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Mahaprabhuji Ki Badhai
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Kirtan Title | Page | Kirtan | Raag |
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Gahavar ras saghan nikunj | Part3-381 | गहवर रस सघन निकुंज छायातर रोप्यो डोल
तहां नागरी नागर दोऊ प्रेमसुं झूले ॥ भूषण अंग बने हीरामणि कटि तट
मानों घनदामिनी छबि राजत नलि पीत दूकूले ॥|१॥ बीरी खात खवाबत
प्रमुदित मन गावत सारंग राग गानसों मनही मन फूले ॥ केसर चोवा अगर
गुलाल उडे और केलि कपूरन धूले ॥२॥ मृदंग ताल डफ बीना मधुर स्वर
चहु और गावत उपमा कहे दोऊ को समतूले ॥ यह सुख देख कोन धीरज
धरे कहे जोविंद सुरनर मुनि मन की गति भूले ॥३॥
| Sarang |
Nand Nandan Kunwari Radhika Naagari Dol Jhoolati Bane | Part3-381 | नंद नंदन कुँवरि राधिका नागरि डोल झूलति बने रँंग भीनें ॥ कौं मन रहे झुमन फल फूल चहूँ और तें ॥ गोपिका जूथ मिलि
मधुर लीनें ॥ १॥ खेलि गहरो दोऊ ओर तेैं व्है रह्मों रैंग घुमडनि भई प्रबल
भारी ॥ देव मुनि देखि किन्नर थकित व्है रहे सुर बधू बिकसि रही काम चारी
॥२॥ ब्रज कुँवर लाडिलो नित्य लीला ललित हे रही सरस रस रंगकारी ॥
'रसिक' जन मनन करे देखि दूग अपने परान इक बल करों वारि डारी ॥ ३॥ | Sarang |
Dekhat dol sabe aanand | Part3-382 | देखत डोल सबे आनन्द ॥ नीलकमल ढिंग
राजत चंद ॥१॥ लेइ गुलाल परस्पर डारे ॥ सिर नारी सुख सिंधु निहारे
॥२॥ कुसुमन की बरखा बरखावे ॥ ब्रजबनिता मनमोद बढावे || ३॥ गोपी
प्रीत झुलावे झूले ॥ पिचकारी तकि डारत फूले ॥४॥ गोपवधू सब करी
रणमगी अखियाँ लागत भली रतीजगी ॥५॥ देई असीस आरती बारत ||
द्वारकेस प्रभु अलक संवारत ॥६॥। | Sarang |
Ban Van Aayo Chhaila Hori Ko | Part3-382 | बन वन आयो छैला होरी कौ ॥
मल्ल काछु सिंगार बन्यो है याके फेंटा सीस मरोरी को ॥ १॥
सोंघे सन्यो उपरेना सोहत याके मार्थे बेंदा रोरी को ॥
परसोतम प्रभु कुंवर लाडिलो यह रिझवार किशोरी को ॥२॥ | Hori-Kafi |
Kana Dhare re mukut khele hori | Part3-382 | काना धरे रे मुकट खेले होरी ||
इत श्याम लई पिचकारी रंग भर उत्त श्यामा केसर घोरी ॥१॥
हाथन लाल गुलाल फेंट भर मारत हैं भर भर झोरी ॥
चंद सखी भजि बालकृष्ण छबि तेरे बदन कमल पर चित चोरी ॥२॥ | Hori-Kafi |
Hori Aayire Mohan par rang daro | Part3-382 | होरी आईरे मोहन पर रंग डारो ॥
नैनन अंजन दे मन रंडन याके कान पकर गुलचा मारो ॥१॥
केसर में बोर करो रंग गारो सहे न रहे यह तन कारो ॥
बंसी लेहू छिनाय स्याम की फिर पांछे नोछावर वारो |॥|२॥ | Hori-Kafi |
Darsan De Nikasi Atameinte | Part3-382 | दरसन दे निकसि अटामेंते ॥
उमा, रमा, ईद्राणी, भवानी, जाके निकसी है नख चंद्र छटामेंते ॥१॥
राधेजू निकस अटा भई ठाडी मानो निकस्यो है चंद घटामेंते ॥
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत मानो माखन निकस्यो मठा मेंते ॥२॥ | Hori-Kafi |
Aaj Biraj Mein Hori Hain Rasiya. Bajat Taal Mrundung | Part3-383 | आज बिरज में होरी है रसिया ॥
बाजत ताल मृदंग झांझ ढफ और नगारे की जोरी रे रसीया ॥१॥
उडत गुलाल लाल भये बादर केसर रंग झकझोरी रे रसीया ॥
चंद सखी भज बालकृष्ण छबि चिरजीयो यह जोरी रे रसीया ॥२॥ | Hori-Kafi |
Hor re rasiya aur khayal | Part3-383 | होरी के रसीया ओर ख्याल ॥
फगुवा दे मोहन मतवारे फगुवा दे ॥
ब्रजकी नारी गावे गारी ॥ दो बापन के बिच डोले ॥ १॥
नंदजु गोरे जसोदा गोरी ॥ तुम कहांते भये कारे | २॥
पुरुषोत्तम प्रभु जुबतिन हेते ॥ गोप भेख लियो अबतारे ॥ ३॥ | Hori-Kafi |
Darshan De Mor Mukut Vare | Part3-383 | दरशन दे मोर मुकुट वारे ||
अरू कटि राजत सुभग काछनी फरकत पीरे पटवारे || १॥
बृंदावन में धेनु चरावे, बाजत बंसीवट चारे ॥
पुरुषोत्तम प्रभु के गुण गावे शेष सहस्र मुख रसना हारे | ३॥
| Hori-Kafi |
Thhadi Rahe Gwalan Madmati Thaadi reh | Part3-383 | ठाडी रहे ग्वालन मदमाती ठाडी रह || यह अवसर होरीको हेरी ||
हम तुम खेले संग साती ॥ १॥
भूल गयो घर गेल हमारी ॥ ले लगाई अपुनी छाती ॥२॥
पुरुषोत्तम प्रभु हंसत हंसावत ॥ ब्रज वनिता सब गुण गाती ॥ ३॥ | Hori-Kafi |
Dauf Baje Nand Baba ke ghar ke | Part3-383 | डफ बाजे नंद बाबा घरके ||
चलोनि सखी मिल देखन जइुए ॥ छेल चिकनीयां नागरके ॥१॥
अरू बाजतहे ढोल दमामा ॥ सुनियत घाव नगारनके ॥|२॥
नाचत गावत करत कुलाहल ॥ संग सखा हे बराबरके ॥३॥
पुरुषोत्तम प्रभुके संग खेलत || झख मारत धरबारन के |॥४॥ | Hori-Kafi |