुमारिका तुर्यप्रिया बदतरसरंग भीने ॥३॥
अनावृतब्रहते सदा वृत व्है रहीकनकशाखाविटप्शामबल्ली॥
सदा प्रफुल्लित द्वारकेश अवलोकके नित्य
आनंद आभीरपल ्ली ॥।४॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Priyasang rangbhar curr vilase .. | प्रियसंग रंगभर कर विलासे ॥
सुरतरससिंधुमें अतिही हरषित भई कमलज्यों फूलते रवि प्रकाशे ॥१॥
तनते मनते प्राणते सर्वदा करतहै हरिसंग मृदुलहासे ॥
कहत ब्रजपति तुमसबनसों समजाय मिटे यमत्रास इनहीं उपासे ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Sriyamunaji yeh vinati chita dhariye .. giridharlal | श्रीयमुनाजी यह विनती चित धरिये ॥ गिरिधरलाल
मुखारविंदरति जन्मजन्म नित करिये॥| १॥ विषसागर संसार विषम संगतें मोहि
उद्धरिये ॥ काम क्रोध अज्ञान तिमिर अति उरअंतरते हरिये ॥२॥ तुम्हारे संग
बसो निजजनसंग रूप देख मन ठरिये ॥ गाऊं गुण गोपाललालके अष्ट व्याधिते
डरिये ॥३॥ त्रिविध दोष हरके कालिंदी एक कृपा कर ढरिये।॥ गोविंददास यह
बर मांगे तुम्हारे चरण अनुसरिये ॥४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Srivrindavan mein yamuna sohe, jinake guna aru sobha nirakhat | श्रीवृंदावन में यमुना सोहे, जिनके गुण अरु सोभा निरखत
मदनमोहन पिय मोहे ॥ १॥॥ सदा संयोग रहत इनही को हरिरस सो अति पागी,
'रसिक' कहे इनके सुमिरन तें हरिचरणन अनुरागी ॥२।॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Sriyamuna karat kripa koo daan, joe kouu aavat daras tihaare | श्रीयमुना करत कृपा को दान, जो कोऊ आवत दरस तिहारे
सब के राखत मान ॥| ९॥॥ कलि के जीव दोष भंडारी करत तिहारो पान | भये
अनन्य सबही ओरे तें सुर मुनि करत बखान ॥२॥ जे जन हरिलीला अधिकारी
करत तिहारो गान, मैं मतिमंद कहां लौं बरनों रसिकदास जन जान ।।३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Sriyamuna janakon sukhakarani, sharan lait daivi jeevan koo tinn | श्री यमुना जनकों सुखकरनी, शरण लेत दैवी जीवन को तिन
के कोटि दोष को हरनी ॥१॥ पुष्टिभक्ति में बाधक जो कछु ताकों मेंट भक्तिरस
भरनी, दास" कहे सरन हों आयो महा कलिकाल सिंधु तें तरनी ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Namo devi yamune munn vachan karm karu sharan teree . | नमो देवी यमुने मन वचन कर्म करु शरण तेरी ।
सकल सुखकारिनी भवसिंधुतारिनी, दरसन तें कटत हैं कर्म बेरी ॥१॥॥
अभय पद दायिनी भक्त मन भायिनी, करि कृपा पूरिये साध मेरी,
दीजिये भक्तिपद लालगिरिधरनकी, काटिये विषय कृष्णदास* केरी ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Curry pranaam yamunajal lahiye, srivallabh-padaraj prataap tein, | करी प्रणाम यमुनाजल लहिये, श्रीवल्लभ-पदरज प्रताप तें,
श्रीयमुना मुख कहिये ।।१॥ पूरन पुरुषोत्तम ब्रज प्रकटे इनहूं प्रकट्यो चहिये।।
जो जन लक्ष धरा तें ऊंचों, रविमंडल तें बहिये।। २॥| नंदसुबन अरू कलिंदनंदिनी
दरसन रिपुतन दहिये 'हरिदास' प्रभु यह सुख सोभा नयनन ही में रहिये ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Sriyamunaji param kripal kahaave, darsan tein agh doori jaat hain | श्रीयमुनाजी परम कृपाल कहावे, दरसन तें अघ दूरि जात हैं
हरिलीला सुधि आवे ॥१॥ जे जन तेरे निकट बसत हैं नंदनवन रस पावें, जीव
कृत्य देखत नहिं कबहूं अपनो पक्ष दृढ़ावे ॥२॥। कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तु यह सुन
मन ललचावे, 'रसिकदास' को दास जानियें तातें बह जस गावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Sriyamunaji nirakh sukh upjat, sanmukh vundavipin suhaaye, | श्रीयमुनाजी निरख सुख उपजत, सन्मुख वुंदाविपिन सुहाये,
श्रीविश्रांत वललभजु की बैठक, निर्मल जल यमुना के नहाये ॥१॥ भुजतरंग
सोहत अति नीके, भँवर कंकण सुहाये, ब्रजपतिकेलि कहा कवि बरने, शेष
सहख्रमुख पार न पाये ॥ २॥ श्रमजल सहित अगाध महारस, लीलासिंथु तरंगन
छाये, सकल सिद्धि अलौकिक दाता, जे जन तकि चरनन चित लाये ॥॥३॥।
रविमंडल द्व ार होय प्रकटी, गिरि कलिंद सिर तें ब्रज धाये, हरिदास' प्रभु सोभा
निरखत मन क्रम वचन इनके गुण गाये ॥४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Joe koee shree yamuna naam sambhaare, taako daras paras kouu karahin | जो कोई श्री यमुना नाम संभारे, ताको दरस परस कोऊ करहीं
वाही को वे तारे ॥१॥ भक्त की महिमा बरनि न सके यम हा हा करि हारे,
“चतुर्भुज' प्रभु गिरिधरन लालको नितप्रति वदन निहारे ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Kalindi kalikalmash harni, ravitnaya yamanuja sthaama | कालिंदी कलिकल्मष हरनी, रवितनया यमअनुजा स्थामा
महासुंदरी गोबिंदघरनी ॥।९॥ जय यमुने जय कृष्णवल्लभा पतितन को पावन
भवतरनी, सरनागत को देत अभय पद जननी तजत जस सुतकी करनी ॥।२॥
सीतल मंद सुगंध सुधानिधि धाई धर बपु उत्तर धरनी, परमानंद' प्रभु परम
पावनी युग युग साख निगम नित वरनी ॥ ३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Dadhike matware kaanh kholo queyon naan palaken.. | दधिके मतवारे कान्ह खोलो क्यों न पलकें।।
शिश मुकुटकी लटा छुटि और छुटि अलकें ॥१॥
सुरनरमुनि द्वार ठाड़े दरस कारन कीलकें ॥
नासिकाको मोती सोहे बीच लाल ललकें ॥ २॥
कटि पीतांबर मुरलीकर श्रवन
कुंडल झलकें ॥ सूरदास मदनमोहन दरस देहो भलकें ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-015 | Bibhaas |
Chalat nyaari naval yamune. gaay vrajbhakt key bhaav koo dekhi | चलत न्यारी नवल यमुने। गाय ब्रजभक्त के भाव को देखि
के, भाव सहित तहां करत गवने ॥१॥ आई ब्रजभूप पिय भाव उपजाब ही,
जलस्थल सिद्ध दोऊ करत रवने, निरख सोभा हरिदास' निसदिन यह, मन
क्रम वचन करी सीस नमने ॥।२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bilawal |
Namo namo jayati sriyamune, jaya kalindi pulin manohar, | नमो नमो जयति श्रीयमुने, जय कालिंदी पुलिन मनोहर,
स्यामास्याम करत हैं रबने ॥१॥ जलक्रीडा करत तेरे तट, तुम सम कोऊ नहीं
तीनों भवने, सुरनर मुनि के ध्यान न आवत सो प्रभु तिहारे गृह गवने ।॥२॥ तुम
तो परमकृपालु जगजननी, पतितन को पावन भवतरनी, साख निगम पुरानन
बरनी, सूर' प्रभु के मन को हरनी ॥३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bhairav |
Sriyamunapan karat hii rahiye, vraj basavabo neeko laagat haye | श्रीयमुनापान करत ही रहिये, ब्रज बसवबो नीको लागत है
लोकलाज दु:ख सहिये ।।१॥ श्रीवललभ श्रीविट्ठल गिरिधर गावत सब सुख
पैये, ब्रजपति' मुख अवलोक महासुख दरसन दूग न अधैये ।।३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bilawal |
Bhor bhayo jaago nandanand .. sanga sakhaa thaadhe jagwand ...1.. | भोर भयो जागो नंदनन्द ॥ संग सखा ठाढे जगवंद ॥।१॥
सुरभिन पय हित वत्स पिवाये ॥ पंछी यूथ दसोंदिश धाये ॥२॥
मुनि सर तके तमचर स्वरहार्ये ॥ सिथिलधनुष रतिपतिगहि डार्ये ।। ३॥
निशिहीघटी रविरथ रुचिराजे || चंद मलीन चकई रतिसाजे ॥।४॥
कुमुदिनी सकुची वारिज फूले ॥। गुंजत फिरत अलिगणझूले ॥५।॥
दरसनदेहो मुदितनरनारी॥ सूरदास प्रभुदेवमुरारी ।।६॥ | Jagayeve | NityaPad-015 | Bibhaas |
Utho merey laal gopal ladley rajani veeti bimal bhayo bhor .. | उठो मेरे लाल गोपाल लाडले रजनी वीती बिमल भयो भोर ॥
घर घर दधि मथत गोपिका द्विज करत वेदकी सोर ॥ १॥ करो कलेऊ दधि ओर
ओदन मिश्री मेवा परोसूं ओर ॥आस करण प्रभु मोहन तुम पर वारों तन मन
प्राण अकोर ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Sehera dharey-taba praat hii kunj mahal sejan tein aalsakon taja | सेहेरा धरे-तब प्रात ही कुंज महल सेजन तें आलसकों तज
दुलहनि जागी॥ अति श्रम सिथिल अंग देखियत है श्याम सुन्दर अधरन रस
पागी ॥ १॥ बींजना ब्यार करत ललिता ले श्रम जल मुखतें पोंछन लागी।॥। देख
देख मुसिकात परस्पर कहत लाल लोचन अनुरागी ॥।२॥ जागी दुल्हे संग रैन
सब एयाम केलि सुख सदा सुहा गी ॥ जन त्रिलोक प्रभुसों रति मानी कोऊ न
ऐसी बड़भागी ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-016 | Bibhaas |
Jaago gopallal duho dhauri gaiyaan .. sadadoodh muth pivo | जागो गोपाललाल दुहो धौरी गैयां ॥ सददूध मथ पीवो
घैयां।।१॥ भोर भयो वन तमचर बोले ॥ घरघर गोप बगर सब खोले ।॥।२॥
गोपी रई मथनिया धोवे ॥| अपनो अपनो दह्यो विलोवे ।।३॥ संगके सखा
बुलावन आये।॥ कृष्णनाम लेले सब गाये ॥४॥ भूषण वसन पलट पहराऊं॥
चंदनतिलक ललाट बनाऊं ॥।५॥ चतुर्भुज प्रभु श्रीगोवर्द्धनधारी ।। मुखछबिपर
बलगई महतारी ॥। | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Balkrishna jagahu merey pyaare ..dhru... baithi sez kahati haye janani . | बालकृष्ण जागहु मेरे प्यारे ॥ध्रु.॥ बैठी सेज कहती है जननी ।
बार बार मुखकमल निहारे ॥ १॥ सुन्यो वचन माता को जब ही । तनिक तनिक
दोऊ नैन उघारे ॥२॥ लिये उठाय अंक भरि तब ही ॥ उष्णोदक सो वदन
पखारे॥।३॥ माखन मिश्री और मलाई | ओट्यो दूध तुम लेहु दुलारे ॥४॥
विविध भांति पकवान मिठाई । आनन मेल अपुनपो बारे ॥५॥ मुख परखारि
झगुली पहराई। शिर ऊपर चौतनी जब धारे ॥॥६।। डोलत अजिर मुदित मनमोहन।
“ब्रज़जन' ओट भई जु निहारे ॥॥७॥ | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Jaagiye gopallal janani balzai .. utho taat praat bhayo | जागिये गोपाललाल जननी बलजाई ॥ उठो तात प्रात भयो
रजनीको तिमिर गयो टेरत सब ग्वालबाल मोहनाकन्हाई ॥। १॥।
उठो मेरे आनंदकंद गगनचंद मंदभयो प्रकट्यो अंशुमान भानु-कमलने सुखदाई ॥
सखा सब पूरत वेणु तुम बिना न छूटे धेनु उठो लाल तजो सेज सुंदर वरराई ॥॥२॥
मुखते पटदूरकियो यशोदाको दरसदियो ओर दथि मांगलियो विविध रस मिठाई ॥
जेवत दोऊ रामश्याम सकल मंगल गुणनिधान थारमें कछू जूठ रही मानदास पाईं ॥। ३॥।
| Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Laalan jagoho bhayo bhor .. | लालन जागोहो भयो भोर ॥
दूध दही पकवान मिठाई लीजे माखन रोटी बोर ॥ १॥।
विकसे कमल विमल वाणी सब बोलन लागे पंछी चहुं ओर ॥
रसिकप्रीतमसों कहत नंदरानी उठ बैठोहो नंदकिशोर ।२॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Jagoho tum nandkumar | | जागोहो तुम नंदकुमार |
बलबल जाउं मुखारविंदकी गोसुत मेलो करो शुंगार ॥ १॥
आज कहा सोवत त्रिभुवनपति ओर वार तुम उठत सवार॥
वारंबार जगावत माता कमलनयन भयो भवन उजार ॥ २॥
दधि मथों नवनीत देहों संगसखा ठाडे सिंघद्वार ।|
उठो क्योंन मोहि वदन दिखावो सूरदासके प्राण आधार ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Lalit laal srigopal soiye naan praatkaal yashoda maiya lait balaiya bhor bhayo baare.. | ललित लाल श्रीगोपाल सोइये न प्रातकाल यशोदा मैया लेत बलैया भोर भयो बारे॥
उठो देव करूं सेव जागिये देवादिदेव नंदराय दुहत गाय पीजिये पय प्यारे ॥१॥
रविकी किरण प्रकट भई उठो लाल निशा गई दशधिमथत जहां तहां गावत गुण तिहारे ॥
नंदकुमार उठे विहस कृपादृष्टि सब पे वरषयुगल चरण कमलन पर परमानंद वारे ॥ २॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Bhor bhayein bal jaauun jaago nandananda .. tamchar khaga karat ror | भोर भयें बल जाऊं जागो नंदनंदा ॥ तमचर खग करत रोर
अवनीपें होत सोर तरणिकी क्विरण तपें चंद भयो मंदा ॥१॥
भयो प्रात रजनीगई चकवी आनंद भई वेग मोचन करो सुरभीकुल फंदा )।
उठो भोजन करो मुकुट माथें धरो सखिन प्रति दरस देहो रूपनिधि कंदा ॥२॥
त्रिया दधिमथन करें मधुरे स्वर श्रवण धरें कृष्णगुण विमल यश कहत आनंदा ॥
निजजननयन आधार जगजीवनगुणन गुणकथनकों कहत श्रुति छंदा ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Uthhe nandlal sunat janani mukh-vaani .. | उठे नंदलाल सुनत जननी मुख-वानी ॥
आलस भरे नयन उठे शोभा की खानी ॥|१॥|
गोपीजन थकित भई चितवत सखी ठाढी ।।
नयन कर चकोर चंदवदन प्रीत बाढी ॥|२॥
माता जल झारी लिये कमलमुख पखोारें ॥
मीरहू को परस करत आलस विचाोरें ॥३॥
सखा द्वारे ठाडे सब टेरतहें तुमकों ॥।
यमुनातट चलो स्थाम चारन गोधनकों ॥४॥
सखा सहित जेबत बल भोजन
कछू कीनो ॥ सूरस्याम हलधरसंग सखा बोल लीनों ॥५॥ | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Utho hoe nandkumar bhayo bhansar jagawat nandrani .. jhaarike | उठो हो नंदकुमार भयो भनसार जगावत नंदरानी ॥ झारीके
जल वदन पखारो सुत कहि सारंगघानी ॥।९॥| माखन रोटी ओर मेवा भावे सो
लीजे आनी ॥ सूरदास मुख निरख यशोदा मन ही मन सिहानी ॥। २॥ | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Jaago jaago merey jagat ujiyaare .. | जागो जागो मेरे जगत उजियारे ॥
कोटि मदन वारो मुसकनि पर कमलनयन अखियन के तारे ॥१॥
सुरभी वच्छ गोपाल निशंक। ले यमुना के तीर जाओ मेरे प्यारे ॥|।
परमानंद कहत नंदरानी दूरंजिन जाओ मेरेब्रजरखवबारे ॥ २।॥
| Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Jaagiye gopallal anandanidhi nandbal yashomati kahey waranwar bhor bhayo pyaare . | जागिये गोपाललाल आनंदनिधि नंदबाल यशोमति कहे वारंवार भोर भयो प्यारे ।
नयनकमलसे विशाल पढत वापिकामराल मदनललित वदन ऊपर कोटि वारिडारे ॥ १॥
ऊगत अरूण विगत शर्बरी शशिकी किरण हीन दीप मलीन छीन झुति समूह तारे ॥
मानों ज्ञान घन प्रकाश वीते सब भवविलास आस त्रास तिमिर तोष तरणि तेज जारे ॥ २
बोलत खग मुखर निकर मधुरघोष प्रति सुनों परम प्राणजीवन धनमेरे तुमबारे ॥
मानों बंदी मुनिसूत बूंद मागधगण बिरद बदत जय जय जय जयति यश तुमारो उच्चारे |३॥ विकसत कमलावली चले फंदचंचरीक गुंजत कलमधुर ध्वनि त्याग कंजन न्यारे ॥
मानोंबैराग्य पाय शोक कूपग्रह विहाय प्रेममत्त फिरत भुत्य गुनत गुन तिहारे ॥॥४॥
सुनत वचन प्रिय रसाल जागे अतिशय दयाल भागे जंजाल विपुल दुःख कदंबटारे ॥
त्याग भ्रमकंद हूंद निरखकें मुखारविंद सूरदास अतिआनंद मेटे मदभारे ॥५॥। | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Praatasmein ghargharte dekhanakon aanihen gokulnari ..| apano krishna | प्रातसमें घरघरते देखनकों आंईहें गोकुलनारी ॥| अपनो कृष्ण
जगाय बशोदा आनंद मंगलकारी ॥१॥ सब व्रजकुलके प्राण जीवनधन
यासुतकी बलहारी ॥ आसकरण प्रभु मोहननागर गिरिगोवर्द्धनधारी ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Jaagiye gopallal pragat bhayo hans baal mitt gayo andhkaar | जागिये गोपाललाल प्रगट भयो हँस बाल मिट गयो अंधकार
उठो जननी मुखदिखाई ।। मुकुलित भये कमलजाल कुमुद वुन्दवन विहाल
मेटोजंजाल त्रिविधताप तन नशाई ।।१॥। ठाडे सब सखा द्वार कहत नंदके कुमार
टेरतहें वारवार आइये कन्हाई ॥ गैयन भई बडीवार भरभर पय थनन भार बछरा
गनकर पुकार तुम बिन यदुराई ॥२॥| ताते यह अटक पारी दोहन काज हंकारी
उठ आवो क्यों न हरि बोलत बलभाई॥ मुखते पट झटक डार चंदवदन दे उघार
यशुमति बलहारजाय लोचन सुखदाई ॥।३॥ थेनु दुहन चले धाय रोहिणीकों
लई बुलाय दोहनी मोहि दे मंगाय तबहींले आईं।। बछरा दियो थनलगाड़ दुहत
बैठकें कन्हाइ हसतहै नंदराय तहां मातादोऊ आई ॥|४॥ कहुं दोहनी कहूं धार सिखवत नंद वारवार वह छबि नहि पारवार नंदघर बधाई ।। तब हलधर कह्मो
सुनाय धेनु वन चलो लिवाय मेवा लीने मंगाय विविध रस मिठाई ।।५॥ जेंबत
बलराम स्थाम संतनके सुखद धाम धेनु काज नहि विश्राम यशोदा जललाई ॥
स्यथाम राम मुख पखार ग्वालबाल लये हंकार यमुनातट मन विचार गायन
हकराई ॥६॥ शुंग शंख नाद करत मुरली स्वर मधुर भरत ब्रजांगना मन हरत
ग्वाल गावत सुघराई ॥ बुंदावन सुर्त जाय धेनु चरत तृण अघाय श्याम हरख
पाय निखर सूरज बलजाई ॥७॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Chiraiya chuhchahanni suna chaktaiki baani kahat yashoda raani jaago merey laalaa. | चिरैया चुहचहांनी सुन चक्तईकी बानी कहत यशोदा रानी जागो मेरे लाला।
रविकी क्रिरण जानी कुमुदिनी सकुचानी कमलन विकसानी दशिमथेंबाला ॥१॥
सुबल श्रीदामा तोक उज्ज्वल बसन पहहरखें द्वारेंठाडे टेरतहे बाल गोपाला ॥
नंददास बलहारी उठो क्यों न गिरिधारी सब कोऊ देख्यो चाहे लोचन विशाला ॥ २॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Jaagiye gopallal dekhon mukh tero .. | जागिये गोपाललाल देखों मुख तेरो ॥
पाछें गृह काज करों नित्य नेम मेरो ॥।१॥
अरूण दिशा विरूगत निशा उदय भयो भान ॥
कमलनतें भ्रमर उडे जागिये भगवान ।। २॥
बंदीजन द्वार ठाडे करत यश उच्चार॥
सरस भेद गावतहें लीला अवतार ॥३॥
परमानंद स्वामी गोपाल परम मंगलरूप ॥
वेद पुराण गावतहें लीला अनूप ॥॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Jaagiye gopallal gwal dwaar thaade.. rainandhkar gayo chandrama | जागिये गोपाललाल ग्वाल द्वार ठाडे॥ रेनअंधकार गयो चंद्रमा
मलीन भयो तारेगण देखियत नही तरणि किरण बाढे ॥१॥
मुकुलित भये कमलजाल भवर गुंजत पुष्पमाल कुमुदिनी कुमलांनी ॥
गंधर्व गुणगान कर त स्नान दान नेम धरत हरत सकल पाप बदत वेद विप्र वानी ।२॥
बोलत नंद बारवार मुख देखूं तुव कुमार गायन भई बडी वार बृंदावन जेबों |
जननी कहत उठो लाल जानत जिय रजनी तात सूरदारप्रभु गोपाल तुमकों कछु खेवो ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Praatasame krishna rajeev lochan.. sanga sakhaa thaade gau mochan ..1.. | प्रातसमे कृष्ण राजीव लोचन।। संग सखा ठाडे गौ मोचन ॥१॥
विकसत कमल रटत अलि सेनी ॥| उठो गोपाल गुहेंर तेरी बैनी । २।।
खीन खांड घृत भोजन कीजे ॥ सद्य दूध धौरीको पीजे ॥३।।
सुतहि जान जगावत रानी ॥परमानंदप्रभु सब सुखदानी ।।४॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Jaago krishna yashodaju bolein yeh osar kouu soveho .. | जागो कृष्ण यशोदाजु बोलें यह ओसर कोऊ सोवेहो ॥
गावत गुन गोपाल ग्वालिनी हरखत दह्लो विलोवेहो ॥१॥
गोदोहन ध्वनि पूररहो ब्रज गोपी दीप संजोवेहो ॥
सुरभी हूंक वछरूवा जागे अनमिष मारगजोबेंहो ॥२॥
वेणु मधुर ध्वनि महूवर वाजे बेत गहे कर सेलीहो ॥ अपनी गाय
सब ग्वाल दुहतहें तिहारी गाय अकेली हो ॥३॥
जागे कृष्ण जगत के जीवन अरूण नयन मुख सोहेहो ॥
गोविंद प्रभु दुहत धेनु धोरी गोपबधू मन मोहेहो ।।४॥। | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Janani jagawat utho kananhaaee .. prakatyo tarani kiran gann | जननी जगावत उठो कनन््हाई ॥ प्रकट्यो तरणि किरण गण
छाई।॥१॥ आवो चंद्र बदन दिखराई ॥ वारबार जननी बलजाई ।। २॥। सखा द्वार
सब तुमहि बुलावत ॥ तुम कारण हम द्वारे आवत ।।३॥ सूरस्थाम उठ दरशन
दीन्हो ॥ माता देख मुदित मन कीन्हो ॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bhairav |
Yeh bhayo paachhilo pahar. kaanh kaannhh cutty terron laage baava | यह भयो पाछिलो पहर। कान्ह कान््ह कटि टेरन लागे बावा
नंदमहर॥।१॥ गोपवधू दधि मंथन लागी गोपन पुरे वेणु || उठो बलश्याम बछरूवा
मेलो रांभण लागी थेनु ॥२॥ ब्रह्म मुहूरत भयो सवारो विप्र पढन लागे वेद ॥
परमानंददासको ठाकुर गोकुलके दुःख छेद ।। ३॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Hariju koo darsan bhayo sabero.... | हरिजू को दरसन भयो सबेरो।॥।
बहुत लाभ पाऊंगीरी माईदह्ो बिकेगो मेरो ॥१॥
गली सांकरी एक जनेकी भटु भयो भट भेरो ॥
दे अंक चलीसयानी ग्वालिन कमलनयन फिर हेरो ॥ २॥
भोरही मंगल भयो भटूरीहे सबकाज भलेरो॥
परमानंदप्रभु मिले अचानक भवसागरको बेरो ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Bhor bhaye yashodaju boley jaago merey giridharlal ... ratna | भोर भये यशोदाजू बोले जागो मेरे गिरिधरलाल ॥। रत्न
जटित सिंघासन बैठो देखनकों आंयी ब्रजबाल ॥। १॥ नियरें आय सुफेंती खेंचत
बोहोर्यो हरि ढांपत बदन रसाल ॥ दूध दहीं माखन बहु मेवा भामिनी भरभर
लाई थाल ॥२॥ तब हरखत उठ गादी बेठे करत कलेऊ तिलकदे भाल ॥ देवी
आरती उतारत चतुर्भुजदास गावें गीत रसाल ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Houn parbhaat samein uthh aaee kamal nayan tumhaaron dekhan mukh .. | हों परभात समें उठ आई कमल नयन तुम्हारों देखन मुख ॥
गोरस वेचन जात मधुपुरी लाभ होय मारग पाऊं सुख ॥ १॥॥
कमलनयन प्यारोकरत कलेऊ नेक चिते मोतनकी जेरूख ॥
तुम सपने में मिलकैं विछुरे रजनीजनित कासों कहीयें दुःख ।।२॥
प्रीति जो एक लालगिरिधरसों प्रकट भई अबआय जनाई ॥
परमानंदस्वामी नागर नागरिसों ममनसा अरूझाई ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Uthhe praat: alsaat kahet meethi totri baat mangtahe sadd | उठे प्रात: अलसात कहेत मीठी तोतरी बात मांगतहे सद
माखन लाईहें यशोदामात ॥। वाजत नूपुर सुहात नाचत त्रैलोकनाथ देखत सब
गोपी ग्वाल नाहीनें अघात ।। १॥ नंदनंदन सुखदाई चिरजीयोरी कन्हाई निरखत
मुख या ढोटाको जीजतहें माई ॥ बालकेलि देखन आई रोम रोम सचुपाई
वललभ मुख हरख निरख लेत हें बलाई ॥।२॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Jagaavan aavegi vrajnari atee rasrang bharee .. atihi roop | जगावन आवेगी ब्रजनारी अति रसरंग भरी ॥ अतिही रूप
उजागर नागर सहज शुंगार करी ॥१॥
अतिही मधु स्वर गावत मोहनलालकों
चित्तहरे ॥ मुरारीदास प्रभु तुर्त उठ बैठे लीनी लाय गरे ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Laal hii naanhi jagaay sakat sunason batasjani .. apane | लाल हि नांहि जगाय सकत सुनसों बातसजनी ॥ अपने
जान अजहु कान मानत सुख रजनी ॥१॥ जब जब हों निकट जाऊँ रहत लाग
लोभा॥ तनकी सूधि बिसर गई देखत मुख शोभा ॥।२॥ वचननको जिय बहुत
करत सोच मनठाढी ॥ नयनन नयन विचार परे निरखत रूचि बाढी ॥।३॥ यह
विध बदनारविं द यशुमति जियभावे ॥ सूरदास सुखकी रास कहत न
बनिआवे ॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Praatasmein navkunj dwaar vhai lalitaalalit bajaai beena .. | प्रातसमें नवकुंज द्वार व्है ललिताललित बजाई बीना ॥
पोढेसुनत स्याम श्रीस्यामा दंपति चतुर नवीन नवीना ॥ १॥
अति अनुराग सुहाग भरे दोउ कोक कला जो प्रवीन प्रवीना ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपति सुख तन मन धन न्योंछावर कीना ॥। २॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Bhor bhayo jaago nandanand .. sanga sakhaa thaadhe jug bund ..1.. | भोर भयो जागो नंदनन्द ॥ संग सखा ठाढे जग बंद ॥१॥
सुरभिन पय हित वत्स पिवाये ॥ पंछी यूथ दसों दिश धाये ॥॥२॥
मुनि सरतके तमचर स्वर हारये | सिथिल धनुष रति पति गहि डार्ये ॥ ३॥
निशही घटी रविरथ रूचि राजे ॥ चंद मलीन चकई रति साजे ॥।४॥
कुमुदिनी सकुची वारिज झूले ॥ गुंजत फिरत अलिगण झूले ॥५॥
दरशन देहो मुदित नर नारी | सूरदासप्रभु देव मुरारी ॥६॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Praat samay uthh sowat sutako badan ughaarat nand .. rahi naan sakey | प्रात समय उठ सोवत सुतको बदन उघारत नंद ॥ रहि न सके
अतिसे अकुलाने नयन निशाके इन्द ॥१॥ शुभ्र सेज मध्यते मुख निकरे गड़
तिमिर मिट मंद । मनहुं पयोनिधि मथन फेन फट दई दिखाई चंद ॥।२॥ सुनत
चकोर सूर उठ धाए सखीजन सखा सुछंद ।। रही न सुधि शरीर अधीर मन पीवत
किरन मकरंद ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Jaago jaago hoe gopal .. | जागो जागो हो गोपाल ॥
नाहिन अति सोईये भयो प्रात परम सुचि काल ॥१॥
फिर फिर जात निरख मुख छिन छिन सब गोपनके बाल ॥।
विन विकसत मानो कमलको श ते ज्यों मधुकरकी माल ।।२॥
जो तुम मोहिन पत्याउ सूरप्रभु सुन्दर स्याम तमाल ॥|
तो उठिये आपन अवलोकिये त्यज निद्रा नयन विशाल ॥। ३॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Praatasmein jaagi anuraagi sovatahu teeri sthaamjooke sangiya .... | प्रातसमें जागी अनुरागी सोवतहु तीरी स्थामजूके संगिया ॥॥
चीर संभारत उठिरी दक्षिन कर वाम भुजा फरकी भर अंगिया ॥१॥
भालमें सुहाग भारी छबी उपजत न्यारी पहरे कसुंभी सारी सोथे रंग मनिया ॥
अग्रस्वामी लाड लडाई बहुत कीनी बडाई फूली फूली फिरत अतिही सग मगिया ॥।२॥
| Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Praatasmein bhayo samliaho jaago .. gaay duhunakon bhajan | प्रातसमें भयो सांमलियाहो जागो ॥ गाय दुहुनकों भाजन
मांगो ॥ १॥ रविके उदय कमल प्रकासे ॥ भ्रमर उठ चले तमचर भासे ॥ २॥ गोप
वधू दथधि मंथन लागी ॥। हरिजूकी लीला रसपागी ॥|३॥ बिकसत कमल चलत
अति सेनी ॥| उठो गोपाल गुहूं तेरी बेनी ॥ परमानंददास मन भायो॥ चरण
कमल रजते क्षणपायो ॥५॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Jaag houn bal gaee mohan .. tere kaaran sthaam sunder naee murali laee .. | जाग हों बल गई मोहन ।। तेरे कारन स्थाम सुंदर नई मुरली लई ॥
ग्वाल बाल सब द्वार ठाडे बेर बनकी भई ॥|
गायनके सब बंद छूटे डगर बनकूं गई ॥२॥
पीत पट कर दूर मुखतें छांड दे अलसई ।।
अति आनंदित होत यशुमति देखि युति नित्य नई ॥ ३॥।
जागो जंगम जीव पशु खग ओर द्वज सबई ।। सूरके प्रभु दरस दीजे होत आनंद मई ॥।
| Jagayeve | NityaPad-023 | Ramkali |
Mein jaanyo jaagi kanhai taate bashumati tere ghar aaee merey pichhvaare | में जान्यो जागि कन्हाई ताते बशुमति तेरे घर आई मेरे पिछवारे
वेसेई सुरनसों तिनहूमधुर मुरलि बजाई ॥।१॥ जनम सफल कर विनती चित्त धर
अपने कान्हकिन देहो जगाई | ले उछंग मोहनकों यशुमति आंगन ठाडी गोपी
मुख देखत हँसत रसिक बलजाई ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-023 | Bibhaas |
Bhor bhayo jagoho lalana kahaa tum ajahu rahey hoe soy .. | भोर भयो जागोहो ललना कहा तुम अजहू रहे हो सोय ॥
पीओ धार अपनी धोरीकी जासों देह बल होय ।॥।१॥ बेनी गुहूं देठं दृण अंजन
मीसबिंदुका मुख धोय ॥! हसत वदन सुख सदन निहानों नान्ही नान््ही दतियां
दोय ॥२॥ टेरत ग्वाल बाल खेलनकों गोरंभनहूं होय ।| द्रजजन सब ठाडी मुख
देखत अति आतुर सब कोय ॥३॥ उठ बैठे लए गोद यशोदा सुंदर सुत तिहं
लोय॥ रसिक प्रीतम लागे गरें जननीपें मांगत रोटी रोय ॥४॥। | Jagayeve | NityaPad-023 | Ramkali |
Praatsamay uthh chalhu nandan grih balram krishna mukh dekhiye |. | प्रातसमय उठ चलहू नंदन गृह बलराम कृष्ण मुख देखिये |।
आनंदमें दिन जाय सखीरी जन्म सुफल कर लेखिये ॥।१॥ प्रथम काल हरि
आनंदकारी पाछे भवन काज कीजिये ॥ रामकृष्ण पुन बनहिं जायगे चरण
कमल रज लीजिये ॥२॥ एक गोपिका ब्रजमें सयानी स्थाम महातम सोईजाने ॥।
परम ानंद प्रभु बद्यपि बालक नारायण कर माने ॥।३॥॥ | Jagayeve | NityaPad-023 | Bibhaas |
Jagaave yashoda maiya jaago merey laalaa.. dathi mishree velabhar | जगावे यशोदा मैया जागो मेरे लाला।। दथि मिश्री वेलाभर
लाई उठोहो कलेऊ करोहो गोपाल ॥। १॥ गो दोहनकी भईहे बिरिया टेरत सखा
संगके ग्वाला ॥ आसकरनप्रभु मोहन नागर मुख देखन आईं वब्रजबाला ।।२॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Jaagiye vrazarajkunwar kamal kosh phoole .. kumudini jiya | जागिय े व्रज़राजकुंवर कमल कोश फूले ॥ कुमुदिनी जिय
सकुच रही भूृंगलता झूले ॥९॥ तमचर खग करत रोर बोलत बनराई ॥ रांभत
गौमधुर नाद वछ चपलताई ।।२॥ रवि प्रकाश विधु मलीन गावत ब्रजनारी ॥
सूर श्रीगोपाल उठे परम मंगलकारी ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-024 | Bilawal |
Cone purry nandlaalen baan .. praatasmein jaaganaki viriyaan | कोन परी नंदलालें बान ॥ प्रातसमें जागनकी विरियां
सोवतहें पीतांबर तान ॥१॥ मात यशोदा कबकी ठाडी ले ओदन भोजन घृत
सान ॥ उठो स्यथाम कलेऊ कीजे सुंदर वदन दिखाओ आन ॥२॥ संग सखा
सब द्वारें ठाडे मधुवन धेनु चरावन जान ॥| सूरदास अतिही अलसाने सोवतहें
अजहू निशिमान ॥।३॥। | Jagayeve | NityaPad-024 | Bilawal |
Mainhariki muratni bunn paaee .. suna yashumati sanga chhaand aapano | मैंहरिकी मुरत्नी बन पाई ॥ सुन यशुमति संग छांड आपनो
कुंवर जगाय देनहों आई ॥।१॥ सुन त्रिय बचन विहस उठ बैठे अंत्तरयामी कुंवर
कन्हाई ॥ मुरलीके संग हुती मेरी पहुंची दे राधे वृषभान दुहाई ॥२॥ में निहार
नीची नहीं देखी चलो संग दें ढोरे बताई ॥ बाढी प्रीति मदन मोहनसों घर बैठे
यशुमति बोहोराई ॥३॥ पायो परम भावतो जियको दोऊ पढे एक चतुराई ॥
परमानंददास जाहि बूझो जिन यह केलि जन्म भरगाई ॥।४॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Mukh dekhnahon aaee lalco kaal mukh dekh gaee dathibechan | मुख देखनहों आई लालको काल मुख देख गई दथिबेचन
जातही गयोहे विकाई ॥१॥ दिनते दूनों लाभ भयो घर काजर वछिया जाई ॥
आईहों धाय थंभाय साथकी मोहन देहो जगाई ॥२१॥। सुन प्रिया बचन विहस
उठ बैठे नागर निकट बुलाई ॥ परमानंद सयानी ग्वालिनी सेनसंकेत
बताई ।।३॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Nandanandan bundavan chand .. yeh kahee janani jagawat laalahi jaago | नंदनंदन बुंदावन चंद ॥ यह कही जननी जगावत लालही जागो
हो मेरे आनंद कंद ॥।१॥ आलस भरे उठे मममोहन चलत चाल ठुमक अतिमंद ॥।
पौंछबदन अंबरतें जसोमति हीरदे लगाय उपज्यो आनंद ।॥।२॥ सब तव् रजसुंदरी
आई देखनकों दरसन होत मीट्यो दुःख द्वंद ॥ ब्रतिपति श्रीगोपाल परिपुरन
जाको जस गावत श्रुति छंद ॥ ३॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Jaago mohan bhor bhayo | bikse kamal kumudani mundi tamcharko | जागो मोहन भोर भयो | बिकसे कमल कुमुदनी मुंदी तमचरको
सुर हास गयो ॥। १॥ टेरत ग्वालबाल सखा ठाड़े पुरव दिश पंगति उदयो ॥ सुनत
बचन जागे नंदनंदन सूर जननी उच्छंग लयो ॥२॥। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Aalas bhor uthiri sejaten karsun meedat akhiyaan .... | आलस भोर उठीरी सेजतें करसुं मीडत अखियां ॥॥
सगरी रेन जागी पियके संग देखत चकित भई सखियां । १॥
काजर अधर कपोलन पी लगी हे रची महावर नखियां ।।
रसिक प्रीतम दरपन ले प्यारी चीर सँवार मुखढकियां ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Lalit |
Nandke laal uthhe jabsoye .. dekh mukharvindaki shobha | नंदके लाल उठे जबसोये ॥ देख मुखारविंदकी शोभा
कहो काके मन धीरज होये ॥१॥ मुनि मन हरण युवतीको बपुरी रति पति जात
मान सब खोये ॥ ईषदहास दशन द्युति बिकसत मानिक ओप धरे जानो
पोये ॥ २॥ नवलकिशोर रसिक चूडामनि मारग जातलेत मन गोये ॥ सूरदास
मन हरन मनोहर गोकुलवस मोहे सब लोये ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Bilawal |
Sowat aaj awaar bhaee ... utho merey lalahon balhari bhaanu | सोवत आज अवार भई ॥। उठो मेरे लालहों बलहारी भानु
उदय भयो रेन गई ॥१॥| ठाडी महेरि जगावतहरिकों बदन उधार निहार लई ॥।
सुंदरश्याम सखा तोहि बोलत खेलनकों आनंद मई ॥२॥ हूंकत गाय लेत
वछरूवा जाय खिरक करो घोष लई ।। सूरदासगोपाल उठे जब केलि सखा
संग करत नई ॥३॥। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bilawal |
Houn parbhaatasmein uthaai kamalanayan tuharo dekhanmukh .. | हों परभातसमें उठआई कमल नयन तुहारो देखनमुख ॥
गोरसवेचन जात मधुपुरी लाभ होय मारग पारऊंसुख ॥१॥ कमलनयनप्यारो
करतकलेऊ नेंकचिते मोतनकीजेरुख ॥ तुमसपने में मिलके विछुरे रजनी
जानितकासों कहीये दुःख ॥।२॥ प्रीति जो एकलाल गिरिधरसों प्रकटभई अब
आयजनाई ॥ परमानंदस्वामी नागरनागरिसों मससा अरुझाई ।। ३।। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Karo kaleu ramkrishna mill kahat yashoda maiya .... | करो कलेऊ रामकृष्ण मिल कहत यशोदा मैया ।॥।
पाछें वछ ग्वाल सब लेकें चलो चरावन गैया ।!१॥
पायस सिता घृत सुरभिनको रुचिकर भोजन कीजे ॥
जगजीवन ब्रजराज लाडिले जननीकों सुख दीजे ॥२॥
सीसमुकुट कटि काछनी पीत बसन उर धारो।।
कर लकुटीले मुरली मोहन मन्मथ दर्प निवारो ॥३॥
मृगमद तिलक श्रवण कुंडल मणि कौस्तुभ कंठ बनावो ॥
परमानंददासको ठाकुर ब्रज़जन मोद बढावो |।४॥ | Kaleoon | NityaPad-026 | Bhairav |
Jayati aabheer nagri prananathe .. | जयति आभीर नागरी प्राणनाथे ॥
जयति ब्रजराज भूषण यशोमति ललन देत नवनीत मिश्री सुहाथे ।१॥|
जयति पातपर भात दधि खात श्रीदाम्मा संग अखिल गोधन वुंद चरें साथें।।
ठोर रमणीक बुंदा विपिन शुभ स्थलसुंदरी केलि गुण गूढ गाथें ॥२॥
जयति तरणि तनया तीर रासमंडल रच्यो ततताथेईथेई ताथे ॥
चतुर्भुजदासप्रभु गिरिधरन बोहोरि अब प्रकट श्रीविद्डलेशब्रज कियो सनाथे ॥।३॥ | Kaleoon | NityaPad-026 | Ramkali |
Maiya mohi makhan mishree bhaave .. meetho dadhi mithaai madhu ghrit | मैया मोहि माखन मिश्री भावे ॥ मीठो दधि मिठाई मधु घृत
अपनो करसों क्यों न खवावे ॥१॥ कनक दोहनी दे कर मेरे गौदोहन क्यों न
सिखावे॥ ओटटय्ो दूध धेनु धोरीको भरके कटोरा क्यों न पिवावे ॥ २॥। अजहू
व्याह करत नहीं मेरो तोहि नींद क्यों आवे ॥ चतुर्भुज प्रभु गिरिधरकी बतियां
सुन ले उछंग पय पान करावे ॥। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-026 | Ramkali |
Douu alsaanen raajat praat .. shree vrishbhan nandani nand suta rasik salaune gaat .. 1 .. |