


SPIRITUAL BENEFACTOR
VAISHNAVACHARYA HDH PUJYA GOSWAMI 108 SHRI VRAJRAJKUMARAJI MAHODAYASHRI
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Kirtan Title | Kirtan | Category | Book-Page# | Raag |
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Shri Vallabh Satat Suyash | श्री वल्लभ संतत सुयश नित्य उठ गारऊं।॥
मनक्रमवचन क्षण एको न विसराऊं ॥१॥
श्रीपुरुषोत्तम अवतार सुकृतफल जगतबंदन श्रीवि्ठलेश हुलराऊं ॥
परस पदकमलरज निरख सुंदरनिधि प्रेमपपुलकत कलेश कोटिक नशाऊं॥२॥
श्रीगिरिधर देवपतिमानमर्दन करन घोखरक्षक सुखद लीला सुनाऊं॥।
श्रीगोविंद ग्वालसंग गाय ले चलत वन विशद अंबुज हाथ शिर परशाऊं।॥।३॥
श्रीबालकृष्णसहज बालकदशा कमललोचन रंग रुचि बढाऊं ।।
भक्तिमार्ग प्रकटकरण गुणराशि ब्रजमंडल श्रीगोकुलनाथ लडाऊं ॥।४॥
श्रीरघुनाथ धर्मधीर शोभासिंधु दुख दूर बहाऊं।॥
पतितउद्धारण महाराज श्री यदुनाथ रसनाचातक ज्यूं रटाऊं ॥५॥
श्रीघनश्याम रूप अभिराम रसिकरस निरख नयन सिराऊं ॥
चतुर्भुजदास पर्यो द्वारे प्रणपति करें श्रीवललभकुलचरणामृत भोर उठ पाऊं ॥६॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
Bhor hi Vallabh | भोर ही वल्लभ कहिये।
आनंद परमानंद कृष्णमुख सुमर सुमर आठों सिद्धि पैये ॥१॥
अरु सुमरो श्रीविद्दल गिरिधर गोविन्द द्विजवरभूप ।
बालकृष्ण गोकुल-रघु-बदुपति नव घनश्याम स्वरूप ॥२॥
पढो सार बलल्लभवचनामृत जपो अष्ठटाक्षर नित धरी नेम |
अन्य श्रवणकीर्तन तजि, निसदिन सुनो सुबोधिनी जिय धरि प्रेम ॥३॥|
सेवो सदा नंदयशोमतिसुत प्रेम सहित भक्ति जिय जान ।
अन्याश्रय, असमर्पित लेनो, असद् अलाप, असत् संग, हान ॥४॥
नयनन निरखो श्रीयमुनाजी और सुखद निरखो ब्रजधाम |
यह संपत्ति वल्लभतें पैये, रसिकनको नहि औरसों काम ॥।५॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
PrathSamay uth Kariye | प्रातसमय उठ करिये श्रीलक्ष्मणसुत गान ॥
प्रकट भये श्रीवल्लभप्रभु देत भक्तिदान ॥१॥
श्री विद्लेश महाप्रभु रूपके निधान ।॥
श्रीगिरिधर श्रीगिरिधर उदय भयो भान ॥ २॥
श्री गोविंद आनंदकंद कहा वरणो गुणगान॥
श्रीबालकृष्ण बालकेलि रूप ही सुहान ॥ ३॥
श्रीगोकुलनाथ प्रकट कियो मारग वखान ॥
श्रीरधुनाथलाल देख मन्मथ ही लजान ॥४॥।
श्रीयदुनाथ महाप्रभु पूरण भगवान ॥
श्रीधनश्याम पूरणकाम पोधीमें ध्यान ।।५॥
पांडुरंगविट्डलेश करत वेदगान ॥
परमानंद निरख लीला थके सुर विमान ॥।६।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-001 | Bhairav |
Jai Jai Jai Shree VallabhNath | जय जय जय श्रीवललभनाथ ।। सकल पदारथ जाके हाथ ।। १॥
भक्तिमार्ग जिन प्रकट कर॒यो | नामविश्वास जगत उद्धरूयो |२॥
सब मत खंड निरूपे वेद ॥ प्रेमभक्तिको जान्यो भेद ॥३॥
कारण करण समरथ भुजदंड ॥॥ मायावाद कियो मत खंड ।।४॥
परमपुरुष पुरुषोत्तम अंशी ॥ भक्तजनन मनकरत प्रशंसी ॥५॥।|
जाके नाम गुण रूप अनंत ॥ निर्मल यश गावत श्रुति संत ॥६॥।
सुंदरस्थाम कमलदललोचन || कृपाकटाक्ष भक्तभबमोचन ।।७॥
कामनापूरण प्रणकाम ॥ अहर्निश जपूं तिहारो नाम ॥८॥
जाके पटतर ओर न कोय ॥ दास गोपाल भजें सुख होय ॥।९॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Bhor Bhaye Bhav se kijiye | भोर भये भावसों ले श्रीवल्लभनाम। है रसना तू ओर वृथा बके क्यों निकाम ॥|
कीजे सेवा रसस्वाद पावें निशदिन गुण गावें ओर सब रसविसराबें यह मन आठो याम ॥१॥
रसिक न कछु ओर करें इन ही में भाव धरें अतिरस अनुपान करें ओर कपट वाम ।।
हरिवश छिनही में होत सगरों भक्तिमारगरूप हृदय वसें अरु रससमूहधाम ।।२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Jai Jai Jai Shree Vallabh Prabhu | जय जय जय श्री वल्लभ प्रभु विद्वलेश साथें | निजजन पर करत कृपा धरत हाथ माथें ॥
दोष सब दूर करत भक्तिभाव हिये धरत काज सब सरत सदा गावत गुणगाथें ॥१॥|
काहेको देह दमत साधन कर मूरख जन विद्यमान आनंद त्यज चलत क्यूं अपाधें।
रसिक चरण शरण सदा रहत हे बडभागी जन अपनो कर गोकुलपति भरत ताहि बाधें ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Shree Vallabh Shree Vallabh Dhyaoon | श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ ध्याऊं ॥| नाम लेत अति मन सचुपाऊं॥१॥
श्रीवल्लभ त्यज अनत न ध्याऊं ॥ ओर काज मन में न लाऊं॥२॥
श्रीवललभ त्यज अनत न जाऊं ॥ चरणसरोजमूल घर छाऊं ।। ३॥।
श्रीवल्लभ ही के गुण गाऊं॥ रूप निरख नयनन अधघाऊं ॥४॥
श्रीवल्लभकेमन जो भाऊं।॥। आनंद फूल्यो मन समाऊं ।।५॥
श्रीवल्लभ को गाऊं भाऊं॥ यशोमतिसुतकों लाड लडाऊं ॥६॥
श्रीवल्लभके चरण रहाऊं।। भूखें महासुख भोजन विसराऊं ॥७॥
श्रीवल्लभको दास कहाऊं ॥ रसिक सदा यह नेह निभाऊं ॥८।॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-002 | Bhairav |
Namo Shree Vallabhadheesh padkamal yougale | नमो बलल्लभाधीशपदकमलयुगले सदा वसतु मम ह॒ृदयं विविधभावरसवलितं ।।
अन्यमहिमा55भासवासनावासितं मा भवतु जातु निजभावचलितं ॥१॥
भवतु भजनीयमतिशबितरुचिरं चिरं चरणयुगल सकलगुणसुललितं ।|
बदति हरिदास इति मा भवतु मुक्तिरषि भवतु मम देहशतजन्मफलितं ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Jayati Shree Radhikaraman | जयति श्रीराधिकारमणपरिचरणरतिवल्लभाधीशसुतविद्ठलेशे ॥|
दासजनलौकिकालौकिके सर्वदा कैब चिंतोदबति हृदयदेशे ॥॥१॥
स्थापयति मानसं सततकृतलालसं सहजसुषमारुचिररूपवेशे ॥
भालयुततिलकमुद्रादिशो भासहितमस्तकाबद्धसितकृष्णकेशे ॥२॥।
सहजहासादियुतवदनपंकज _ सरसवचनरचनापराजितसुधेशे ॥
अखिलसाधनरहितदोषशतसहितमतिदासहरिदासगतिनिजबलेशे ॥३॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Gaaon Shree Vallabh Dhyaoon Shree Vallabh | गाऊं श्रीवल्लभ ध्याऊं श्रीवललभ वललभचरणरज तन लपटाऊं॥
बललभसंतति नित्यप्रति निरखूं वललभदासन दास कहाऊं ।।१॥
कृष्णलीला सेवा नित्य करके जगत सबे तृणतुल्य धराऊं।॥।
व्यासदासकी यही प्रतिज्ञा श्रीगोविंदकृपातें पाऊं ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Shree Vallabh Charan Sharan | श्रीवललभचरणशरण जाय सब सुख तूं लहे रे ॥|
रसना गुण गाय गाय दरशन प्रसाद पाय ओर काज त्याग भाग वल्लभरति गहे रे ॥१॥
रेन दिनचिंतत रहे “3 शी ५3 इनहीं के रूप रंग इनहीं रस वहि रे॥
श्री विद्डलगिरिधारी यहि रस भारी चाहेना जो चाहे जीये तो येही चाह चही रे ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Shree Vallabh Naam Ratoon | श्रीवल्लभनाम रटूं रसना नित्य रहो सुरत जिय आठो याम ॥
निरख नयन सकल सुंदरता श्रवणन सुन कीरतिगुणग्राम ॥। १॥।
पुष्पप्रसाद सुवास नासिका लेहु उगार सदा सुखधाम ॥
सेवा करूँ चरणकर मेरे वारवार हूं करूं प्रणाम ॥२।।
दुःख संसार छुडावन सुखनिधि आनंदकंद भक्तविश्राम ।।
रसिकशिरोमणि दीन जानके सीस बिराजे पूरणकाम ।। ३।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Jap Tap teerath | जप तप तीरथ नेम धरम व्रत ।
मेरे श्रीवललभ प्रभुजी को नाम ।
साधन तज भज आठों जाम ॥१॥
रसना यही रटौं निसवासर ।
दुरित' कटें सुधरें सब काम ॥२॥|
आंगन बसों जसोदासुत पद ।
लीलासहित सकल सुखधाम |
रसिकन ये निरधार कियो है। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-003 | Bhairav |
Shree Vallabh TanManDhan | श्रीवल्लभ तनमनधन श्रीवल्लभ सर्वस्व में पायेश्रीवल्लभप्रभु चिंतामणि मेरे ||
श्रीवल्लभ मम ध्यान ज्ञान श्रीवल्लभ विनभजु न आन श्रीवल्लभ हें सुखनिधान प्राण जीवन केरे ॥१॥
श्रीवल्लभ मोहिइष्टदेव सदा सेवूं श्रीवललभ चरचो चरणकमल श्रीवल्लभजूके चेरे।।
छीतस्वामिगिरिवरधर तेसेई श्रीविद्वलेश श्रीवललभकी बल बल जाऊं वेरेवेरे ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Jope Shree Vallabh Charan Gahe | जोपें श्रीवललभ चरण गहे !।
तो मन करत वृधा क्यों चिंता हरि हियें आय रहे ॥१॥
जन्म जन्म के कोटि पातक छिनहींमांझ दहे ॥
साधन कर साधो जिनको उस सब सुख सुगम लहे ॥२॥|
कोटिकोटि अपराध क्षमा कर सदा नेह निवहे ॥
अब संदेह करो जिन कोऊ करुणासिंधु लहे ॥ ३॥॥
अबलो विन सेवें श्रीवललभ भवदु:ख बहुत सहे ॥
रसिक महानिधि पाय ओर फल मनवचक्रम न चहे ॥४॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Ruchirtar vallabhadheesh charan | रुचिरतर बल्लभाधीशचरणं ॥
अस्तु में सर्वदा सुंदराकृति जगन्मोहनं हदि विरहकरणं ॥१॥
विहितमायावादवादिजन जारजन्यसंगतात्मजनकुमतिहरणं ।|
अखिलसाधनरहितदो षशतकलुषकर कुमतिभर भरितनिजदासशरणं ॥२॥।
अंजसा कदंबपादपबहुपत्रयुतवासनाभंगभवजलधितरणं ॥।
वद॒ति हरिदास इति सकलजनमात्रकृतिगोकुलाधीशपदकमलवरणं ॥ ३॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Jai Shree Vallabh Charan Kamal | जय श्री वललभ चरन कमल शिर नाइये |
परम आनन्द साकार शशी शरदमुख मधुर वानी भक्त जनन संग गाइये ।जय.।।
राज तम छांड मध्य सत्व के संग गही राखि विश्वास प्रेम पंथ को धाइये।॥।
कहे ब्रजाधीश वृंदाविपिन दंपति ध्यान धर धर हिये दृगन सिराइये ।|जय.॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Bhairav |
Pratath Samaye Samroon Shree Vallabh | प्रातसमे स्मरुं श्रीवल्लभ श्रीविद्ठलनाथ परम सुखकारी ।।
भवदु:खहरण भजनफलपावन कलिमलहरण प्रतापहारी ॥ १॥॥
शरण आये छांडत नहिं कबहुं बांह गहेकी लाज विचारी ॥
त्यजो अन्यआश्रय भजों पदपंकज द्वारकेशप्रभुकी बलहारी ॥२॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-004 | Ramkali |
Shree Vallabh Shree Vallabh Shree Vallabh | श्रीवललभ श्रीवल्लभ श्री बललभ कृपा निधान अति उदार
करुनामय दीनद्वार आयो ॥
कृपाभर नयनकोर देखीये जु मेरी ओर जन्म जन्म
शोध शोध चरण कमल पायो ॥ १॥।
कीरति चहूं दीश प्रकाश दूर करत विरहताप
संगम गुण गान सदा आनन्द भर गाऊं ॥
विनती यह मान लीजे अपनो हरिदास
कीजे चरणकमल वास दीजे बलि बलि बलि जाऊं ॥।२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bibhaas |
Charan Lagyo Chit Mero | चरण लग्यो चित मेरो श्रीवललभ चरण लग्यो चित मेरो ॥
इन विन ओर कछु नहि भावे इन चरणनको चेरो ॥ १॥।
इनहि छांड ओर जो धावे सो मूरखजु घनेरों ॥
गोविंददास यह निश्चय कर सोड़ ज्ञान भलेरो ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bilawal |
Shreemad Acharya ke Charan Nakh Chinha ko | श्रीमदाचार्य के चरणनख चिह्न को ध्यान उरमें सदा रहत जिनके।
कटत सब तिमिर महादुष्ट कलिकाल के भक्तिरस गूढ दृढ होत तिनके || १॥
जंत्र अरु मंत्र महातंत्र बहु भांति के असुर अरु सुरनको डर न जिनके।
रहत निरपेक्ष अपेक्ष नहि काहुकी भजन आनन्द में गिने न किनके ॥२॥
छांड इनको सदा औरको जे भजे ते परे संसूतिकूप भटके ।
धार मन एकश्रीवल्लभाधीश पद करन मनकामना होत जिनके ॥। ३॥
मत्त उन्मत्त सों फिरतअभिमान में जन्म खोयो वृथा रातदिनके |
कहत श्रुतिसार निरधार निश्चय करि सर्वदा शरण रघुनाथ जिनके ।।४॥। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Bilawal |
Vallabh Chahe Soyi kare | बलल्लभ चाहे सोई करे ।
जो उनके पद दृढ करि पकरे महारस सिंधु भरे ॥१॥
बेद पुर्नन सुघरता सुन्दर ये बातन न सरे।
श्रीवल्लभ के पदरज भज के भवसागरतें तरे ॥ २॥
नाथके नाथ अनाथ के बंधु अवगुण चित न धरें।।
पद्मनाभकुं अपनो जानिके डूबत कर पकरे ।। ३।। | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Ramkali |
Shree Vallabh madhrakruti mere | श्रीवल्लभ मधुराकृति मेरे ।
सदा बसो मन यह जीवनधन। सबहीनसों जु कहत हों टेरे ॥१॥|
मधुर बदन अति मधुर नयनयुग। मधुर भ्रोंह अलकनकी पांत।
मधुर भाल बीच तिलक मधुर अति। मधुर नासिका कही न जात ॥ २॥
मधुर अधर रसरूप मधुर छबि | मधुर मधुर अति ललित कपोल |
मधुर श्रवनकुंडलकी झलकन | मधुर मकर मानो करत कलोल ॥।३॥
मधुर कटाच्छ कृपापूरन अति। मधुर मनोहर वचन विलास।
मधुर उगार देत दासनकों। मधुर बिराजत मुख मृदु हास ॥४॥
मधुर कंठ आभूषणभूषित । मधुर उरस्थल रूपसमाज |
अति विशाल जानु अवलम्बित | मधुर बाहु परिरंभन काज ।।५॥
मधुर उदर कंटि मधुर जानुयुग | मधुर चरण गति सब सुखरास |
मधुर चरणकी रेनु निरन््तर। जनमजनम मांगत हरिदास ॥६॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-005 | Ramkali |
ShreeVitthalNathJooKe Charan | श्रीविद्डलनाथजूके चरणशरणं ॥|
श्रीवल्लभनंदनं कलिदु:खखंडनं पूरणपुरुषोत्तमं त्रयतापहरणं ॥१॥
सकलदु:खदारणं भवसिंधु- तारणं जनहितलीलादेहधरणं ॥
कान्हरदासप्रभु॒ सबसुखसागरं भूतलदृढभक्तिप्रकटकरणं ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Shree Vithelesh Vitthlesh Vitthelesh | श्रीविद्डलनाथजूके चरणशरणं ॥|
श्रीवल्लभनंदनं कलिदु:खखंडनं पूरणपुरुषोत्तमं त्रयतापहरणं ॥१॥
सकलदु:खदारणं भवसिंधु- तारणं जनहितलीलादेहधरणं ॥
कान्हरदासप्रभु॒ सबसुखसागरं भूतलदृढभक्तिप्रकटकरणं ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Prath Samay uth shreevallabhnandan | प्रातसमें उठ श्रीवल्लभनंदनके गुण गाऊं ॥|
श्रीगिरिधर गोविंदको नाम ले श्रीबालकृष्णजीकों शीश्ञ नाऊं॥ १॥|
श्रीगोकुलनाथजीको प्रणाम करत श्रीरघुनाथजीकों देख नयनन सुख पाऊं ॥
श्रीयदुनाथ संग खेलत घनश्यामजू इनकी प्रीति हों कहांलो सिराऊं॥।२॥
यह अवतार भक्तहितकारण जो परमपदारथ पाऊं ॥|
विनती कर मागत ब्रजपतिपें निशदिन तिहारो दास कहाऊं ।।३॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Shree Vithelesh Vithlesh Kahi Rahe | श्रीविद्डलेश विद्उलेश वि्वलेश कहि रे ।
इनके संबंध विना दृश्यमान वस्तुमात्र ताको तू जियमें कलेश कहि चहि रे ॥ १॥
रसना गुणरूपको निशवासर कर यह सुख निरंतर अहार जेसे लहि रे॥
श्रीविद्डलिशके श्रीवल्लभके पदको पराग पावे जहां तिनके तू दासनको दास भयो रहि रे ॥।२॥ | Shree Gusainji | NityaPad-006 | Bhairav |
Shree Vallabh Prabhu Ati Dayal | श्रीवललभ प्रभु अति दयाल दीजे दरशन कृपाल, दीन जान
कीजे आपनो दोष जिन विचारी।
होंतों अपराध भर्यो धर्म सबे परहयों कीयो न कुछ भलोकाज जाहिचित्त धारो ॥ १॥
दूरि परें पल पल दुख पावत हो प्राणनाथ,तुमही ते होड़ हे प्रभु रसिक को निवारो ॥
मेरो पकर्यो हे हाथ बांध्यो पद कमल साथ हाथ, हों अनाथ ताहि भूल जिन विसारो ॥२॥ | Ath Shree Mahaprabhuji | NityaPad-006 | Bilawal |
GaaooN Shree Vallabh Nandan ke Gun | गाऊं श्रीवल्लभनंदन के गुण लाऊं सदा मन अंगसरोजन |।
पाऊं प्रेम प्रसाद ततछिन गाऊं गोपाल गहे चितचोजन ॥।१॥
नवाऊं शीशरिझाऊं लाल आयो शरण यह जो प्रयोजन ॥
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविद्डल छबि पर बारूँ कोटि मनोजन ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Ramkali |
Shree Gokul Gaam ko PendoHi Nyaro | श्रीगोकुलगामको पेंडो ही न््यारो ॥|
मंगलरूप सदा सुखदायक देखियत तीन लोक उजियारो ॥१॥
जहां वल्लभसुत निर्भय बिराजत भक्तजनके प्राणनप्यारो ॥
माधोदास बल बल प्रतापबल श्रीविट्ठल सर्वस्व हमारो ॥२॥ | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Prat hi Shree Gokulesh | प्रातहि श्रीगोकुलेश गोकुलेश गाऊँ ॥
पूरण पुरुषोत्तम वपु धरे बदत त्रैलोकनाथ श्री विट्ठलेश नंदन निरखनयन सिराऊं ॥ १॥
श्री वल््लभजू के शरण आये कलियुग के जेते जीव उद्धेरे समूह तिनहीं कहालों गिनाऊँ।।
जे कबहूँक नामलेत तिनहूं को अभयदेत मांगत रघुनाथ दास निकट रहन पाऊँ ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Jai Jai Jai Shree Vallabh Nandan | जय जय जय श्रीवल्लभनंदन।
सुर नर मुनि जाकी पदरजवंदन ॥। १
मायावाद किये जू निकंदन।॥।
नाम लिये काटत भवफंदन ॥२॥।
प्रकट पुरुषोत्तम चरचत चंदन ॥
कृष्णदास गावत श्रुतिछंदन ॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Prath hi shree Gokulesh | प्रातहि श्री गोकुलेश गोकुलेश नाम ।
सकल सुख निधान मान करत त्रिबिध दुःख की हान यह जिय जान भजो अष्टयाम ।॥।१॥
इन विना योग यज्ञ करत वैराग्य त्याग विविध भाँत नेम धर्म करत सब निकाम ।।
निश्चय गहि चरण कमल भक्ति भाव हिये अमल गावत मुख निरख दास वारूँ कोटि काम ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-007 | Bhairav |
Jai Jai Jai Shree Vallabh nand | जय जय जय श्रीवल्लभनंद ॥ सकलकला बुंदावनचंद ॥।१॥
वाणी वेद न लहे पार ॥ सो ठाकुर श्रीअंकाजीद्वार ॥ २॥
शेष सहस्रमुख करत उच्चार ॥ ब्रजजन जीवन प्राण आधार ॥३॥
लीला ही गिरिधार्यो हाथ ॥ छीतस्वामी श्रीविद्डलनाथ ।।४॥। | Shree Gusainji | NityaPad-007 | Bhairav |
Jai Jai Jai Shree Vallabh Rasna Rat | श्री विद्वलेश विद्ललेश रसना रट मेरी ॥
ग्रंथन को यह सार याहिते होत पार वारबार तोसों कहूं तुव हितकेरी । १॥
चाहे जो भलो तेरो कह्यो वेग मान मेरो भजि लें श्रीघोषनाथ धन्य जीवन तेरी ॥
जगनाजनको सहाय प्रेमपुंज सुयश गाय असत वात दूर करो विषया अरुझेरी ॥२॥
| Shree Gusainji | NityaPad-007 | Bhairav |
Prat Samayein Shree VallabhSutke Vadan Kamal | प्रात समें श्री वललभसुतके वदन कमल को दर्शन कीजे ॥
तीन-लोक-बंदित पुरुषोत्तम उपमाहि पटतर दीजे ।।१॥
श्रीवल्लभकुल उदित चंद्रमा यह छबि नयन चकोर पीजे ॥
नंददास श्री वललभसुत पर तनमनधन न्योछावर कीजे ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Prat Samayein Shree Vallabh Sutko punya pavitra | प्रात समें श्री वललभ सुतको पुण्य पवित्र विमल यश गाऊं॥।
सुंदर सुभग बदन गिरिधर को निरख निरख दोऊ नैन शिराऊं ॥ १॥
मोहन बचन मधुर श्री मुख के श्रवण सुनि सुनि हृदय बसातुं ॥।
तनमन प्राण निवेदन यह विधि अपने को सुफल कहाऊं ॥ २॥
रहो सदा चरण के आगे महाप्रसाद उच्छिष्ट हों पाऊं॥ नंददास प्रभु यह मांगत है श्रीवल्लभ कुल को दास कहाऊं ॥ ३॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
PrathSamaye Shree Mukh Dekhanko | प्रातसमें श्रीमुख देखनको सेवकजन ठाडे सिंघद्वार । जय
जय जय श्रीवल्लभनंदन दरशन दीजे परमउदार ॥ १॥ सौभगसीमा सुंदरता शोभा
मेघगंभीर गिरा मृदु धार ॥ निरखत नयनन मोह्यो मनन््मथ श्रवणन सुनत वचन
अपार ॥२॥ नयनमंगल श्रवणन मंगल यश पुरुषोत्तमलीला अवतार ॥ जन
भगवान पिय कुंजविहारी अगणितमहिमा अगम अपार ॥। ३॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Visad Sujas Shree Vallabh | विसद सुजस श्रीवल्लभ सुतकौ, प्रातः उठत नित अनुदिन गाऊं।
कलिमल-हरन चरन चित धरिके, उपजै परम सुख दुःख बिसराऊं ॥
भक्ति भाव अरू, भक्तनि कौ रस, जानें मान तिनहिं को ध्याऊं।
छीत-स्वामी' गिरिधारीजू के सुमिरत, अष्ट सिद्धि, नव निधि को पाऊं॥ | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Prat Samayein Shree Vallabh Sutko | प्रात समें श्रीवललभ सुत को उठतहिं रसना लीजिये नाम ॥
आनंदकारी प्रभु मंगलकारी अशुभहरण जनपूरणकाम ॥| १॥ याहि लोक परलोक
के बंधु को कहि सके तिहारे गुण ग्राम ॥। नंददास प्रभु रसिक शिरोमणि राज
करो श्री गोकुलसुखधाम ॥२॥। | Gokulnathji | NityaPad-008 | Bibhaas |
Doun kool khambh tarang | दोऊ कूल खंभ तरंग सीढी श्रीयमुना जगत बैकुंठनिश्रेनी ॥
अति अनुकूल कलोलनके भर लियें जात हरिके चरणन सुखदेनी ॥१।।
जन्मजन्मके पाप दूरकर काटत कर्मधर्मधारपैनी । छीत-स्वामि गिरिधरजूकी
प्यारी सांवरेअंग कमलदलनैनी ।।२॥॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Ati Manjool Jal Pravah | अतिमंजुल जलप्रवाह मनोहर सुख अवगाहत विदित राजतअति तरणिनंदिनी ॥
श्यामवरन झलक रूपलोललहरवर अनूप सेवितसंतत मनोजवायुमंदिनी ॥१॥
कुमुदकुंजजन विकास मंडित दिसदिस सुबवास कुंजत अलिहंसकोक मधुरछंदिनी ॥
प्रफुल्लित अरविंदपुंज कोकिलकलसारगुंज गावत अलिमंजुपुंज विविधवंदिनी ॥२॥
नारदशिवसनकथध्यास ध्यावत मुनि धरत आस चाहत पुलिनवास सकलदुःख निकंदिनी ॥
नाम लेत कटत पाप मुनिकिन्ननऋषिकलाप करत जाप परमानंद महाआनंदिनी ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Ramkali |
Prafoolit Ban Vividh Rang | प्रफुल्लित बन विविधरंग झलकत यमुनातंरग सौरभ घन आमोदित अतिसुहावनो ॥
चिंतामणि कनकभूमि छबिअद्भुत लता झूमि सीतलमद अतिसुगंध मरुत आवनो ॥ १॥
सारसहंस शुकचकोर चित्रित नृत्यत सुमोर कलकपोत कोकिलाकल मधुर गावनो ॥
जुगल रसिकवर विहार परमानंदछबिअपार जयति चारुवृंदावन परम भावनो ॥। २॥॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Ramkali |
Mere kulkalmash sabhi | मेरे कुलकलमष सबही नासे देख प्रभात प्रभाकरकन्या ॥।
वे देखो पाप जात जिततितते ज्यौं मृगराज देख मृगसन््या ॥१॥
पोषत दे पयपान पुत्रलों हे जगजननी धन्य सुधन्या ॥
दियो चाहे गदाधरहुकों चरनकमलनिजभक्ति अनन्या ॥२॥ ' | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Deen Jaan Mohi deeje yamuna | दीन जान मोहि दीजे यमुना ॥ नंदकुमार सदा बर मांगो गोपिनकी दासी मोहि कीजे ।॥।|१॥॥
तुम तो परम उदार कृपानिधि चरण शरणसुखकारी ॥ तिहारे वश सदा लाडलीवर तब तट क्रीडत गिरिधारि ॥२॥
सब ब्रजजन विरहत संग मिल अद्भुतरासविलासी ॥ तुमारे पुलिन निकट कुंजनद्रम कोमल शशी सुबासी | ३॥।
ज्यौं मंडलमें चंद बिराजत भरभर छिरकत नारी॥ श्रमजल हसत नहात अतिरसभर जलक्रीडा सुखकारी ॥।४॥
रानीजीके मंदिरमें नित उठ पाय लाग भुवनकाज सब कीजे | परमानंददास दासीव्हे नंदनंदन
सुख दीजे ॥॥५॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-009 | Bibhaas |
Shree Jamunaji Adham Uddharni | श्रीजमुनाजी अधमउद्धारनी मैं जानी |
गोधनसंग श्यामघनसुंदर ललितत्रिभंगी दानी ॥१॥
गंगाचरन परसतें पावन हरसिरचिकुर समानी ॥।
सात समुद्र भेद यमभागिनी हरि नखशिख लपटानी ॥ २॥| रासरसिकमणि नृत्यपरायण प्रेमपुंजठकुरानी ॥
आलिंगन चुंबन रस विलसत कृष्णपुलिनरजधानी ॥। ३॥
ग्रीष्मऋतु सुखदेत नाथ कुं संग राधिकारानी ॥
गोविंदप्रभुरवितनया प्यारी भक्तिमुक्तिकी खानी ॥।४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Yeh Prasad hon paoon shree Jamunaji | यह प्रसाद हों पारऊं श्रीजमुनाजी ॥
तुम्हारे निकट रहा निशवासर रामकुष्णगुन गाऊं।।१॥
मजन करूं विभलजलपावन चिंताकलेस बहाऊं ॥
तिहारी कृपातें भानुकी तनया हरिपद प्रीत बढाऊं ॥२॥
बिनती करोंयही बर मागों अधमन संग बिसराऊं ।॥।
परमानंदप्रभु सबसुखदाता मदनगोपाल लडाऊं ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Shree Yamunaji Patit Pavan Kareyein | श्रीयपुनाजी पतित पावन कर्ये ||
प्रथमही जब दियो दरसन सकलपातक हर्ये ॥१॥
जलतरंगन परस कर पयपान सो मुख भर्ये ॥
नाम सुमरत गई दुरमति कृष्णजस विस्तर्ये ॥ २॥
गोपकन्या कियो मजन लालगिरिधर
बर॒यो ॥ सूर श्रीगोपाल सुमरत सकल कार्य सर्ये ॥। ३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Yeh Jamuna Gopalhi Bhavein | यह जमुना गोपालहि भावें ॥
जमुना जम्तुना नाम उचारत धर्मराज ताकी न चलावबें ॥१॥
जे जमुनाको जान महातम वारंवार प्रणाम करे |॥।
ते जमुना अवगाहनमज्जन चिंतित ताप तनकेजु हरे ॥२॥
पद्मपुराण कथा यह पावन धरनी प्रति वाराह कही ॥
तीर्थमहातम जान जगतगुरु सो परमानंददास लही ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Tiharo Daras mohi Bhavein | तिहारो दरस मोहि भावे श्रीयमुनाजी ॥
श्रीगोकुलके निकट बहत हो लहरनकी छबि आवे ॥१॥
सुखदेनी दुःखहरनी श्रीजमुनाजी जे जनप्रात उठ न्हावे।
मदनमोहनजुकी खरी हु पियारी पटरानी जु कहावे ॥। २॥।
बृंदावनमेंरास रच्यो हे मोहन मुरली बजावें ॥
सूरदास प्रभु तिहारे मिलनकों वेद विमल जस गावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-010 | Ramkali |
Stum Sam Aur Na Koi Shree Yamunaji | श्रीजमुनाजीकी महिमा मोपें वरनी न जाई ॥
सूरसुता घनश्यामवरन प्रफुल्लित रूप निकाई।॥। १॥
श्रीहरि गोपवधू द्विज सब श्रीगोकुलके लरकाई ॥
ब्रजाधीश प्रभु आदि भक्तनकों सकलसिद्धि सुखदाई ॥।२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Nirkhat hi man ati aaanand aanand | निरखत ही मन अति आनंद भयो देख प्रभात प्रभाकरकन्या ॥।
जलपरसत ही सकल अघ भाजे ज्यौं हरि देख हरणकी सनन्या ॥१॥
ओर जीवनकों औरनकी गति मेरी गति तो तुमहि अनन्या ॥ १॥
व्रजपति की तुम अतिहि पियारी तुम संगमतें जान्हवी धन्या। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Tum Sam Aur Na Koi | तुम सम ओर न कोई श्रीजमुनाजी ॥|
करो कृपा मोहि दीन जानकें निज ब्रजवासो होई ॥१॥
राखो चरण शरन तरणितनया जन्म आपदा खोई ।|
यह संसार स्वारथकों सबविध सुत्बंधु सगो न कोई ॥।२॥।
प्रेमभजनमेंकरत विध्नता संत संतापे सोई |
ताको संग मोहि सपने न दीजे मांगत नयन भररोई ॥३॥
गरलपान डारत अमृतमें विषयारससों मोई |
रसिक कहै दीन होयमांगू लहर समुद्र समोई ॥४॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Jamunasi nahi koi dukh harani | जमुनासी नहीं कोई दुःखहरनी ॥
जाके स्नानते मिटत हे पाप होतहे आनंद सुख्रकी जु करनी ॥१॥
महिमा अगाध अपार इनके गुण बेदपुराण न बरणी ॥
कहत ब्रजपति तुम सबन को समुजाय छूटे यमडर जो आवे इनकी शरणी ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Tiharo Daras ho paoon | तिहारो दरस हों पाऊं श्रीजमुनाजी ॥
श्रीगोवरधन श्रीवृंदावन ब्रजरज अंग लगाऊं ॥।१॥
दिन दसपांच रहों श्रीगोकुल ठकुरानीघाटहूं न्हाऊं ॥
दासन ऊपर करो कृपा संतनके संग आऊं ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Jamuna Jamuna Naam Bhajo | जमुना जम्ुुना नाम भजो ॥
हरखत करो आराधन इनको ओरको पंथ तजो ॥१॥
देहें सकल पदारथ तुमकों इनके नाम रजो ॥ व्रजपति
की अतिही पियारी ताते सकल सिंगार सजो ॥॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-011 | Ramkali |
Namo Taranitanaya | नमो तरणितनया परमपुनीत जगपावनी कृष्णमनभावनी
रुचिरनामा )| अखिलसुखदायिनी सबसिद्धिहेतु श्रीराधिकारमणरतिकरण
शयामा॥। १॥ विमलजल सुमन काननमोदयुत पुलिन अतिरम्य प्रियव्रजकिशोरा ।।
| Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Jayati Bhanutanaya | जयति भानुतनया चरणयुगल वंदे॥
जयति ब्रजराजनंदप्रिये सर्वदा देत आनंद ज्यों शरदचंदे ॥१॥
जयति सकलसुखकारिणी कृष्णमनहारिणी श्रीगोकुल निकट बहत मंदे ॥।
जाके तट निकट हरि रासमंडलरच्यो तहां नृत्यत ताता थेई थंदे ।२।।
जयति कलिंदगिरिनंदिनी देत आनंदिनी भक्तके हरत सब दुःख दंदे ॥
चित्तमें ध्यान धर मुदित ब्रजपति कहें जयति यमुने जयति नंदनंदे ॥३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Priya Sang Rang Bhar | प्रियसंग रंगभर कर विलासे ॥
सुरतरससिंधुमें अतिही हरषित भई कमलज्यों फूलते रवि प्रकाशे ॥१॥
तनते मनते प्राणते सर्वदा करतहै हरिसंग मृदुलहासे ॥
कहत ब्रजपति तुमसबनसों समजाय मिटे यमत्रास इनहीं उपासे ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Shree Yamunaji yeh vinantee | श्रीयमुनाजी यह विनती चित धरिये ॥ गिरिधरलाल
मुखारविंदरति जन्मजन्म नित करिये॥| १॥ विषसागर संसार विषम संगतें मोहि
उद्धरिये ॥ काम क्रोध अज्ञान तिमिर अति उरअंतरते हरिये ॥२॥ तुम्हारे संग
बसो निजजनसंग रूप देख मन ठरिये ॥ गाऊं गुण गोपाललालके अष्ट व्याधिते
डरिये ॥३॥ त्रिविध दोष हरके कालिंदी एक कृपा कर ढरिये।॥ गोविंददास यह
बर मांगे तुम्हारे चरण अनुसरिये ॥४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Jayati Shree Yamune prakat kalpltink | जयति श्रीयमुने प्रकटकल्पलतिके ॥ अष्टविध सिद्धि
अद्भुतवैभव सकल स्वजन विख्यात स्वाधीनपतिके ।। १॥।
केलिश्रमसुरतपयरूपब्रजभूपको पुत्र पयपान दे विश्वमाता ॥
अंग नूतन करत पुष्टि तब अनुसरतत्रिदलरसकेलिकी अमित दाता ॥२॥
रहत यमद्वारते मुक्त सुखचारते नामत्रयअक्षर उच्चार कीने।।
उभयलीलाविष्ट ब्रज॒प्रिय कुमारिका तुर्यप्रिया बदतरसरंग भीने ॥३॥
अनावृतब्रहते सदा वृत व्है रहीकनकशाखाविटप्शामबल्ली॥
सदा प्रफुल्लित द्वारकेश अवलोकके नित्य
आनंद आभीरपल्ली ॥।४॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Jagat mein Shree Yamunaji | जगतमें बमुनाजी परमकृपाल | बिनती करत तुरत सुनलीनी
भये मोपें दयाल ।। १॥॥ जो कोऊ मज्जन करत निरंतर तातें डरपतहें यमकाल ।।
ब्रजपतिकी अति प्यारी कालिंदी स्मरत होत निहाल ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Shree Jamunaji Tiharo Pulin | श्रीजमुनाजी तिहारो पुलिन मोहि भावें ॥
सुरब्रह्मादिक ध्यान धरतहें सो सुपने नहिं पावें॥९॥
बिच बिच कुंजसदन अतिसुंदर श्यामाश्याम सुहावें ॥
चहूंदिस सकलफूल अति फूले गुहि गुहि कंठ धरावें | २॥
कुसुमनके बीजना जो संवारे सखियन बांह दुरावें ।
सूरदास प्रभु सबसुखसागरदिनदिन सोभा पावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-012 | Ramkali |
Shree Vrundavan mein yamuna sohe | श्रीवृंदावन में यमुना सोहे, जिनके गुण अरु सोभा निरखत
मदनमोहन पिय मोहे ॥ १॥॥ सदा संयोग रहत इनही को हरिरस सो अति पागी,
'रसिक' कहे इनके सुमिरन तें हरिचरणन अनुरागी ॥२।॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Shree Yamuna Janko Sukh Karani | श्रीयमुना जनकों सुखकरनी, शरण लेत दैवी जीवन को तिन
के कोटि दोष को हरनी ॥१॥ पुष्टिभक्ति में बाधक जो कछु ताकों मेंट भक्तिरस
भरनी, दास" कहे सरन हों आयो महा कलिकाल सिंधु तें तरनी ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Shree Yamuna Karat krupa ko daan | श्रीयमुना करत कृपा को दान, जो कोऊ आवत दरस तिहारे
सब के राखत मान ॥| ९॥॥ कलि के जीव दोष भंडारी करत तिहारो पान | भये
अनन्य सबही ओरे तें सुर मुनि करत बखान ॥२॥ जे जन हरिलीला अधिकारी
करत तिहारो गान, मैं मतिमंद कहां लौं बरनों रसिकदास जन जान ।।३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-013 | Bhairav |
Namo Devi Yamuna Man Vachan Karma karoon | नमो देवी यमुने मन वचन कर्म करु शरण तेरी ।
सकल सुखकारिनी भवसिंधुतारिनी, दरसन तें कटत हैं कर्म बेरी ॥१॥॥
अभय पद दायिनी भक्त मन भायिनी, करि कृपा पूरिये साध मेरी,
दीजिये भक्तिपद लालगिरिधरनकी, काटिये विषय कृष्णदास* केरी ॥२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Jo koi Shree Yamuna Naam Sambhare | जो कोई श्री यमुना नाम संभारे, ताको दरस परस कोऊ करहीं
वाही को वे तारे ॥१॥ भक्त की महिमा बरनि न सके यम हा हा करि हारे,
“चतुर्भुज' प्रभु गिरिधरन लालको नितप्रति वदन निहारे ॥२॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Shree Yamunaji Pramkrupal kahave | श्रीयमुनाजी परम कृपाल कहावे, दरसन तें अघ दूरि जात हैं
हरिलीला सुधि आवे ॥१॥ जे जन तेरे निकट बसत हैं नंदनवन रस पावें, जीव
कृत्य देखत नहिं कबहूं अपनो पक्ष दृढ़ावे ॥२॥। कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तु यह सुन
मन ललचावे, 'रसिकदास' को दास जानियें तातें बह जस गावें ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Kalandi Kali Kalam Harani | कालिंदी कलिकल्मष हरनी, रवितनया यमअनुजा स्थामा
महासुंदरी गोबिंदघरनी ॥।९॥ जय यमुने जय कृष्णवल्लभा पतितन को पावन
भवतरनी, सरनागत को देत अभय पद जननी तजत जस सुतकी करनी ॥।२॥
सीतल मंद सुगंध सुधानिधि धाई धर बपु उत्तर धरनी, परमानंद' प्रभु परम
पावनी युग युग साख निगम नित वरनी ॥ ३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Kari Pranam Yamuna Jal lahiye | करी प्रणाम यमुनाजल लहिये, श्रीवल्लभ-पदरज प्रताप तें,
श्रीयमुना मुख कहिये ।।१॥ पूरन पुरुषोत्तम ब्रज प्रकटे इनहूं प्रकट्यो चहिये।।
जो जन लक्ष धरा तें ऊंचों, रविमंडल तें बहिये।। २॥| नंदसुबन अरू कलिंदनंदिनी
दरसन रिपुतन दहिये 'हरिदास' प्रभु यह सुख सोभा नयनन ही में रहिये ॥३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Shree Yamunaji Nirakh Sukh Upjaat | श्रीयमुनाजी निरख सुख उपजत, सन्मुख वुंदाविपिन सुहाये,
श्रीविश्रांत वललभजु की बैठक, निर्मल जल यमुना के नहाये ॥१॥ भुजतरंग
सोहत अति नीके, भँवर कंकण सुहाये, ब्रजपतिकेलि कहा कवि बरने, शेष
सहख्रमुख पार न पाये ॥ २॥ श्रमजल सहित अगाध महारस, लीलासिंथु तरंगन
छाये, सकल सिद्धि अलौकिक दाता, जे जन तकि चरनन चित लाये ॥॥३॥।
रविमंडल द्वार होय प्रकटी, गिरि कलिंद सिर तें ब्रज धाये, हरिदास' प्रभु सोभा
निरखत मन क्रम वचन इनके गुण गाये ॥४॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-014 | Bhairav |
Bhor Bhayoon Jagoo Nand Nand ( mukut dhare Jai) | भोर भयो जागो नंदनन्द ॥ संग सखा ठाढे जगवंद ॥।१॥
सुरभिन पय हित वत्स पिवाये ॥ पंछी यूथ दसोंदिश धाये ॥२॥
मुनि सर तके तमचर स्वरहार्ये ॥ सिथिलधनुष रतिपतिगहि डार्ये ।। ३॥
निशिहीघटी रविरथ रुचिराजे || चंद मलीन चकई रतिसाजे ॥।४॥
कुमुदिनी सकुची वारिज फूले ॥। गुंजत फिरत अलिगणझूले ॥५।॥
दरसनदेहो मुदितनरनारी॥ सूरदास प्रभुदेवमुरारी ।।६॥ | Jagayeve | NityaPad-015 | Bibhaas |
Chalat Nyari Naval Yamune | चलत न्यारी नवल यमुने। गाय ब्रजभक्त के भाव को देखि
के, भाव सहित तहां करत गवने ॥१॥ आई ब्रजभूप पिय भाव उपजाब ही,
जलस्थल सिद्ध दोऊ करत रवने, निरख सोभा हरिदास' निसदिन यह, मन
क्रम वचन करी सीस नमने ॥।२॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bilawal |
Namo Namo Jayati Shree Yamune | नमो नमो जयति श्रीयमुने, जय कालिंदी पुलिन मनोहर,
स्यामास्याम करत हैं रबने ॥१॥ जलक्रीडा करत तेरे तट, तुम सम कोऊ नहीं
तीनों भवने, सुरनर मुनि के ध्यान न आवत सो प्रभु तिहारे गृह गवने ।॥२॥ तुम
तो परमकृपालु जगजननी, पतितन को पावन भवतरनी, साख निगम पुरानन
बरनी, सूर' प्रभु के मन को हरनी ॥३॥। | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bhairav |
Dadhike Matware kanha kholi | दधिके मतवारे कान्ह खोलो क्यों न पलकें।।
शिश मुकुटकी लटा छुटि और छुटि अलकें ॥१॥
सुरनरमुनि द्वार ठाड़े दरस कारन कीलकें ॥
नासिकाको मोती सोहे बीच लाल ललकें ॥ २॥
कटि पीतांबर मुरलीकर श्रवन
कुंडल झलकें ॥ सूरदास मदनमोहन दरस देहो भलकें ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-015 | Bibhaas |
Shree Yamunapaan karat hi Rahiye | श्रीयमुनापान करत ही रहिये, ब्रज बसवबो नीको लागत है
लोकलाज दु:ख सहिये ।।१॥ श्रीवललभ श्रीविट्ठल गिरिधर गावत सब सुख
पैये, ब्रजपति' मुख अवलोक महासुख दरसन दूग न अधैये ।।३॥ | Shree Yamunaji | NityaPad-015 | Bilawal |
Bal Krushna Jaaghoo mere pyare | बालकृष्ण जागहु मेरे प्यारे ॥ध्रु.॥ बैठी सेज कहती है जननी ।
बार बार मुखकमल निहारे ॥ १॥ सुन्यो वचन माता को जब ही । तनिक तनिक
दोऊ नैन उघारे ॥२॥ लिये उठाय अंक भरि तब ही ॥ उष्णोदक सो वदन
पखारे॥।३॥ माखन मिश्री और मलाई | ओट्यो दूध तुम लेहु दुलारे ॥४॥
विविध भांति पकवान मिठाई । आनन मेल अपुनपो बारे ॥५॥ मुख परखारि
झगुली पहराई। शिर ऊपर चौतनी जब धारे ॥॥६।। डोलत अजिर मुदित मनमोहन।
“ब्रज़जन' ओट भई जु निहारे ॥॥७॥ | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Prathi kunj mahal sajaan te( Sehera dhare Jab) | सेहेरा धरे-तब प्रात ही कुंज महल सेजन तें आलसकों तज
दुलहनि जागी॥ अति श्रम सिथिल अंग देखियत है श्याम सुन्दर अधरन रस
पागी ॥ १॥ बींजना ब्यार करत ललिता ले श्रम जल मुखतें पोंछन लागी।॥। देख
देख मुसिकात परस्पर कहत लाल लोचन अनुरागी ॥।२॥ जागी दुल्हे संग रैन
सब एयाम केलि सुख सदा सुहागी ॥ जन त्रिलोक प्रभुसों रति मानी कोऊ न
ऐसी बड़भागी ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-016 | Bibhaas |
Jagiyein Gopallaal Janani | जागिये गोपाललाल जननी बलजाई ॥ उठो तात प्रात भयो
रजनीको तिमिर गयो टेरत सब ग्वालबाल मोहनाकन्हाई ॥। १॥।
उठो मेरे आनंदकंद गगनचंद मंदभयो प्रकट्यो अंशुमान भानु-कमलने सुखदाई ॥
सखा सब पूरत वेणु तुम बिना न छूटे धेनु उठो लाल तजो सेज सुंदर वरराई ॥॥२॥
मुखते पटदूरकियो यशोदाको दरसदियो ओर दथि मांगलियो विविध रस मिठाई ॥
जेवत दोऊ रामश्याम सकल मंगल गुणनिधान थारमें कछू जूठ रही मानदास पाईं ॥। ३॥।
| Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Utho mere Lall Gopal( Sakhadhi Bhoj Aave Jab) | उठो मेरे लाल गोपाल लाडले रजनी वीती बिमल भयो भोर ॥
घर घर दधि मथत गोपिका द्विज करत वेदकी सोर ॥ १॥ करो कलेऊ दधि ओर
ओदन मिश्री मेवा परोसूं ओर ॥आस करण प्रभु मोहन तुम पर वारों तन मन
प्राण अकोर ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Jagoo Goplal Laal Duho | जागो गोपाललाल दुहो धौरी गैयां ॥ सददूध मथ पीवो
घैयां।।१॥ भोर भयो वन तमचर बोले ॥ घरघर गोप बगर सब खोले ।॥।२॥
गोपी रई मथनिया धोवे ॥| अपनो अपनो दह्यो विलोवे ।।३॥ संगके सखा
बुलावन आये।॥ कृष्णनाम लेले सब गाये ॥४॥ भूषण वसन पलट पहराऊं॥
चंदनतिलक ललाट बनाऊं ॥।५॥ चतुर्भुज प्रभु श्रीगोवर्द्धनधारी ।। मुखछबिपर
बलगई महतारी ॥। | Jagayeve | NityaPad-016 | Bhairav |
Lalit Laal Shree gopal | भोर भयें बल जाऊं जागो नंदनंदा ॥ तमचर खग करत रोर
अवनीपें होत सोर तरणिकी क्विरण तपें चंद भयो मंदा ॥१॥
भयो प्रात रजनीगई चकवी आनंद भई वेग मोचन करो सुरभीकुल फंदा )।
उठो भोजन करो मुकुट माथें धरो सखिन प्रति दरस देहो रूपनिधि कंदा ॥२॥
त्रिया दधिमथन करें मधुरे स्वर श्रवण धरें कृष्णगुण विमल यश कहत आनंदा ॥
निजजननयन आधार जगजीवनगुणन गुणकथनकों कहत श्रुति छंदा ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Bhor Bhaye Bal Jaoon | जागोहो तुम नंदकुमार |
बलबल जाउं मुखारविंदकी गोसुत मेलो करो शुंगार ॥ १॥
आज कहा सोवत त्रिभुवनपति ओर वार तुम उठत सवार॥
वारंबार जगावत माता कमलनयन भयो भवन उजार ॥ २॥
दधि मथों नवनीत देहों संगसखा ठाडे सिंघद्वार ।|
उठो क्योंन मोहि वदन दिखावो सूरदासके प्राण आधार ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Jago Jago Jago Mere Jagat | ललित लाल श्रीगोपाल सोइये न प्रातकाल यशोदा मैया लेत बलैया भोर भयो बारे॥
उठो देव करूं सेव जागिये देवादिदेव नंदराय दुहत गाय पीजिये पय प्यारे ॥१॥
रविकी किरण प्रकट भई उठो लाल निशा गई दशधिमथत जहां तहां गावत गुण तिहारे ॥
नंदकुमार उठे विहस कृपादृष्टि सब पे वरषयुगल चरण कमलन पर परमानंद वारे ॥ २॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Lallan Jaagoho Bhayo Bhor | लालन जागोहो भयो भोर ॥
दूध दही पकवान मिठाई लीजे माखन रोटी बोर ॥ १॥।
विकसे कमल विमल वाणी सब बोलन लागे पंछी चहुं ओर ॥
रसिकप्रीतमसों कहत नंदरानी उठ बैठोहो नंदकिशोर ।२॥ | Jagayeve | NityaPad-017 | Bhairav |
Jagiye GopalLal | उठे नंदलाल सुनत जननी मुख-वानी ॥
आलस भरे नयन उठे शोभा की खानी ॥|१॥|
गोपीजन थकित भई चितवत सखी ठाढी ।।
नयन कर चकोर चंदवदन प्रीत बाढी ॥|२॥
माता जल झारी लिये कमलमुख पखोारें ॥
मीरहू को परस करत आलस विचाोरें ॥३॥
सखा द्वारे ठाडे सब टेरतहें तुमकों ॥।
यमुनातट चलो स्थाम चारन गोधनकों ॥४॥
सखा सहित जेबत बल भोजन
कछू कीनो ॥ सूरस्याम हलधरसंग सखा बोल लीनों ॥५॥ | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Uthe Nandlal Sunat Janani | उठो हो नंदकुमार भयो भनसार जगावत नंदरानी ॥ झारीके
जल वदन पखारो सुत कहि सारंगघानी ॥।९॥| माखन रोटी ओर मेवा भावे सो
लीजे आनी ॥ सूरदास मुख निरख यशोदा मन ही मन सिहानी ॥। २॥ | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Utho hi nandkumar | जागो जागो मेरे जगत उजियारे ॥
कोटि मदन वारो मुसकनि पर कमलनयन अखियन के तारे ॥१॥
सुरभी वच्छ गोपाल निशंक। ले यमुना के तीर जाओ मेरे प्यारे ॥|।
परमानंद कहत नंदरानी दूरंजिन जाओ मेरेब्रजरखवबारे ॥ २।॥
| Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Jagiyein Gopallal gwal | जागिये गोपाललाल आनंदनिधि नंदबाल यशोमति कहे वारंवार भोर भयो प्यारे ।
नयनकमलसे विशाल पढत वापिकामराल मदनललित वदन ऊपर कोटि वारिडारे ॥ १॥
ऊगत अरूण विगत शर्बरी शशिकी किरण हीन दीप मलीन छीन झुति समूह तारे ॥
मानों ज्ञान घन प्रकाश वीते सब भवविलास आस त्रास तिमिर तोष तरणि तेज जारे ॥ २
बोलत खग मुखर निकर मधुरघोष प्रति सुनों परम प्राणजीवन धनमेरे तुमबारे ॥
मानों बंदी मुनिसूत बूंद मागधगण बिरद बदत जय जय जय जयति यश तुमारो उच्चारे |३॥ विकसत कमलावली चले फंदचंचरीक गुंजत कलमधुर ध्वनि त्याग कंजन न्यारे ॥
मानोंबैराग्य पाय शोक कूपग्रह विहाय प्रेममत्त फिरत भुत्य गुनत गुन तिहारे ॥॥४॥
सुनत वचन प्रिय रसाल जागे अतिशय दयाल भागे जंजाल विपुल दुःख कदंबटारे ॥
त्याग भ्रमकंद हूंद निरखकें मुखारविंद सूरदास अतिआनंद मेटे मदभारे ॥५॥। | Jagayeve | NityaPad-018 | Bhairav |
Jagiyo Gopallal pragat | जागिये गोपाललाल देखों मुख तेरो ॥
पाछें गृह काज करों नित्य नेम मेरो ॥।१॥
अरूण दिशा विरूगत निशा उदय भयो भान ॥
कमलनतें भ्रमर उडे जागिये भगवान ।। २॥
बंदीजन द्वार ठाडे करत यश उच्चार॥
सरस भेद गावतहें लीला अवतार ॥३॥
परमानंद स्वामी गोपाल परम मंगलरूप ॥
वेद पुराण गावतहें लीला अनूप ॥॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
ChirEyaa ChuhChaaNee | जागिये गोपाललाल ग्वाल द्वार ठाडे॥ रेनअंधकार गयो चंद्रमा
मलीन भयो तारेगण देखियत नही तरणि किरण बाढे ॥१॥
मुकुलित भये कमलजाल भवर गुंजत पुष्पमाल कुमुदिनी कुमलांनी ॥
गंधर्व गुणगान करत स्नान दान नेम धरत हरत सकल पाप बदत वेद विप्र वानी ।२॥
बोलत नंद बारवार मुख देखूं तुव कुमार गायन भई बडी वार बृंदावन जेबों |
जननी कहत उठो लाल जानत जिय रजनी तात सूरदारप्रभु गोपाल तुमकों कछु खेवो ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Praath Same GharGharTe Dekh | प्रातसमें घरघरते देखनकों आंईहें गोकुलनारी ॥| अपनो कृष्ण
जगाय बशोदा आनंद मंगलकारी ॥१॥ सब व्रजकुलके प्राण जीवनधन
यासुतकी बलहारी ॥ आसकरण प्रभु मोहननागर गिरिगोवर्द्धनधारी ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Prat Samaye Ghar Ghartein Dekehan ko | चिरैया चुहचहांनी सुन चक्तईकी बानी कहत यशोदा रानी जागो मेरे लाला।
रविकी क्रिरण जानी कुमुदिनी सकुचानी कमलन विकसानी दशिमथेंबाला ॥१॥
सुबल श्रीदामा तोक उज्ज्वल बसन पहहरखें द्वारेंठाडे टेरतहे बाल गोपाला ॥
नंददास बलहारी उठो क्यों न गिरिधारी सब कोऊ देख्यो चाहे लोचन विशाला ॥ २॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Jagiyo Gopallal pragat | जागिये गोपाललाल प्रगट भयो हँस बाल मिट गयो अंधकार
उठो जननी मुखदिखाई ।। मुकुलित भये कमलजाल कुमुद वुन्दवन विहाल
मेटोजंजाल त्रिविधताप तन नशाई ।।१॥। ठाडे सब सखा द्वार कहत नंदके कुमार
टेरतहें वारवार आइये कन्हाई ॥ गैयन भई बडीवार भरभर पय थनन भार बछरा
गनकर पुकार तुम बिन यदुराई ॥२॥| ताते यह अटक पारी दोहन काज हंकारी
उठ आवो क्यों न हरि बोलत बलभाई॥ मुखते पट झटक डार चंदवदन दे उघार
यशुमति बलहारजाय लोचन सुखदाई ॥।३॥ थेनु दुहन चले धाय रोहिणीकों
लई बुलाय दोहनी मोहि दे मंगाय तबहींले आईं।। बछरा दियो थनलगाड़ दुहत
बैठकें कन्हाइ हसतहै नंदराय तहां मातादोऊ आई ॥|४॥ कहुं दोहनी कहूं धार सिखवत नंद वारवार वह छबि नहि पारवार नंदघर बधाई ।। तब हलधर कह्मो
सुनाय धेनु वन चलो लिवाय मेवा लीने मंगाय विविध रस मिठाई ।।५॥ जेंबत
बलराम स्थाम संतनके सुखद धाम धेनु काज नहि विश्राम यशोदा जललाई ॥
स्यथाम राम मुख पखार ग्वालबाल लये हंकार यमुनातट मन विचार गायन
हकराई ॥६॥ शुंग शंख नाद करत मुरली स्वर मधुर भरत ब्रजांगना मन हरत
ग्वाल गावत सुघराई ॥ बुंदावन सुर्त जाय धेनु चरत तृण अघाय श्याम हरख
पाय निखर सूरज बलजाई ॥७॥ | Jagayeve | NityaPad-019 | Bhairav |
Jago Krushna Yashodajoo bole | जागो कृष्ण यशोदाजु बोलें यह ओसर कोऊ सोवेहो ॥
गावत गुन गोपाल ग्वालिनी हरखत दह्लो विलोवेहो ॥१॥
गोदोहन ध्वनि पूररहो ब्रज गोपी दीप संजोवेहो ॥
सुरभी हूंक वछरूवा जागे अनमिष मारगजोबेंहो ॥२॥
वेणु मधुर ध्वनि महूवर वाजे बेत गहे कर सेलीहो ॥ अपनी गाय
सब ग्वाल दुहतहें तिहारी गाय अकेली हो ॥३॥
जागे कृष्ण जगत के जीवन अरूण नयन मुख सोहेहो ॥
गोविंद प्रभु दुहत धेनु धोरी गोपबधू मन मोहेहो ।।४॥। | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Pratsamaye Krushna Raji Lochan | प्रातसमे कृष्ण राजीव लोचन।। संग सखा ठाडे गौ मोचन ॥१॥
विकसत कमल रटत अलि सेनी ॥| उठो गोपाल गुहेंर तेरी बैनी । २।।
खीन खांड घृत भोजन कीजे ॥ सद्य दूध धौरीको पीजे ॥३।।
सुतहि जान जगावत रानी ॥परमानंदप्रभु सब सुखदानी ।।४॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Jannani Jagawat utho kanhai | जननी जगावत उठो कनन््हाई ॥ प्रकट्यो तरणि किरण गण
छाई।॥१॥ आवो चंद्र बदन दिखराई ॥ वारबार जननी बलजाई ।। २॥। सखा द्वार
सब तुमहि बुलावत ॥ तुम कारण हम द्वारे आवत ।।३॥ सूरस्थाम उठ दरशन
दीन्हो ॥ माता देख मुदित मन कीन्हो ॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bhairav |
Yeh Bhayo Pachilo Prahar | यह भयो पाछिलो पहर। कान्ह कान््ह कटि टेरन लागे बावा
नंदमहर॥।१॥ गोपवधू दधि मंथन लागी गोपन पुरे वेणु || उठो बलश्याम बछरूवा
मेलो रांभण लागी थेनु ॥२॥ ब्रह्म मुहूरत भयो सवारो विप्र पढन लागे वेद ॥
परमानंददासको ठाकुर गोकुलके दुःख छेद ।। ३॥ | Jagayeve | NityaPad-020 | Bibhaas |
Uthe Prat Alasaat kehat | उठे प्रात: अलसात कहेत मीठी तोतरी बात मांगतहे सद
माखन लाईहें यशोदामात ॥। वाजत नूपुर सुहात नाचत त्रैलोकनाथ देखत सब
गोपी ग्वाल नाहीनें अघात ।। १॥ नंदनंदन सुखदाई चिरजीयोरी कन्हाई निरखत
मुख या ढोटाको जीजतहें माई ॥ बालकेलि देखन आई रोम रोम सचुपाई
वललभ मुख हरख निरख लेत हें बलाई ॥।२॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
HoN Parbhaat samayein uth aayi | हों परभात समें उठ आई कमल नयन तुम्हारों देखन मुख ॥
गोरस वेचन जात मधुपुरी लाभ होय मारग पाऊं सुख ॥ १॥॥
कमलनयन प्यारोकरत कलेऊ नेक चिते मोतनकी जेरूख ॥
तुम सपने में मिलकैं विछुरे रजनीजनित कासों कहीयें दुःख ।।२॥
प्रीति जो एक लालगिरिधरसों प्रकट भई अबआय जनाई ॥
परमानंदस्वामी नागर नागरिसों ममनसा अरूझाई ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Bhor Bhaiye Yashodajoo Bole | भोर भये यशोदाजू बोले जागो मेरे गिरिधरलाल ॥। रत्न
जटित सिंघासन बैठो देखनकों आंयी ब्रजबाल ॥। १॥ नियरें आय सुफेंती खेंचत
बोहोर्यो हरि ढांपत बदन रसाल ॥ दूध दहीं माखन बहु मेवा भामिनी भरभर
लाई थाल ॥२॥ तब हरखत उठ गादी बेठे करत कलेऊ तिलकदे भाल ॥ देवी
आरती उतारत चतुर्भुजदास गावें गीत रसाल ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Jagawan Aavengi Vrajnaari | जगावन आवेगी ब्रजनारी अति रसरंग भरी ॥ अतिही रूप
उजागर नागर सहज शुंगार करी ॥१॥
अतिही मधु स्वर गावत मोहनलालकों
चित्तहरे ॥ मुरारीदास प्रभु तुर्त उठ बैठे लीनी लाय गरे ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Harijoo ko darshan bhayo | हरिजू को दरसन भयो सबेरो।॥।
बहुत लाभ पाऊंगीरी माईदह्ो बिकेगो मेरो ॥१॥
गली सांकरी एक जनेकी भटु भयो भट भेरो ॥
दे अंक चलीसयानी ग्वालिन कमलनयन फिर हेरो ॥ २॥
भोरही मंगल भयो भटूरीहे सबकाज भलेरो॥
परमानंदप्रभु मिले अचानक भवसागरको बेरो ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-021 | Bibhaas |
Bhor Bhayo Jago Nand Nandan | भोर भयो जागो नंदनन्द ॥ संग सखा ठाढे जग बंद ॥१॥
सुरभिन पय हित वत्स पिवाये ॥ पंछी यूथ दसों दिश धाये ॥॥२॥
मुनि सरतके तमचर स्वर हारये | सिथिल धनुष रति पति गहि डार्ये ॥ ३॥
निशही घटी रविरथ रूचि राजे ॥ चंद मलीन चकई रति साजे ॥।४॥
कुमुदिनी सकुची वारिज झूले ॥ गुंजत फिरत अलिगण झूले ॥५॥
दरशन देहो मुदित नर नारी | सूरदासप्रभु देव मुरारी ॥६॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
prat samaye jaagi anuraagi | प्रातसमें जागी अनुरागी सोवतहु तीरी स्थामजूके संगिया ॥॥
चीर संभारत उठिरी दक्षिन कर वाम भुजा फरकी भर अंगिया ॥१॥
भालमें सुहाग भारी छबी उपजत न्यारी पहरे कसुंभी सारी सोथे रंग मनिया ॥
अग्रस्वामी लाड लडाई बहुत कीनी बडाई फूली फूली फिरत अतिही सग मगिया ॥।२॥
| Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Jago Jagoho Gopal | जागो जागो हो गोपाल ॥
नाहिन अति सोईये भयो प्रात परम सुचि काल ॥१॥
फिर फिर जात निरख मुख छिन छिन सब गोपनके बाल ॥।
विन विकसत मानो कमलको श ते ज्यों मधुकरकी माल ।।२॥
जो तुम मोहिन पत्याउ सूरप्रभु सुन्दर स्याम तमाल ॥|
तो उठिये आपन अवलोकिये त्यज निद्रा नयन विशाल ॥। ३॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
prat samaye nav kunj Dwar | प्रातसमें नवकुंज द्वार व्है ललिताललित बजाई बीना ॥
पोढेसुनत स्याम श्रीस्यामा दंपति चतुर नवीन नवीना ॥ १॥
अति अनुराग सुहाग भरे दोउ कोक कला जो प्रवीन प्रवीना ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपति सुख तन मन धन न्योंछावर कीना ॥। २॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Prat Samaye uth sovat sutko | प्रात समय उठ सोवत सुतको बदन उघारत नंद ॥ रहि न सके
अतिसे अकुलाने नयन निशाके इन्द ॥१॥ शुभ्र सेज मध्यते मुख निकरे गड़
तिमिर मिट मंद । मनहुं पयोनिधि मथन फेन फट दई दिखाई चंद ॥।२॥ सुनत
चकोर सूर उठ धाए सखीजन सखा सुछंद ।। रही न सुधि शरीर अधीर मन पीवत
किरन मकरंद ॥३॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Prath Samaye Bhayo Saamliya Ho | प्रातसमें भयो सांमलियाहो जागो ॥ गाय दुहुनकों भाजन
मांगो ॥ १॥ रविके उदय कमल प्रकासे ॥ भ्रमर उठ चले तमचर भासे ॥ २॥ गोप
वधू दथधि मंथन लागी ॥। हरिजूकी लीला रसपागी ॥|३॥ बिकसत कमल चलत
अति सेनी ॥| उठो गोपाल गुहूं तेरी बेनी ॥ परमानंददास मन भायो॥ चरण
कमल रजते क्षणपायो ॥५॥। | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Laal hi Naahi Jagaye Sakat | लाल हि नांहि जगाय सकत सुनसों बातसजनी ॥ अपने
जान अजहु कान मानत सुख रजनी ॥१॥ जब जब हों निकट जाऊँ रहत लाग
लोभा॥ तनकी सूधि बिसर गई देखत मुख शोभा ॥।२॥ वचननको जिय बहुत
करत सोच मनठाढी ॥ नयनन नयन विचार परे निरखत रूचि बाढी ॥।३॥ यह
विध बदनारविंद यशुमति जियभावे ॥ सूरदास सुखकी रास कहत न
बनिआवे ॥४॥ | Jagayeve | NityaPad-022 | Bibhaas |
Bhor Bhayo Jagoo Ho | भोर भयो जागोहो ललना कहा तुम अजहू रहे हो सोय ॥
पीओ धार अपनी धोरीकी जासों देह बल होय ।॥।१॥ बेनी गुहूं देठं दृण अंजन
मीसबिंदुका मुख धोय ॥! हसत वदन सुख सदन निहानों नान्ही नान््ही दतियां
दोय ॥२॥ टेरत ग्वाल बाल खेलनकों गोरंभनहूं होय ।| द्रजजन सब ठाडी मुख
देखत अति आतुर सब कोय ॥३॥ उठ बैठे लए गोद यशोदा सुंदर सुत तिहं
लोय॥ रसिक प्रीतम लागे गरें जननीपें मांगत रोटी रोय ॥४॥। | Jagayeve | NityaPad-023 | Ramkali |
Prat Samaye Uth Chalhoo | प्रातसमय उठ चलहू नंदन गृह बलराम कृष्ण मुख देखिये |।
आनंदमें दिन जाय सखीरी जन्म सुफल कर लेखिये ॥।१॥ प्रथम काल हरि
आनंदकारी पाछे भवन काज कीजिये ॥ रामकृष्ण पुन बनहिं जायगे चरण
कमल रज लीजिये ॥२॥ एक गोपिका ब्रजमें सयानी स्थाम महातम सोईजाने ॥।
परमानंद प्रभु बद्यपि बालक नारायण कर माने ॥।३॥॥ | Jagayeve | NityaPad-023 | Bibhaas |
Mein Janyo Jagi Kanhai | में जान्यो जागि कन्हाई ताते बशुमति तेरे घर आई मेरे पिछवारे
वेसेई सुरनसों तिनहूमधुर मुरलि बजाई ॥।१॥ जनम सफल कर विनती चित्त धर
अपने कान्हकिन देहो जगाई | ले उछंग मोहनकों यशुमति आंगन ठाडी गोपी
मुख देखत हँसत रसिक बलजाई ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-023 | Bibhaas |
Jaag hon Bal Gayi Mohan | जाग हों बल गई मोहन ।। तेरे कारन स्थाम सुंदर नई मुरली लई ॥
ग्वाल बाल सब द्वार ठाडे बेर बनकी भई ॥|
गायनके सब बंद छूटे डगर बनकूं गई ॥२॥
पीत पट कर दूर मुखतें छांड दे अलसई ।।
अति आनंदित होत यशुमति देखि युति नित्य नई ॥ ३॥।
जागो जंगम जीव पशु खग ओर द्वज सबई ।। सूरके प्रभु दरस दीजे होत आनंद मई ॥।
| Jagayeve | NityaPad-023 | Ramkali |
Koun Pari Nandlale yaan | कोन परी नंदलालें बान ॥ प्रातसमें जागनकी विरियां
सोवतहें पीतांबर तान ॥१॥ मात यशोदा कबकी ठाडी ले ओदन भोजन घृत
सान ॥ उठो स्यथाम कलेऊ कीजे सुंदर वदन दिखाओ आन ॥२॥ संग सखा
सब द्वारें ठाडे मधुवन धेनु चरावन जान ॥| सूरदास अतिही अलसाने सोवतहें
अजहू निशिमान ॥।३॥। | Jagayeve | NityaPad-024 | Bilawal |
Jagiye Vrajrajkunwar | जागिये व्रज़राजकुंवर कमल कोश फूले ॥ कुमुदिनी जिय
सकुच रही भूृंगलता झूले ॥९॥ तमचर खग करत रोर बोलत बनराई ॥ रांभत
गौमधुर नाद वछ चपलताई ।।२॥ रवि प्रकाश विधु मलीन गावत ब्रजनारी ॥
सूर श्रीगोपाल उठे परम मंगलकारी ॥। ३॥। | Jagayeve | NityaPad-024 | Bilawal |
mein hari ki murali ban paayi | मैंहरिकी मुरत्नी बन पाई ॥ सुन यशुमति संग छांड आपनो
कुंवर जगाय देनहों आई ॥।१॥ सुन त्रिय बचन विहस उठ बैठे अंत्तरयामी कुंवर
कन्हाई ॥ मुरलीके संग हुती मेरी पहुंची दे राधे वृषभान दुहाई ॥२॥ में निहार
नीची नहीं देखी चलो संग दें ढोरे बताई ॥ बाढी प्रीति मदन मोहनसों घर बैठे
यशुमति बोहोराई ॥३॥ पायो परम भावतो जियको दोऊ पढे एक चतुराई ॥
परमानंददास जाहि बूझो जिन यह केलि जन्म भरगाई ॥।४॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Jagave Yashoda Maiya Jagoo | जगावे यशोदा मैया जागो मेरे लाला।। दथि मिश्री वेलाभर
लाई उठोहो कलेऊ करोहो गोपाल ॥। १॥ गो दोहनकी भईहे बिरिया टेरत सखा
संगके ग्वाला ॥ आसकरनप्रभु मोहन नागर मुख देखन आईं वब्रजबाला ।।२॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Mukh Dekhanko aayi laalko | मुख देखनहों आई लालको काल मुख देख गई दथिबेचन
जातही गयोहे विकाई ॥१॥ दिनते दूनों लाभ भयो घर काजर वछिया जाई ॥
आईहों धाय थंभाय साथकी मोहन देहो जगाई ॥२१॥। सुन प्रिया बचन विहस
उठ बैठे नागर निकट बुलाई ॥ परमानंद सयानी ग्वालिनी सेनसंकेत
बताई ।।३॥ | Jagayeve | NityaPad-024 | Ramkali |
Sovat Aaj Avar Bhai | सोवत आज अवार भई ॥। उठो मेरे लालहों बलहारी भानु
उदय भयो रेन गई ॥१॥| ठाडी महेरि जगावतहरिकों बदन उधार निहार लई ॥।
सुंदरश्याम सखा तोहि बोलत खेलनकों आनंद मई ॥२॥ हूंकत गाय लेत
वछरूवा जाय खिरक करो घोष लई ।। सूरदासगोपाल उठे जब केलि सखा
संग करत नई ॥३॥। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bilawal |
Jago Mohan Bhor Bhayo | जागो मोहन भोर भयो | बिकसे कमल कुमुदनी मुंदी तमचरको
सुर हास गयो ॥। १॥ टेरत ग्वालबाल सखा ठाड़े पुरव दिश पंगति उदयो ॥ सुनत
बचन जागे नंदनंदन सूर जननी उच्छंग लयो ॥२॥। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Nandke laal uthe jab soye | नंदके लाल उठे जबसोये ॥ देख मुखारविंदकी शोभा
कहो काके मन धीरज होये ॥१॥ मुनि मन हरण युवतीको बपुरी रति पति जात
मान सब खोये ॥ ईषदहास दशन द्युति बिकसत मानिक ओप धरे जानो
पोये ॥ २॥ नवलकिशोर रसिक चूडामनि मारग जातलेत मन गोये ॥ सूरदास
मन हरन मनोहर गोकुलवस मोहे सब लोये ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Bilawal |
Hon Parbhat samyein uthaayi | हों परभातसमें उठआई कमलनयन तुहारो देखनमुख ॥
गोरसवेचन जात मधुपुरी लाभ होय मारग पारऊंसुख ॥१॥ कमलनयनप्यारो
करतकलेऊ नेंकचिते मोतनकीजेरुख ॥ तुमसपने में मिलके विछुरे रजनी
जानितकासों कहीये दुःख ॥।२॥ प्रीति जो एकलाल गिरिधरसों प्रकटभई अब
आयजनाई ॥ परमानंदस्वामी नागरनागरिसों मससा अरुझाई ।। ३।। | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Nandnandan Vrundavan chand | नंदनंदन बुंदावन चंद ॥ यह कही जननी जगावत लालही जागो
हो मेरे आनंद कंद ॥।१॥ आलस भरे उठे मममोहन चलत चाल ठुमक अतिमंद ॥।
पौंछबदन अंबरतें जसोमति हीरदे लगाय उपज्यो आनंद ।॥।२॥ सब तव्रजसुंदरी
आई देखनकों दरसन होत मीट्यो दुःख द्वंद ॥ ब्रतिपति श्रीगोपाल परिपुरन
जाको जस गावत श्रुति छंद ॥ ३॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Bhairav |
Aalas Bhor Uthiri | आलस भोर उठीरी सेजतें करसुं मीडत अखियां ॥॥
सगरी रेन जागी पियके संग देखत चकित भई सखियां । १॥
काजर अधर कपोलन पी लगी हे रची महावर नखियां ।।
रसिक प्रीतम दरपन ले प्यारी चीर सँवार मुखढकियां ॥२॥ | Jagayeve | NityaPad-025 | Lalit |
Maiya Mohi Maakhan Mishri ( Sehra) | मैया मोहि माखन मिश्री भावे ॥ मीठो दधि मिठाई मधु घृत
अपनो करसों क्यों न खवावे ॥१॥ कनक दोहनी दे कर मेरे गौदोहन क्यों न
सिखावे॥ ओटटय्ो दूध धेनु धोरीको भरके कटोरा क्यों न पिवावे ॥ २॥। अजहू
व्याह करत नहीं मेरो तोहि नींद क्यों आवे ॥ चतुर्भुज प्रभु गिरिधरकी बतियां
सुन ले उछंग पय पान करावे ॥। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-026 | Ramkali |
Doun Alsaane rajat praat | दोऊ अलसानें राजत प्रात ॥ श्री वृषभान नंदनी नंद सुत रसिक सलौने गात ॥ १ ॥
नीलपीत अम्बर लपटानो छिन छिन अधिक सुहात ॥
मानहु घन दामिन अपनी छबि होई एक बिकसात ॥। २॥
बिन मकरंद अरबिंद वुन्द मिल अंग अंग बिकसात ||
सुखसागर गिरिधरन छबीलो निरख अनंग लजात ॥।३॥ | Jagayeve | NityaPad-026 | Bibhaas |
Jayati Aabheer Naagri | जयति आभीर नागरी प्राणनाथे ॥
जयति ब्रजराज भूषण यशोमति ललन देत नवनीत मिश्री सुहाथे ।१॥|
जयति पातपर भात दधि खात श्रीदाम्मा संग अखिल गोधन वुंद चरें साथें।।
ठोर रमणीक बुंदा विपिन शुभ स्थलसुंदरी केलि गुण गूढ गाथें ॥२॥
जयति तरणि तनया तीर रासमंडल रच्यो ततताथेईथेई ताथे ॥
चतुर्भुजदासप्रभु गिरिधरन बोहोरि अब प्रकट श्रीविद्डलेशब्रज कियो सनाथे ॥।३॥ | Kaleoon | NityaPad-026 | Ramkali |
Karo Kaleoon RamKrushna( mugat) | करो कलेऊ रामकृष्ण मिल कहत यशोदा मैया ।॥।
पाछें वछ ग्वाल सब लेकें चलो चरावन गैया ।!१॥
पायस सिता घृत सुरभिनको रुचिकर भोजन कीजे ॥
जगजीवन ब्रजराज लाडिले जननीकों सुख दीजे ॥२॥
सीसमुकुट कटि काछनी पीत बसन उर धारो।।
कर लकुटीले मुरली मोहन मन्मथ दर्पनिवारो ॥३॥
मृगमद तिलक श्रवण कुंडल मणि कौस्तुभ कंठ बनावो ॥
परमानंददासको ठाकुर ब्रज़जन मोद बढावो |।४॥ | Kaleoon | NityaPad-026 | Bhairav |
Ha Ha Leho Ek Kor | हा हा लेहो एक कोर ॥ बहुत बेर भईहे देखो मेरी ओर ।।१॥
मेल मिश्रीदूध ओटबो पीयो व्हेहे जोर ।। अबहो खेलन टेरहें तेरे गवाल भयो
भोर॥२॥ जागे पंछी द्रुम द्रुम सुन प्रातकरन लगे सोर॥ खेलवेकों उठ भाजोगो
मान मेरो निहोर ॥३॥ लेहूँ ललन बलाय तिहारी छोर अंचल ओर ॥ बदन चंद
विलोक सीतल होत हृदय मोर ॥।४॥ बैठ जननी गोद जेंबन लागे गोविंद थोर ॥
रसिक बालक सहज लीला करत माखनचोर ।॥।५।। | Kaleoon | NityaPad-027 | Bhairav |
Govinda Mangat Hain Roti | गोविंद मांगतहें दधि रोटी ॥ माखन सहित देहु मेरी जननी शुभ्र सुकोमल मोटी ॥ १॥
जो कछु मांगोसो देहु मोहन काहेकी आंगन लोटी ॥
कर गहि उछंग लेत महतारी हाथ फिरावत चोटी ॥|२॥
मदनगोपाल श्यामघनसुंदर छांडो यह मति खोटी ॥|
परमानंददासको ठाकुर हाथ लकुटियाछोटी ॥३॥। | Kaleoon | NityaPad-027 | Bhairav |
Chhagan Magan Pyarelal | छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा || छींकेते सगरी दधि
उखल चढ काढलेहो पहर लेहो झगुली फेंट बांधलेहो मेवा ॥९॥ यमुना तट
खेलन जावो खतेलन के मिस भूख न लागे कोन परी प्यारे लाल निश दिनाकी
टेवा॥ सूरदास मदनमोहन घरही क्योंन खेंलो लाल देहो चकडोर बंगी हंस मोर
परेवा ॥२॥ | Kaleoon | NityaPad-027 | Bhairav |
Aachhoo neeko loono mukh | आछो नीको लोनों मुख भोरही दिखाइ़ये ॥ निशके उनीदे
नयना तोतरात मीठे बेना भावते जियके मेरे सुखही बढाइये ॥१९॥ सकल सुख
करण त्रिविध ताप हरण उरको तिमिर बाढ्यो तुरत नसाइये ॥ द्वारे ठाढे ग्वाल
बाल करोहो कलेऊ लाल मीसी रोटी छोटी मोटी माखनसों खाईए |। २॥| तनकसो
मेरो कन्हैया वार फेर डारी मैया बेंनी तो गुहों बनाइ गहरन लगाइये | परमानंदप्रभु
जननी मुदित मन फूली फूली अति उर अंगन समाइये ।॥। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-027 | Bhairav |
Lal Tohe Dulhani LaooNgee Chootii (Sehra) | लाल तोहे दुलहनि लाउंगी छोटी । चलो बेग अब करो
कलेऊ माखन मिश्री रोटी ॥॥१॥ चंदन घसकें ऊबट न्हवाऊं तब बाढेगी चोटी ॥।
श्रीविद्ठल बिपिन विनोद बिहारी वात नहिं ये खोटी ।।२॥। | Kaleoon | NityaPad-027 | Malkos |
Karo Kaleoon Kanhar pyare | करो कलेऊ कान्हर प्यारे ॥ टेरत ग्वाल बाल सब ठाडे आये
कबके होत सवारे ॥१॥ मांखन रोटी दियो हाथ पर बल जाऊं हों खाओ
ललारे॥ खेलो जाय ब्रजहीके भीतर दूर कहूंजिन जाओं बारे ॥२॥ टेर उठे
बलराम स्यामकों आवहु जांय धेनु वनचारें ॥ सूरस्थाम कर जोर मातासों गाय
चरावन करत हाहारें ॥३॥ | Kaleoon | NityaPad-028 | Bibhaas |
Abhi yashoda makahan laayi | अबही यश्ोदा मांखन लाई ॥ में मथके अबहीजु निकास्यों
तुम कारण मेरे कुंवर कन्हाई ॥॥९॥॥ माग लेहु ऐसे ही मोपें मेरेही आगें खाहु ।।
और कहूजिन खेहो मोहन दीठ लगेगी काहू।। २॥ तनक तनकही खाउ लाल मेरे
जो बढि आजे देह ॥ सूरस्याम कछू होउ बडेसे वैरिनको मुख खेह ॥। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-028 | Bibhaas |
Kamal Nayan Hari Karo Kaleva | कमल नयन हरि करो कलेवा || मांखन रोटी सद्य जम्यो दक्षि
भांत भांत के मेवा | १॥ खारक दाख चिरोंजी किशमिस उज्ज्वल गरीय बदाम ॥।
सक्कर सेव छुहारे सिंघारे हरे खरबूजा जाम ॥२॥ केई मेवा बहु भांतभांतके
खटरसके मिष्ठान ।। सूरदासप्रभु करत कलेऊ रीझे स्थाम सुजान ॥। ३॥ | Kaleoon | NityaPad-028 | Bibhaas |
Mano Baat Laaljoo Meri | मानो बातलालजू मेरी ।। करो भोजन रार भूलो हों मातजू
तेरी ॥१॥ दह्ों माखन दूधे मेवा परोस राखी थारी ॥ करो भोजन लाल मेरे
जाऊंहों बलहारी ॥ २॥। गोद बेठोहों जिमाऊं गाऊं तेरे गीत ।। खेलिवेकों तोहि
बोलत ग्वाल तेरे मीत ॥ ३॥। कहो ताहिं बुलाउं बैठे तेरे पास ॥ करोहों दधिमथन
उदयो सूरकमलप्रकाश ॥।४॥ मायके सुन वचन मोहन विहँस प्रेम गोपाल ॥
कियो भोजनदियो अतिसुख रसिक नयन विशाल ॥५॥। | Kaleoon | NityaPad-028 | Bibhaas |
Dou Bhaiya Mangat Bhaiyapein | दोऊ भैया मांगत भेयापें देरी मैया दधि माखन रोटी ।। सुन
यशुमति एक बात सुतनकी झूठेही धामके काम अंगोटी ॥१॥ बलभद्र गह्मो
नासाको मोती कान्हकुंवर गही दृढकर चोटी ॥। मानो हंस मोर भखलीने कहा
वरणुं उपमा मति छोटी ॥२॥| यह देखत नंद आनंद प्रेम मगनज़ु करत लोट
पोटी ॥ सूरदासप्रभु मुदित यशोदा भाग्य बडे करमनकी मोटी ॥|३॥ | Kaleoon | NityaPad-028 | Bibhaas |
Pichvare Vehe Bol Sunayo | पिछवारेव्हे बोल सुनायों ग्वालिन ॥ कमलनयन प्यारो
करत कलेऊ कोरन मुखलों आयो ॥|१॥ अरी मैया एक वन व्याई गैया बछरा
उहां विसरायो ॥ मुरली न लई लकुटिया न लीनी अरबराय कोऊ सखा न
बुलायो ॥२।। चकृत भई नंदजुकी रानी सत्य यह केंधों समनो आयों फूले गातन
मात रसिक बर त्रिभुवनराय शिरछत्र छायो ॥।३॥ बैठे जाय एकांत कुंजमें कियो
विविध भांत मन भायो ॥ परमानंद सयानी ग्वालिन उलट अंक गिरिधर पिय
पायो ।।४॥। | Kaleoon | NityaPad-029 | Ramkali |
Uthat Prath Kachoo Maat | उठत प्रात कछु मात जशोदा मंगल भोग देत दोऊ छोरा ।
माखन मिसरी दह्यों मलाई दूधभरे दोऊ कनककटोरा ॥१॥ कछुक खात कछु
मुख लपटावत देत दूराय मिलि करत निहोरा। परमानन्द प्रभु झबक परत दूग
भरत लाल भुज करत कलोला ॥ २॥ | Kaleoon | NityaPad-029 | Bibhaas |
Makhan Tanak Deri Bhaaya | माखन तनक देरी माय ॥ तनक करपर तनक रोटी मागत
चरणा चलाय ॥| १॥ तनक से मनमोहना की लागो मोहिं बलाथ ।। तनक मुखमें
दूधकी दतियां बोलतहे तुतराय ॥२॥| कनक भूपर तनक रींगत नेत पकर्यो
धाय | कंपियो गिरी शेष संक्यों सिंधु अति अकुलाय |। ३॥ तनक माग्यो बहोत
दीयो लियो कंठ लगाय | सूरप्रभुकी तनक चुटिया गुहत माय बनाय ॥।४॥ | Kaleoon | NityaPad-029 | Ramkali |
Keejiyein Nandlal Kaleoo | कीजिये नंदलाल कलेऊ ॥ खीर खांड ओर माखन मिश्री
लीजिये परम रसाल ॥ १॥| ओटयो दूध सद्य धोरीको तुमको देहों गोपाल ॥। बेनी
बढे होय बलकीसी पीजिये मेरे बाल ।। २॥। हों बारी या बदनकमल पर चुंबन देहो
गाल ॥ गोविंदप्रभु कलेऊ कीनो जननी वचन प्रतिपाल ॥३॥ | Kaleoon | NityaPad-029 | Ramkali |
HoN Bal Bal JaooN Kaleooo | हों बलबल जाऊं कलेऊ लाल कीजे ।। खीर खांड घृत
अति मीठोहे अबकी कोर बछ लीजे ॥। १॥ बेनी बढे सुनो मनमो हन मेरो कह्ो
पतीजे।। ओटबो दूध सद्य धोरीको सात घूंट भर पीजे ॥२॥ वारने जाऊं
कमलमुख ऊपर अंचरा प्रेमरस भीजे ॥ बोहोरस्थो जाय खेलो यमुनातट
गोविंदसंग करलीजे ।। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-029 | Ramkali |
Ladili Lal Saj Uth | लाडिली लाल सेज उठ बैठे सख्ीजन मंगलभोग धरावे ।
कंचनजडित थारमें मोदक ले कर ललिता हरि ढिंग आवे ॥ १॥ देत परस्पर कोर
बदन में नैन उनीदे अति अरसावे | मृदु मुसिकात मोद बढावत दास निरख के
बल-बल जावे ॥ २॥ | Kaleoon | NityaPad-030 | Bibhaas |
Maangat Dadhi Makhan | मांगत दधि माखन उठ प्रात। हों दधि मथन करनकों बैठी तहां
आय अरबरात ॥।१॥ कद्यो जशोदा देहो रोहनी हँस हँस बैठे खात। श्रीज्रजपति
पिय मांग लेत हैं कहि कहि तोतरी बात ॥२॥। | Kaleoon | NityaPad-030 | Bibhaas |
Kanha kaho Chabhi karat kaeloo | ऊँ कहा कहूँ छबि करत कलेऊ ॥
थार साज बिंजन धर राखे कर कर कोर मुख देऊ ॥।१॥
गरज गरज बरसत चहुँदिसतें मनमोहन कछु ओर ही लेऊ ॥
सुनत वचन जननी के सूर प्रभु कही न जात मुख से हू ॥॥२॥ | Kaleoon | NityaPad-030 | Malhaar |
Rahi Ur laye lalan Kachoo kenho | रही उर लाय ललन कछु खेंहो ॥| बहु मेवा पकवान्न मिठाई
जो भावे सो लेहो ॥१॥| जेवबुंगो जब कही मेरी करि हां मोहि बाबा की आन॥।
गोपीजन ब्रजवासी बोले अरू बोले वृषभान ॥।२॥ इंद्र ही मेटी गोवर्द्धन थापे
कान्ह कही सो मानी ॥ ग्वाल बोल हरी संग बैठारे परोसत हें नंदरानी ॥ ३॥। हरि
हलधर जब कियो कलेउ जननी तात सुख पायो ॥ ब्रजबासी एकंत व्हे बैठे
सूरश्याम मन भायो ॥।४॥ | Kaleoon | NityaPad-030 | Devgandhar |
Karat Kaleoo Dou Bhaiya
(Gopaashtami Khaas)
| करत कलेऊ दोउ भैया॥ रोटी रसाल माखन में मिसरी मेल
खवावत मैया ॥१॥| काचो दूध सद्य धौरीको तातो कर मथ प्यावत घैया | कर
अचवन बीरा ले ब्रजपति पाछे चले चरावन गैया ॥२॥। | Kaleoon | NityaPad-030 | Ramkali |
Karat kaleoonmohanlaal
| # राग मालकोंस # करत कलेऊ मोहनलाल ॥ माखन मिश्री दूद मलाई मेवा
परम रसाल ॥ १॥ दधि ओदन पकवान मिठाई खात खबावत ग्वाल ॥ छित-
स्वामी बन गाय चरावन चले लटकि गोपाल ॥॥२।। | Kaleoon | NityaPad-030 | Malkos |
Lehoo Lalan Kachoo Karhoon kaleoo | लेहु ललन कछू करहु कलेउ अपुने हाथ जिमाऊंगी। सीतल
माखन मेल जु मिसरी कर कर कोर खवाऊंगी ॥ १॥
ओद्यो दूध सद्य धोरीकोसियरो कर कर प्याऊंगी ॥
तातो जान जो नहि सुत पीवत पंखा पवन ढुराऊंगी ॥ २॥
अमित सुगंध सुवास सकल अंग कर उबटनो गुन गाऊंगी।
उष्न सीतल हु न्हवाय लुछीने चंदन अंग लगाऊंगी ॥३॥
त्रिविध ताप नस जात देख छबि निरखत हियो सिराऊंगी।
परमानंद सीतल कर अंखियाँ बानिक पर बलजाऊंगी ॥४।। | Kaleoon | NityaPad-030 | Bibhaas |
Yashoda Pande Pande Dole | जसोदा पैंडे पैंडे डोले ! इत गृह कारज उत सुत कौ डरू दुहूँ
भाँति मन तोलै ॥ आवहु कुँवर ! तुम करहु कलेऊ जननि रोहिनी बोलै ।
परमानंद स्वामी फिरि चितयो आनंद हृदय कलोलै ॥ | Kaleoon | NityaPad-031 | Saarang |
Kheejat Jaat Makhan Khaat | खीजत जात माखन खात | अरुन लोचन भोह टेडी बारबार
जुंभात॥१॥ कबहू घुटरुन चलत रुनझुन धूरधूसर गात | कबहू खीजकर अलक
ऐंचत नेन जलभर जात ॥२॥ कबहू तोतरे वचन बोलत कबहू बोलत तात |
सूरप्रभु की जननी बलिहसि लीयो कंठ लगात ॥३॥। | Kaleoon | NityaPad-031 | Bhairav |
Jevantlaal ladilo rajen | जेंवव लाल लाडिली राजें । ललितादिक सखी सकल परोसत कनक-पात्र-मध्य साजें ।| १।।
कर मनुहार जिमावत प्यारो प्यारी जेंबत लाजें।
रसिक प्रीतम तहां करत कलेऊ विविध मनोरथ साजें ॥ २॥ | Kaleoon | NityaPad-031 | Malkos |
Makhan Mohi Khavayi rahi maiya | माखन मोहि खवाड़ री मैया ! बडी बार भई है भूखे हम
हलधर दोऊ भैया ।। बडी कृपन देखी तू जननी ! देति नहीं अध घैया ।
'परमानंददास' की जीवनि ब्रज-जन केलि करैया। | Kaleoon | NityaPad-031 | Devgandhar |
Mohan Uth nhi Raar machayi | मोहन उठहिं रार मचाई ! छाँडिदे झूठी काम धाम सब माखन
रोटी दै मेरी माई ! कबहुँक झटकि गहत नीवीकर ॥। २॥ कबहुँक कंठरहत लपटाई,
मुखचुंबति जननी समुझावति सद लौनी दैहौं कुँवर कन्हाई, उठि कर गही आपु
ही नेती माखन बडी बार क्यों लाई, परमानंद' देखि यह लीला सुधि सागर
मथधिवे की आई॥ | Kaleoon | NityaPad-031 | Saarang |
Utho Mere Lal Kaleoo keeje | ऊठोमेरे लाल कलेऊ किजे ॥ मधुमेवा पकवान मिठाई सद्यदुध
धोरी को पीजे ।॥१॥ टेरत ग्वाल बाल खेलनको मोर मुकट मुरली कर लीजे॥।
ईतनि सुनत बेहेस ऊठ बेठे सुरयेहे देखत सुख जीजे ॥२॥ | Kaleoon | NityaPad-031 | Bhairav |
Yashoda Pende Pende Dole | जसोदा पेंडे पेंडे डोले ॥
इत गृह काज उते सुत को डर दोऊ बात समतोलें ॥ १॥।
आवहुं कुंवर तुम करो कलेऊ जननी रोहिनी बोलें।।
परमानंद प्रभु फिरिकें चितयो आनंद हृदय कलोलें ॥२॥ | Kaleoon | NityaPad-032 | Ramkali |
Karo Kaleoo Praan Piyare | करो कलेऊ प्रान पियारे।।
माखन रोटी सद्य घृत दह्मो हे बलिबलि जाऊं खाउ ललारे ॥१॥
टेरत ग्वाल बाल द्वारे व्हे आवहु खेलजु करो दुलारे ॥
खेलन जाऊं बलि ब्रज बीधन में दूरिकहुं जाउ दिनवारे ॥२॥
टेरि उठे बलिराम स्याम को आवो जाउ धेनुले सवारे ॥
सूर श्याम करजोरि मैया सो गाय चरावन जात उहारे ॥ ३॥ | Kaleoon | NityaPad-032 | Bibhaas |
Vrajanandkadam Vrajanandkadam | व्रजानंदकंदम् व्रजानंदकंदम् ।
घोषपति भाग्यभुविजातम् ॥
रसिक वरगोपिका पीतरसमाननं तव जय तु ममदृशि सुजातम् ॥।श्लु.॥
रुचिरदरहास गलदमलपरि मललुब्ध मधुपकुलमुखकमल सदनम् ॥
अमृतचयगर्व निर्वासना धरसी धुपाय यमनोजाग्नि शमनम् ॥१॥
स्मित प्रकटितचारुदंत रुचिवदन, विधुकौमुदी हत निखिलतापे ।|
विलस ललितेहृद्यकनककलशये, मारकत मणिरिव दुरापे ॥२॥
सुभग सुमुखी कंठनिहित निजबाह रतिमत्त गजराज इबरुचिरम् ॥
विहरविरहानलं चारु पुष्करचलन शीक रैरुपशमय सुचिरम् ॥३॥
अरुण तरला पांग शरनिहित कुल-वधू, धृतितव विलोचनसरोजम् ॥
ममवबदन सुषमासरसिविलसतु सततमल, सगतिनिर्जित मनोजम् ॥।४॥
नंदगेहाल वालोदित स्त्रीराग से कसंवृद्धसुरवृक्षम् ॥।
ब्रजवरकुमारिका बाहु हाटकलता सततमाश्रयतु कृतरक्षम् ॥॥५॥
व्रजश्लाघ्य गुणरसिकता गुणगोपनातिशय रुचिरालापलीलम् ॥
तादूगीक्षण जनितकुसुमशरभाव भरयुवतिषु प्रकटतरनिखिलम् ॥।६।।
रुचिरकौमार चापल्य जय ब्रीडया,बल्लबी हृदयगृहगुप्तं ॥७॥।
प्रकटयतन्रिजन खरशरचयरैसम शरमिहजयसिहृदयभावितम् ॥
घोषसीमंतिनीविद्युदुद्यबेणुकलनिनदगर्जितस्त्वमिहसततं ॥
वचन करुणा कूतदृष्टिवृष्टिरंगंनवजलदमपिकुरु सुहसितं ॥।९॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-032 | Bibhaas |
Karat Kaleoo Kunwar Kanhaiya
| करत कलेऊ कुंवर कन्हैया ।॥
संकरसन के संग विराजत ओर राजत गोपन के छैया।। १॥
मधुमेवा पकवान मिठाई बहुविधि विंजन सरस सुहैया।।
ओद्यो दूध सद्य धोरि को तातो मिश्री बहुत मिलैया ॥ २॥॥
अरस परस दोऊ खात खबावत निरख रोहिनी जसुमति मैया ।।
यह छबि देखिनंद आनंद परमानंददास बलिजैया ।। ३॥। | Kaleoon | NityaPad-032 | Ramkali |
Uthe Praat Alsaat | उठे प्रात असलात कहेंत तोतरी तोतरी बात ॥
मांगत है जैसे सद्य माखन लाई हे जसोदा मात
बाजत नुपुर सोहात नाचत त्रैलोक नाथ देखत
सब ग्वाल बाल नेंनन नही अघात ॥॥१॥
नंदसुबन सुखदाई चिरजीबोरी कन्हाई जीवनमुख चाहि चाहि या निधि को माई ।।२॥।
बाल केलि देखि आई रोम रोम सचुपाई श्री विद्ठल हर निरख लेत हे बलाई ॥३॥ | Kaleoon | NityaPad-032 | Bibhaas |
Gwalini Mangat Basan Aapane | ग्वालिन मांगत बसन आपने ॥
सीतकाल जलभीतरठाडी आवतनहीं दयाने ॥ १॥
तुम व्रज॒राज कुमार प्रबल अतिकोन परी यहबाने ॥|
हम सब दासी तिहारी व्रजपति तुम बहुनिपटसयाने ।।२॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-033 | Bibhaas |
Gwalini Aapne Cheer Le ho | ग्वालिनि आपनेचीरलेहों ॥
जलतेनिकसनिहारनेकव्हैदोऊककरजोर आसीसलेहो ॥ १॥।
कितहुंसीतसहत ब्रजसुंदरिहोत असित-कुशगात सबे ॥
मेरे कहें पहेरो पटअंगनव्रतविधिहीन अबे ॥।२॥
हौं अंतरयामीजानतचितकी कितदुरावत लाजकें ॥
करहों पूरणकाम कृपाकर शरदसमेंशशिरातकें ॥ ३॥
संततसूर स्वभावहमारों कित डरपतहो काममये ||
कैसी भांतिभजेकोउमोकूंतेहूंसब संसार जये ।॥४॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-033 | Bibhaas |
Tum Hari hare KevalVeeer | तुमहरि हरे केवलचीर_॥ करत
मुरलीवसनभूषणपराक्रमकुलधीर ॥१॥
तुम आपजाय मनायलावत चतुरहलधरवीर ॥|
मुरलीकाध्वनि सुनत व्रजपति मनहिंहोतअधीर ।। २॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-033 | Ramkali |
Mohan Deho vasan hamare | मोहन देहो बसन हमारे ॥
जाय कहों ब्रजपतिजूके आगें आगें करतअनीतललारे ॥१॥
तुम ब्रजराजकुमारलाडिले औरसबहिनके प्राण पियारे॥
गोविंदप्रभु पियदासीतिहारी सुंदरवरसुकुमारे ॥। २॥॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-033 | Ramkali |
hari yaash gavat Chali | हरियश गावत चलीब्रज सुंदरि नदीयमुनाके तीर ।।
लोचनलोलबांह जोटीकरश्रवणनझलकतबीर ।। १॥
बेनीशिथिलचारुकांधैपर कटिपटअंबरलाल ।|
हाथनलियें फूलनकीडलियां उरमुक्तामणिमाल ॥२॥।
जलप्रवेश कर मज्जनलागी प्रथमहेमकेमास।
जेसें प्रीतम होय नंदसुत ब्रतठान्यो यह आस ॥३॥
तबते चीर हरेनंदनदंन चढेकदंबकी डारि ॥
परमानंदफप्रभु वरदेवेंकोउद्यमकियोहै मुरारि ॥४॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-034 | Ramkali |
Aho Hari Hamhari tum jeete | अहो हरि हमहारी तुमजीते ।।
मागरनटपट देहो हमारे कांपतहै तनसीते ॥१॥
कानन कुंडल मुकुट बिराजत कान्हकुंवरकेहौंवारी ॥
हाहाखातपैयांपरतहो अबहौं चेरितुम्हारी ।|२॥|
तब तेरो अंबर देहों री सजनी जलतेंहोयसबन्यारी ॥
सूरदासप्रभु तिहारे मिलनकों तुम जीते हम हारी ॥॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-034 | Ramkali |
Vasanhare sab kadamb chadhaye | वसनहरे सबकदंब चढाये ॥
सोलेसहस्त्रगोपकन्यनके अंगआभूषणसहित चुराये॥| १॥
अतिबिस्तारनीप तरुतामेलेलेजहांतहांलटकाये
मणिआभूषण डारडारन प्रति देखत छबिमनहींअटकाये ॥२॥
नीलांबरपार्टबरसारी श्वेतपीतचूनरी अरुणाये ॥
सूरस्याम युवतिन ब्रतपूरणको कर्दंबडारफलपाये ॥। ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-034 | Ramkali |
Aavahoo nikasghoskumar | आवबहु निकसघोषकुमार ॥|
कदंबपरतें दरसदीनों गिरिधरनवलकुमार ॥ १॥।
नयनभरभरफलही देखो फल्योहैद्रमडार ॥
ब्रततुह्यारो भयो पूरण कह्योनंदकुमार || २।
सलिलतें सबनिकस आवो वृथासहित तुषार ॥।
देतहूंकिन लेहो मोपेंचीरचोलीहार ॥। ३॥
बांह टेकमोहि विनयकरो कहेवारंबार ॥
सूरप्रभु कह्योमेरे आगें करोआनशुंगार ॥४॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-034 | Ramkali |
Hamaro Ambaar Deho murari | हमारो अंबरदेहो मुरारी ॥
लेकरचीरकदंब चढबैठे हम जलमांझ उघारी ॥१॥|
तटपर विनावसन क्यो आयें लाजलगतहैंभारी ॥।
चोलीहार तुमहींको दीनेचीरहमेदेहोडारी ॥२॥
तुमयहबातअचंभो भाखत नागीआवोनारी ॥
सूरस्याम कछु नेहकरो जू सीतगयो तनमारी ॥। ३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-034 | Ramkali |
Aap KadambChadh Dekhat Shyam | आपकदंब चढदेखतस्याम वसनआभूषणसब हरलीने विनावसन जलभीतर वाम ॥।१॥
मुदितनयन ध्यानधरहरिकों अंतरयामि लीनीजान ।
बारबारसबतासों मांगत हम पावें पतिस्थाम सुजान ॥२॥
जलतें निकस आयतट देख्यो भूषणचीरतहां कछुनाहीं |
इतउतहेर चकित भईसुंदरि सकुचगई फिर जलहीमाहिं ॥३॥
नाभिपर्यत नीरमेठाढी थरथरअंगकंपत सुकुमारी ॥
को लेगयो बसन आभूषण सूरस्याम उरप्रीतिबिचारी ॥।४॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-035 | Ramkali |
Tarooni nikas sabe tat aayi | तरुनी निकस सर्बेतट आई ॥ पुनपुन कहतलेहु पटभूषण युवतीस्थामबुलाई ॥ १॥
जलतेनिकस भई सब ठाढी करअंग ऊपरदीनो ॥
वसन देहोआभूषणराखहु हाहापुनपुनकीनों ॥२॥
ऐसेंकहाबतावतहो मोहिबांहउठायनिहारों ॥
करसो कहाअंग उरमूंदे मेरे कहें उघारो ॥३॥।
सूरस्थामसोईसोईहम करहे जोई जोई
तुमसब केहो लेहोंदावकबहु तुमसों हम बहुरकहातुमजेहों ।।४॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-035 | Ramkali |
Laaj Auth Yeh Door karo | लाज ओट यह दूरकरो ॥ जोईमें कहों करो तुम सोईसकुच उहांरहिकहाकरों ॥१॥
जलतेतीर-आयकर जोरोमें देखो तुमविनयकरो ।।
पूरणब्रत अब भयोतुहारो गुरुजनशंकादूरकरो ।|२॥
अब अंतरमोसोजिनराखो वारवार हठवृथाकरो ॥
सूरस्थामकह्यों चीरदेतहों मोआगें शुंगारकरो ॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-035 | Ramkali |
Mohan Vasan Hamare Dije | मोहनवसन हमारे दीजे।॥
बारणेजाऊं सुनो नंदनंदन सीतलगत तनभीजे ॥१॥
कोनस्वभाववृथा अनअवसर इनबातनकैसेजीजे ॥
सुनदुखपावेमहरियशोमति जाय कहेंअबहीजे ॥२॥
सब अबला जलमाँझ उघारीदारुणदुख कैसे सहीजे ॥
प्रभुबलराम हम दासीतिहारीजोभावे सो कीजे ॥।३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-035 | Ramkali |
Jalate Nikas teer sab aavahoo | जलते निकस तीर सब आवहु ॥ जेसे सबितासो करजोरे तेसेंह जोरदिखावहु॥१॥
नवबालहम तरुणकान्हतुमकैसे अंगदिखावहु।।
जलते सबबाहटेककें देखहूँ स्थामरिझावहु_ ॥२॥
ऐसे नहींरीझोमें तुमकूंऊंचेबांहठठावहु ॥
सूरदासप्रभुकहतहरि चोलीवस्तर तब पावहु ॥ ३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-035 | Ramkali |
Neeke Tap Kiyo Targaar | नीके तप कीयोतनगार ॥
आपदेखत कदंबपें चढ मानलईमुरार ॥१॥
बरषभरकितनेमसंयम इनकियो मोहिकाज ॥।
कैसेंहु मोको भजेकोऊमोहि बिरदकीलाज ॥२।॥
ध्यानब्रत इन कियो पूरणसीततपतनवारि ॥।
कामआतुरभजें मोको नबतरुणी ब्रजनारी ॥३॥
कृपानाथकृपालभयेतबजान जनकी भीर ॥
सूर प्रभू अनुमानकीनो हरूंइनकीपीर ॥।४॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Deho Vrajnaath Hamari aangi | देहोब्रजनाथ हमारीआंगी ॥
नातर रंगबिरंग होय गोकेइबेरियाहममांगी ॥।१॥
बृजके लोगकहा कहेंगे देखपरस्पर-नागी ।।
खरेचतुरहरिहो अंतरगत रेनपरी कबजागी ॥१॥
सकलसूतकंचनकेलागे बीच रत्ननकी धागी |।
परमानंदप्रभु दीजिये नकाहेप्रेमसुरंगरंगपागी ।। ३।॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
DrudhVrat keeno mero het | दृढब़्त कीनो मेरेहेत ॥
धन्यकहें नंदनंदन जाऊसबनहीकेत ।।१॥
करो पूरन काम तुमारो सरदरास रमाय ॥|
हरख भई यहे सुनत गोपी रहीसीस नवाय ।२॥
सबनको अंगपरसकीनो ब्रतकीनोतनगार ॥।
सुरप्रभु सुख दियोमिलके ब्रजचली सुकुमार ॥ ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Yamuna tat deho nandnandan | यमुनातट देखेनंदनंदन ॥ मोरमुकुटमकराकृतकुंडल पीतवसनतनचर्चितचंदन ।।१॥॥
लोचन तृप्तभये दरशनते उरकीतपत बुझानी ।।
प्रेममग्न तब भई ग्वालिनीतनकी दशा भुलानी ॥ २॥
कमलनयन तटपर रहे ठाढे तहां सकुच मिली नारी ॥
सूरदासप्रभु अंतरयामी ब्रतपूरणवपुधारी ॥३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Vraj Ghar Gayi sab gopkumar | ब्रज घरगई सब गोपकुमार ॥
नेकहूकहूं नहींमनलागत कामधामबिसार ॥१॥
मातपिताको डर नमानत बदतनाहिनगार ॥
हठकरत बिरझाततबजिय जननीजानतबार ॥१३॥
प्रातही सब चली उठ मिल यमुनातटसुकुमार ॥
सूरप्रभुव्रत करन पूरन आये इनकी संभार ॥। ३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Ati tap karat ghokh kumari | अतितप करत घोखकुमारी ।।
कृष्णपति हम तुरत पावे कामआतुरनारी ॥१॥
नयनमुदितदरसकारण श्रवणशब्दविचार
भुजाजोरतअंकभरहरिध्यानधर अंकवार ॥२॥
सरदग्रीष्मनाहिदेखत करत तपतनुगार ॥
सूरप्रभु सर्वज्ञस्वामी देखरीझेनार ।। ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Pyare nahi kariye Haansi | प्यारेनर्हिं करिये यह हांसी ॥
दीजेचीर जायग्रहकों सब हमतोतुझ्ारीदासी ॥।१॥
तुम ब्रजराजकुमार कहावत सबहिनके सुखरासी ॥
श्रीविद्ठनगिरिधरनलाल तुमरहत सदा वनवासी ॥। २॥॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-036 | Ramkali |
Hasat Shyram Vrajdharko Bhage | हसत स्यथाम ब्रजघरको भागे।। लोगन यहकहिकहि सुनावत
मोहनकरनलंगराईलागे ॥|९॥
हम स्नानकरत जलभीतर आपुनमीडतपीठ कन्हाई।।
कहाभयो जोनंदमहरसुत हमसों करतअधिकहिं ढिठाई ॥२॥
लारिकाई तबही लोनीकी चारबरषकोपाच ॥
सूरस्यामजाय कहेयशुमतिसो स्यथामकरतहे नांच ।॥। ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-037 | Ramkali |
Banat Nahi Yamunaji ko nahivo | बनत नहीं यमुना जी को नहिवो ॥
सुंदरश्याम घाटपर ठाढे कहो कोनविधि जयवो ॥|१॥
केसे बसन उतारधरें हम कैसेंजलहीसमयवो ॥
नंदनंदन हमको देखेंगे केसेंकरकेन्हहेवो ।॥२॥।
चोलीचीरहार ले भाजत सो केंसे करपयवो ॥|
अंकन भरभरलेत सूरप्रभु काल्हनयहिमगयैबो ।।३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-037 | Ramkali |
Hamaro Deho Manohar Cheer | हमारो देहो मनोहर चीर ॥
कांपत दशनसीततन व्यापत हिमअतियमुनानीर ॥ १॥
मानेंगी उपकार रावरो करहु कृपाबलबीर।।
अतिदुखत वपुपरसत मोहनप्रचंड समीर ॥२॥॥
हमदासी तुम नाथहमारे विनतीकरत जलभीतर ठाढी ॥
मानो विकसिकुमुदिनी शशिसोअधिक प्रीतिबाढी ।।३॥
जोतुमहमहीनाथकर मानोयहमागेंहमदेहु ॥
जलतेनिकसिआयबाहिरव्हेबवसन आपुनेलेहु ॥४॥
करधर सीसगई सन्मुखहरि मनमें करआनंद ॥
होय कृपालसुरप्रभु सबविधअंबर दीने नंदनंद ॥॥५॥॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-037 | Ramkali |
Ati Tap dekh krupa hari keeno | जे अतितप देख कृपा हरिकीनो ॥|
तनकी जरनदूरभई सबकीमिल तरुणीसुख दीनो ॥१॥
नवलकिशोरध्यानयुवती मनमीडत पीठजनायो ।।
विवश भईकछु सुधिनसंभारत भयोसबन मन भायो ॥|२॥
मनमनकहत भयोतप पूरण आनंद उर न समाई ॥
सूरदासप्रभु लाज न आवत युवतिनमांझकन्हाई ॥॥३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-037 | Ramkali |
Hari Maani Naath Ambar Deeje | हारि मानी नाथ ! अंबर दीजें।
नंदनंदन कुंवर रसिकवर मन-
हरन, सुनहु गिरिवरधरन ! नीति कीजैं॥।
सकल ब्रज-नागरि दासी तुम्हरी सदा,
तन-मांझ सीत अति होत भीजें ॥।
छीत-स्वामी' अमित गुन-गननि आगरे !
बिनती करतिं सबैं मानि लीजैं ॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-038 | Bhairav |
Seet Tan Lagaat hain Atibhaari | सीत तन लागत हे अतिभारी ॥
देहों बसन सांबरे प्रीतम देह कंपत है सारी ॥१॥
नेक दया नहीं आवत नंदनंदन अतिदुःख्तरित ब्रजनारी ॥
गोविंदप्रभु करो मनोरथ पूरन हम तो दासी तिहारी ॥२॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-038 | Ramkali |
Vrutcharya 140 paad | Please see Page 038 to 044 of Kirtan Pustika - Nitya Pad | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-038-044 | Ramkali |
Tiharo Basan leho sukumari | तिहारे बसन लेहो सुकुमारी तुम जल मांझ
ऊधारी नहाँई दोस लग्यो हे भारी ॥१॥
जलतें न्यारी होओ सबें तुम दोंऊ कर करो जुहारी ।
जब निहपाप होओगी तुम सब ब्रत फल होय कुमारी ॥।२॥
ईतनि सुनत सबेमील निकसी कर प्रणाम जब हारी ॥
सूरदास प्रभु सर्वस लेके बसन दीये गिरधारी ॥।३॥ | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-044 | Ramkali |
Kaise Bane Jamuna Asnaan | केसे बने जमुना असनान ॥ नंदको सुत तीर बेठ्यों बड़ो
चतुर सुजान ॥१॥ हारतोरे चीर फारे नेन चले चुराय ॥ काल धोकें कान मेरी
पीठ मिड़ी आय ॥२॥ कहेत जुबती बात सुन बस थकीत भई ब्रजनार ॥ सूर
प्रभुको ध्यान धर मन रही बाम पसार ॥ ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-044 | Ramkali |
Ha Ha Karat Ghokh Kumari | हा हा करत घोख कुमारी ॥
सित तें तन कंपत थर धर बसन देहो मुरारी ॥१॥
मनही मन अति ही भयो सुख देख के गिरधारी ॥
पुरस ईसबरी अंग देखे कहेते दोसन भारी ॥ २॥
नेक नही तुमैं छोह आवत गई हा सब मारी ॥।
सूर प्रभु अतही निठुर हौ नंदसुत बनबारी ॥।३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-044 | Ramkali |
hamare basan deho giridhari | हमारे बसन देहो गिरधारी ईतनि
दया तुमे नही आवत हम जल माझ ऊघारी ॥१॥
तुम ब्रजराज कुमार को डर कांपत हे अति भारी ॥
सुरदास प्रभु यहे बीनती तुम सबके दुख हारी ॥२॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-044 | Ramkali |
Ab Kaha Kari hain Suni Mere Sajanee | अब कहा करि हे सुनि मेरी सजनी लालन खेल अनोखो पायो॥
रूप भर्यो ईत रात चपल अति अंग अंग मनमधथ निरस्त्रि लजायो ।॥। १॥।
दीजे वसन प्रान पति सबके अवतो प्रात हों न आयो ॥
श्री विट्ठलगिरिधरननिरखि त्रिय तन मन मेघन तुम हाथ विकायो ॥। २॥।
| Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-044 | Ramkali |
Goree pati poojat vraj naari | गोरी पति पूजत ब्रजनारि ॥
नेमधरम सो रहेंत क्रिया जुत बहुत करत मनुहारी ॥१॥
यह कहेंत पति उमापति गिरिधर नंददुलार सरण
राखिलीजेशिवसंकर तनही त्रखावत मार ।। २॥
कमल पत्र मातुलप व्होत्र फल नाना सुमन सुवास ||
महादेव पूजन मनवचकर सूर स्थाम की आस ।।३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-045 | Ramkali |
Aali Tere Aanan Droog | आली तेरे आनन दृग आलसयुत राजत रसमसेरी |
नवकिशोर अंग अंग रंगरेन रसेरी ।१॥
शिथिल बसन अधर दशन नखक्षत लसेरी ॥
पीकछाप युगकपोल पिय मुख लाग हसेरी ॥ २॥।
में जानें पहचाने वचन प्रीतम गुणग्रसेरी ॥।
पियविहारी लाल ललित उरोजन बीच वसेरी ॥३॥ | Sheetkaal Khandita ( Mangal Shrungaar) - Maagshar Vad 14 Se Poosh Vad 14 | NityaPad-045 | Lalit |
Vrajlalnaar dishokar joore | ब्रजललनार विसोंकर जोरें ॥
सीततन ही करत छेहोरितु त्रिविध काल जमुना जल खोरें ॥ १॥
गोरी पति पूजन तप साधत करतर हेंत नित नेम मागि रहे तजि सजागि चतुरदस जसुमति सुत के प्रेम । २॥
हमको देहों कृष्ण पति ईश्वर ओर कछू नहीं मन आन ॥
मन वचनहिं हमारे सूरस्थाम को ध्यान ।। ३॥। | Vratcharya (Kartik Sud Poonam Se Magshar Sud Poonam ( Mangala Shringaar)) | NityaPad-045 | Ramkali |
Kaho Tum Sochi Kahante | कहो तुम सांचि कहांते आये भोरभये नंदलाल।।
पीक कपोलन लाग रही है घूमत नयन विशाल ॥१॥
लटपटी पाग अटपटे बंदसो उर सोहे मरगजी माल॥
कृष्णदासप्रभु रसवश करलीने धन्यधन्य ब्रजकी बाल ॥।२॥ | Sheetkaal Khandita ( Mangal Shrungaar) - Maagshar Vad 14 Se Poosh Vad 14 | NityaPad-045 | Lalit |